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    कांग्रेस फिसली तो मनमोहन के सिर फूटेगा ठीकरा

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    Updated: Sun, 23 Mar 2014 07:06 PM (IST)

    सामान्यतया कांग्रेस का गढ़ रहे उत्तर-पूर्व में कांग्रेस इस दफा फिसली तो चाहे-अनचाहे ठीकरा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ही सिर फूटेगा। पूरे क्षेत्र और खासकर असम में यह सवाल तूल पकड़ने लगा है कि 23 वर्षो से यहां का प्रतिनिधित्व कर रहे मनमोहन के एक दशक तक प्रधानमंत्री रहने के बावजूद क्षेत्र में विकास क्यों अछूता रह गया?

    गुवाहाटी, [जयंत गोस्वामी]। सामान्यतया कांग्रेस का गढ़ रहे उत्तर-पूर्व में कांग्रेस इस दफा फिसली तो चाहे-अनचाहे ठीकरा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ही सिर फूटेगा। पूरे क्षेत्र और खासकर असम में यह सवाल तूल पकड़ने लगा है कि 23 वर्षो से यहां का प्रतिनिधित्व कर रहे मनमोहन के एक दशक तक प्रधानमंत्री रहने के बावजूद क्षेत्र में विकास क्यों अछूता रह गया? यही नहीं, पिछले एक-दो वर्षो में जिस तरह उत्तर-पूर्व के लोगों के खिलाफ देश में अलग-अलग जगह हिंसा और भेदभाव बढ़ा उसके लिए भी प्रधानमंत्री कठघरे में हैं।

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    असम में पहले ही चरण से कांग्रेस कसौटी पर होगी। केंद्रीय राज्य मंत्री पवन सिंह घटोवार और रानी नारा के क्षेत्रों में मतदान सात अप्रैल को है। यूं तो उत्तर-पूर्व कांग्रेस के लिए आसान रहा है। पिछले चुनाव में भी पार्टी को उत्तर-पूर्व की 25 में से 13 सीटें मिली थीं। जबकि, भाजपा को सिर्फ चार। लेकिन, इस बार जब विकास को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया जा रहा है तो मनमोहन की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। खासतौर से युवा मतदाताओं के बीच कांग्रेस को लेकर प्रतिक्रिया दिखने लगी है। प्रो. घनाकांत शर्मा कहते हैं, 'पीएम ने जो नुकसान किया है उसकी भरपाई के लिए राहुल गांधी को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। कांग्रेस का यहां जनाधार तो है, लेकिन साल दर साल जिस तरह यह पूरा क्षेत्र नजरअंदाज और विकास से दूर रहा उसके लिए जवाब तो देना होगा।'

    अपने हालिया असम दौरे के समय भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने इसे भांप लिया था। यही कारण है कि उन्होंने कहा था कि अगर भाजपा का कोई साधारण सांसद भी 23 वर्षो से यहां का प्रतिनिधित्व कर रहा होता तो क्षेत्र का कहीं ज्यादा विकास हुआ होता। अगर देश का प्रधानमंत्री भी अपने क्षेत्र का विकास नहीं कर सकता है तो सरकार से क्या उम्मीद की जा सकती है। उन्होंने भारत-बांग्लादेश सीमा की सीलिंग, बेरोजगारी, हर साल आने वाली बाढ़, भारत-बांग्ला भूमि समझौता जैसे कई विषयों का निदान करने का आश्वासन भी दिया था।

    खुद राहुल भी कांग्रेस की जमीन में पड़ रही दरार को शायद देख चुके हैं। कुछ दिनों पहले उत्तर-पूर्व के चुनिंदा लोगों से मुलाकात में उन्होंने स्पष्टीकरण देने की भी कोशिश की थी। बहरहाल, यह देखना बहुत रोचक होगा कि कांग्रेस नेतृत्व अपने प्रधानमंत्री की चूक को किस हद तक दुरुस्त कर सकता है। आशा का सिर्फ एक कारण है, उत्तर-पूर्व के सबसे बड़े राज्य असम में भाजपा और असम गण परिषद के बीच समझौता न होने का थोड़ा लाभ उठाने की कोशिश होगी। (लेखक उत्तर-पूर्व में वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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