विरासत की जंग में 'हथियार' समर्थक
अपमान का हर घूंट कड़वा होता है। कुछ लोग इसे पीकर पीछे हट जाते हैं तो कुछ के दिल में प्रतिशोध की ज्वाला धधकती रहती है। अमेठी के राजघराने में विरासत की जंग में अपमान की आग में अब प्रतिशोध का घी पड़ चुका है। बीते तीन दिनों में जो कुछ भूपति भवन और अमेठी ने देखा वह न तो उम्मीद के अनुरूप था, न ही राजघराने
अमेठी [दिलीप सिंह]। अपमान का हर घूंट कड़वा होता है। कुछ लोग इसे पीकर पीछे हट जाते हैं तो कुछ के दिल में प्रतिशोध की ज्वाला धधकती रहती है। अमेठी के राजघराने में विरासत की जंग में अपमान की आग में अब प्रतिशोध का घी पड़ चुका है। बीते तीन दिनों में जो कुछ भूपति भवन और अमेठी ने देखा वह न तो उम्मीद के अनुरूप था, न ही राजघराने के गौरवशाली अतीत से मेल ही खाता है।
अमीता सिंह की जिद के चलते 25 जुलाई को तब बवंडर खड़ा हो गया था जब उनके समर्थक डॉ. संजय सिंह के पुत्र अनंत विक्रम सिंह व गरिमा सिंह को महल में नहीं जाने दे रहे थे। संभवत: इसी अपमान के प्रतिशोध की कोशिश कल बवाल के रूप में सामने आयी। अनंत विक्रम व गरिमा के समर्थक अमीता सिंह को भूपति भवन में आने से रोकने के लिए खाकी के सामने तन कर खड़े हो गए। टकराहट की स्थिति से निपटने को तैनात पुलिस के लिए चुनौती इतनी बड़ी होगी, उसे अंदाजा भी नहीं रहा होगा।
कानून-व्यवस्था संभालने में लगी पुलिस एक युवक की पिटाई से भीड़ के निशाने पर आ गई। विरासत की जंग भले राजपरिवार में चल रही हो, पर हमेशा इस लड़ाई का हथियार बने हैं समर्थक। संजय सिंह और अमीता सिंह के लोग उनके साथ खड़े हैं तो रियासत की अधिकतर जनता गरिमा सिंह और अनंत विक्रम के समर्थन में मजबूत चट्टान सी तनी खड़ी है जिसको तोड़ने के लिए पुलिस, पीएसी के साथ आरएएफ को लगाया गया था।
राजभवन अपनी लड़ाई को लेकर शांत था, लेकिन बाहर सड़कों पर खून बहना शुरू हो गया। गुस्साई भीड़ से भिड़ंत में पुलिस को कीमत जाबांज सिपाही खोकर चुकानी पड़ी जबकि दो और सिपाही घायल हो गए। ग्रामीणों में भी एक दर्जन लोगों का खून बहा।
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