असम की हिंसा राष्ट्र पर कलंक: पीएम
असम में बिगड़े हालात पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चूक स्वीकार कर ली। शनिवार को असम के दौरे पर पहुंचे प्रधानमंत्री ने कहा कि हिंसा पर नियंत्रण में शुरुआत में काफी दिक्कतें आई। उन्होंने हिंसाग्रस्त इलाकों में राहत एवं पुनर्वास कार्य के लिए 300 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता की घोषणा करते हुए कहा कि हिंसा की जांच कराई जाएगी।
कोकराझाड़ [असम]। असम की हिंसा को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने राष्ट्र पर कलंक करार दिया है। शनिवार को हालात का जायजा लेने यहां पहुंचे प्रधानमंत्री ने कहा कि हिंसा पर नियंत्रण में शुरुआत में काफी दिक्कतें आई। उन्होंने हिंसाग्रस्त इलाकों में राहत एवं पुनर्वास कार्य के लिए 300 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता की घोषणा करते हुए कहा कि हिंसा की जांच कराई जाएगी। वहीं, राज्य के प्रमुख विपक्षी दल एआइयूडीएफ ने सीबीआइ जांच की मांग की है।
कोकराझाड़ में राहत शिविर का दौरा करने के बाद प्रधानमंत्री ने पीड़ितों को भरोसा दिलाया कि केंद्र और राज्य सरकार हालात को सामान्य करने और उनके जख्म भरने की पूरी कोशिश करेगी। उन्होंने कहा कि यह आरोप-प्रत्यारोप का समय नहीं है। सर्वप्रथम लोगों के बीच सुरक्षा का भाव लाने का प्रयास किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह जातीय हिंसा नहीं होनी चाहिए थी। इससे राष्ट्र पर धब्बा लगा है। प्रधानमंत्री ने कोकराझाड़ कामर्स कॉलेज में चल रहे राहत शिविर में विस्थापितों से मुलाकात के बाद कहा कि वह उनका दुख-दर्द बांटने आए है। यह घावों को भरने का समय है। इस राहत शिविर में करीब 1,500 लोग शरण लिए हुए है। हिंसा का कारण पूछने पर मनमोहन सिंह ने कहा कि यह मामला काफी जटिल है। शांति लौटने के बाद हम कारणों की समीक्षा करेंगे। इससे पहले मौसम खराब होने के कारण प्रधानमंत्री और अन्य लोगों को लेकर जा रहे तीन हेलीकॉप्टरों को बीच रास्ते से गुवाहाटी लौटना पड़ा। प्रधानमंत्री के साथ राज्य के गवर्नर जानकी बल्लभ पटनायक, मुख्यमंत्री तरुण गोगोई, कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भुवनेश्वर कलिता भी मौजूद थे। यहां हवाईअड्डे के अधिकारियों ने बताया कि हेलीकॉप्टर खराब मौसम के कारण गोसाईंगांव हेलीपैड पर नहीं उतर सकते थे, इसलिए वे लौट आए। वैसे राज्य कांग्रेस के एक अधिकारी ने बताया कि हेलीकॉप्टर गुवाहाटी हवाईअड्डे पर इसलिए लौटे क्योंकि उनमें एक में तकनीकी गड़बड़ी आ गई थी। बाद में प्रधानमंत्री वायुसेना के विमान से कोकराझाड़ पहुंचे। डॉ. ¨सह को दो शरणार्थी शिविरों में जाना था, लेकिन देरी के कारण वह एक ही शिविर में जा पाए। राज्य के बोडो इलाकों में सप्ताह भर से जारी हिंसा में अबतक 53 लोग मारे जा चुके है जबकि लगभग करीब तीन लाख लोग बेघर हो गए हैं। इस बीच, असम सरकार का कहना है कि चार जिलों में फैली हिंसा पर काफी हद तक नियंत्रण पा लिया गया है। कोकराझाड़ में दिन में कर्फ्यू में ढील भी दी गई है।
300 करोड़ रुपये की सहायता: हिंसा प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए प्रधानमंत्री ने 100 करोड़ रुपये देने की घोषणा की। जबकि 100 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सहायता विकास कार्यो के लिए दी जाएगी। इसके अलावा 100 करोड़ रुपये इंदिरा आवास योजना के तहत जारी किए जाएंगे। मृतकों के परिजनों को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से दो-दो लाख रुपये की अनुग्रह राशि जबकि घायलों को 30,000 और 50,000 रुपये की सहायता दी जाएगी।
ग्यारह हजार सुरक्षाकर्मी होंगे तैनात
नई दिल्ली। केंद्र ने हिंसा प्रभावित जिलों में 11,000 से ज्यादा सुरक्षाकर्मियों की तैनाती के लिए राज्य सरकार को अधिकृत कर दिया है। इसके साथ ही मेडिकल टीमों एवं दवाइयों के साथ एक विशेष विमान को असम भेज दिया है। अभी तक अर्द्धसैनिक बलों के 7300 जवान कोकराझाड़, चिरांग और धुबरी जिलों में तैनात किए जा चुके हैं। इनके अतिरिक्त 11,600 सुरक्षाकर्मियों को हालात सुधारने के लिए राज्य सरकार तैनात कर सकती है। गृह सचिव आरके सिंह ने बताया कि विशेषज्ञों के साथ राष्ट्रीय आपदा प्रबंधक दल को विशेष विमान से भेजा गया है। इससे पहले शुक्रवार शाम को कैबिनेट सचिव अजीत सेठ ने असम के मुख्य सचिव नाबा कुमार दास के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से राहत और बचाव कार्यो की समीक्षा की। इस बैठक में सभी संबंधित मंत्रालयों और विभागों के अधिकारी मौजूद थे।
ईसाई संगठन ने भी केंद्र व व राज्य सरकार को घेरा
शिलांग। मुस्लिम सांसदों के बाद अब ईसाइयों के संगठन ने भी असम हिंसा के लिए सरकार को दोषी ठहराया है। भारत के गिरजाघरों के राष्ट्रीय कौंसिल [एनसीसीआइ] ने केंद्र और असम सरकार पर राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव का आरोप लगाया है। कौंसिल का कहना है कि अगर विदेशियों की घुसपैठ पर लगाम लगाई जाती तो पूर्वोत्तर में ऐसे हालात नहीं बनते। शुक्रवार को गृहमंत्री को लिखे पत्र में एनसीसीआइ के महासचिव रोजर गायकवाड़ ने कहा कि अगर घुसपैठ को लेकर केंद्र व असम सरकार सावधान रहती तो इस हिंसा को रोका जा सकता था। उनके मुताबिक करीब दस हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर अवैध प्रवासियों का कब्जा है। अब वे दूसरे जिलों की ओर बढ़ रहे हैं।
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