असम हिंसा बोडो व मुसलमानों के संघर्ष का परिणाम
नई दिल्ली। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग [एनसीएम] ने कहा है कि असम की हिंसा बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण नहीं बल्कि बोडो और वहां रहने वाले मुसलमानों के संघर्ष का परिणाम है। आयोग ने राज्य में हिंसा की बड़ी घटनाओं की जांच के लिए विशेष जांच दल [एसआइटी] के गठन की संस्तुति की है। एनसीएम अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्ला क
नई दिल्ली। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग [एनसीएम] ने कहा है कि असम की हिंसा बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण नहीं बल्कि बोडो और वहां रहने वाले मुसलमानों के संघर्ष का परिणाम है। आयोग ने राज्य में हिंसा की बड़ी घटनाओं की जांच के लिए विशेष जांच दल [एसआइटी] के गठन की संस्तुति की है।
एनसीएम अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्ला के अनुसार, 'आयोग ने झड़पों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को रिपोर्ट भेजी है। सिंह द्वारा गुरुवार को आयोजित इफ्तार पार्टी के दौरान इस मुद्दे को मैंने उठाया था। प्रधानमंत्री ने मुझसे कहा कि उन्हें रिपोर्ट मिल गई है।' आयोग ने कहा है कि इस बार लड़ाई जाने वाले बांग्लादेशियों और बोडो के बीच नहीं थी बल्कि बोडो और बोडोलैंड टेरिटोरीयल ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट [बीटीएडी] में रहने वाले मुसलमानों के बीच की थी। आयोग ने स्वीकार किया है कि असम में कुछ घुसपैठ हमेशा होती है लेकिन बांग्लादेश से अचानक ऐसी कोई घुसपैठ नहीं हुई जिसके कारण ऐसा बड़ा संघर्ष हुआ। रिपोर्ट में कहा गया है कि जब मुसलमान अपने गांव छोड़कर भाग गए तो उनके घरों को लूट लिया गया था और तहस-नहस कर डाला गया जो यह संकेत देता है कि वे मुसलमानों को अपने गांवों में लौटना देखना नहीं चाहते। आयोग के सदस्यों ने असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का भी इस ओर ध्यान दिलाया है और कहा है कि यदि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की गई तो मुसलमानों को खतरा भविष्य में उन्हें उग्रवादी बना सकता है। यदि उग्रवादी संगठन देश के अन्य भागों से इस क्षेत्र में घातक हथियार भेजना शुरू कर देंगे तो भविष्य में और खतरा बढ़ सकता है। इसलिए इस सचाई को देखते हुए कि पिछले पंद्रह वर्षो से जो लड़ाई हो रही है उनमें बोडो शामिल रहते हैं उसके प्रतिकार की कार्रवाई जरूरी है। प्रशासन और पुलिस को विशेष रूप से बोडो लोगों से जबरन निबटना होगा। इस दल में योजना आयोग की सदस्य सैयदा हामीद, सलाहकार जीबी पांडा व एनसीएम सदस्य केकी एन दारूवाला ने बीटीएडी और कोकराझार, गोसाई गांव और धुबरी जिले का 11 और 12 जुलाई के बीच दौरा किया था। आयोग का कहना है कि राज्य सरकार को असम हिंसा के पीड़ितों को अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के सुनामी पीड़ितों की तरह शरण देनी चाहिए। आयोग की शिकायत है कि उनकी रिपोर्ट को पुलिस ने प्राथमिकी के तौर पर नहीं लिया।
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