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    हार के बाद किरण बेदी ने कहा-आत्‍म मंथन करे भाजपा

    By anand rajEdited By:
    Updated: Tue, 10 Feb 2015 04:06 PM (IST)

    दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप की प्रचंउ जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी ने कहा है कि यह उनकी व्‍यक्‍ितगत पराजय नहीं बल्‍िक भाजपा की हार है। चुनाव परिणामने के बाद एक समाचार चैनल से बात करते हुए बेदी ने कहा कि इस

    नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप की प्रचंउ जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी ने कहा है कि यह उनकी व्यक्ितगत पराजय नहीं बल्िक भाजपा की हार है। चुनाव परिणामने के बाद एक समाचार चैनल से बात करते हुए बेदी ने कहा कि इस हार के लिए पार्टी को आत्ममंथन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कृष्णानगर में काम नहीं हुआ था, जबकि यह सीट लंबे समय से बीजेपी के पास ही रही है। इसके अलावा किरन बेदी ने यह भी कहा कि बीजेपी ने उन्हें सीएम कैंडिडेट बनाने के पैसे नहीं लिए, यह अपने आप में ऐतिहासिक है।

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    किरण बेदी को आम आदमी पार्टी के एसके बग्गा ने 2277 वोटों से हराया। अब सवाल उठता है कि आखिर भाजपा की पारंपरिक सीट से चुनाव लड़ने के बावजूद बेदी को हार का मुंह क्यों देखना पड़ा। इन सवालों के जवाब में कई कारण दिए जा बताए जा रहे हैं, तो आइए जानते हैं आखिर वो कौन-कौन से कारण रहे जिसने किरण बेदी को हराया।

    किरण बेदी की पैराशूट एंट्री

    इन चुनावों में भाजपा ने किरण बेदी की पैराशूट एंट्री कराई। इससे स्थानीय नेताओं की अनदेखी हुई और पार्टी को इसका खामियाजा उठाना पड़ा। बेदी की अचानक हुई एंट्री से स्थानीय नेताओं में गहरा धक्का लगा। पिछले कई सालों से भाजपा में अपनी बारी का इंतजार कर रहे नेताओं को बेदी की इंट्री ने अहसज स्थिति में डाल दिया।

    भाजपा का आंतरिक कलह

    किरण बेदी के पार्टी में शामिल होते ही पुराने व दिग्गज नेताओं में अंसतोष की भावना देखी गई। इसके अलावा कार्यकर्ता भी बेदी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बनाए जाने से नाखुश नजर आए। सभी आलाकमान या पार्टी से निकाले जाने के डर से उनका समर्थन करते दिखे।

    किरण बेदी का व्यवहार

    किरण बेदी भारत की पहली महिला पुलिस ऑफिसर थीं और लगभग चार दशक तक उस विभाग में रहीं। वह कड़क किस्म की अधिकारी थीं और राजनीति में कूदने के बाद भी उनका यह स्वभाव बदला नहीं। शुरू में वह जिस ढंग से कार्यकर्ताओं तथा नेताओं से बातचीत कर रही थीं वह उन्हें पचा नहीं। इससे वे उनसे दूर हो गए। उनके शुरूआती बयान भी कुछ पचे नहीं

    दिल्ली का दिल नहीं जीत पाना

    किरण बेदी भाजपा का दिल जीतने में तो सफल हो गईं लेकिन वो दिल्ली का दिल जीतने में कामयाब नहीं हुईं। इस चुनाव में बेदी अपने आप को जनता के सामने आप नेता अरविंद केजरीवाल से बेहतर साबित नहीं कर सकीं।

    युवाओं को रास नहीं आईं बेदी

    पुलिस विभाग में चार दशक तक रहने के बाद बेदी का अड़ियल स्वभाव दिल्ली के युवाओं को रास नहीं आया। एक महिला होने के बावजूद वे दिल्ली की महिलाओं में सुरक्षा और उनके हितों की आवाज को ज्यादा मजबूत तरीके से नहीं उठा सकीं।

    कुछ नेताओं व सांसदों का विरोध

    बेदी के भाजपा में शामिल होने के बाद पार्टी के कई सांसदों ने उनका विरोध किया। भाजपा में शामिल होने के बाद बेदी ने अपने घर पर बैठक के लिए दिल्ली के सभी सांसदों को बुलाया। ये बात उन्हें रास नहीं आई। मनोज तिवारी ने इसका खुलकर विरोध किया तो वहीं हर्षवर्धन भी उनके घर देर से पहुंचे।

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