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    दिल्ली चुनाव में भाजपा की हार के ये हैं 10 मुख्य कारण

    By anand rajEdited By:
    Updated: Tue, 10 Feb 2015 12:07 PM (IST)

    दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सूनामी ने मोदी मैजिक को खत्म कर दिया है। यहां भाजपा की हालत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हालत जैसी हो गई है। 70 सीटों व ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सूनामी ने मोदी मैजिक को खत्म कर दिया है। यहां भाजपा की हालत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हालत जैसी हो गई है। 70 सीटों वाले विधानसभा में भाजपा के खाते में विपक्ष के नेता का पद पाने लायक सीटें भी मिलती नजर नहीं आ रही हैं। जबकि आम आदमी पार्टी दो-तिहाई से भी ज्यादा सीटें जीतती दिख रही है। आइए अब जानते हैं दिल्ली में भाजपा की हार के मुख्य दस कारण क्या रहे हैं।

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    स्थानीय नेताओं की अनदेखी

    इन चुनावों में भाजपा ने स्थानीय नेताओं की अनदेखी की जिसका खामियाजा उसे उठाना पड़ा। स्थानीय नेताओं में से चेहरा बनाने की बजाय भाजपा ने किरण बेदी की पैराशूट एंट्री कराई। इससे स्थानीय नेताओं में असंतोष देखा गया। लोगों में भी इसका गलत संकेत गया कि भाजपा के पास कोई मजबूत लीडरशिप नहीं है।

    किरण बेदी को मुख्य चेहरा बनाना

    भाजपा की हार में एक प्रमुख कारण किरण बेदी को देर से लाकर उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बनाना भी माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा को जब लगा कि आप दिल्ली में अच्छी स्थिति में आ चुकी है तब उन्होंने सीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर किरण बेदी को जनता के सामने लाने का फैसला किया। उनको सामने लाने में भाजपा ने काफी देर कर दी।

    निगेटिव प्रचार व केजरीवाल को कम कर आंकना

    केजरीवाल के खिलाफ किया गया निगेटिव प्रचार भाजपा को महंगा पड़ गया और केजरीवाल ने उनके 49 दिनों की सरकार को कमजोरी बता रही भाजपा को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। केजरीवाल ने 49 दिनों के सरकार की तुलना मोदी सरकार के 9 माह के काम से कर डाली। भाजपा को निगेटिव प्रचार के कारण अपने विकास कार्यों के बारे में जनता को बताने का समय ही नहीं मिल पाया। इसके अलावा भाजपा ने आप और अरविंद केजरीवाल को मिली लोकप्रियता को भी कम कर आंका।

    चुनाव में देरी -

    दिल्ली में चुनाव करवाने में देरी को प्रमुख कारणों में से एक माना जा रहा है। सवाल उठाए जा रहे थे कि आखिर क्यों एक पार्टी जिसने लोकसभा चुनाव में एकतरफा जीत हासिल की, झारखंड, महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव भी जीते, जम्मू-कश्मीर में भी प्रभावी प्रदर्शन किया, फिर दिल्ली चुनाव से जी क्यों चुराती रही?

    आरएसएस को लेकर असमंजस

    सूत्रों के अनुसार, दिल्ली चुनाव में देरी का कारण भाजपा की प्रदेश इकाई को मजबूती प्रदान करना था और इसके लिए सैकड़ों संघ कार्यकर्ताओं को मैदान में उतारा गया था। लेकिन, इससे स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं में असमंजस की स्थिति बन गई और मामला बिगड़ गया। इस कारण पार्टी मजबूत होने की बजाय कमजोर ही हो गई।

    घर वापसी कार्यक्रम को समर्थन देना

    विश्व हिन्दू परिषद और संघ की ओर से चलाए जा रहे घर वापसी कार्यक्रम को भाजपा के समर्थन ने उनका बेड़ा गर्त कर दिया। घर वापसी का नाम देकर धर्मांतरण का मुद्दा पूरी दुनिया में छाया रहा। इस मुद्दे पर दिल्ली की जनता ने भाजपा को नकार दिया।

    साधु-संतों की बेतुकी बयानबाजी

    भाजपा के समर्थन में साधु-संतों की बयानबाजी ने भी भाजपा को हार के कगार पर पहुंचाया। इतना ही नहीं भाजपा के कुछ साधु सांसदों ने भी धर्मांतरण को लेकर बेतुकी और विवादास्पद बयानबाजी की। इन सबका खामियाजा पार्टी को दिल्ली चुनाव में हार के साथ चुकाना पड़ा।

    भाजपा का अतिआत्मविश्वास

    भाजपा दिल्ली चुनाव में अपनी जीत मानकर चल रही थी और बहुत लंबा वक्त यूं ही गंवा दिया। अमित शाह ने चुनाव के बेहद नजदीक आ जाने के बाद भाजपा ने अभियान तेज किया। उम्मीदवारों के नामों की लिस्ट भी काफी देर से जारी की गई, जबकि आप की रणनीति इससे बिल्कुल उलट रही। उन्होंने हर वर्ग पर फोकस किया और उसका फायदा मिलता दिखा।

    मध्यमवर्ग को लुभाने में नाकामयाब

    माना जा रहा है कि इन चुनावों में भाजपा मध्यमवर्ग के वोटरों को लुभाने में सफल नहीं रही, जबकि दिल्ली में मतदाताओं का एक बड़ा तबका मध्यमवर्ग से ही है। मध्यमवर्ग को भाजपा से खासी उम्मीदें थीं, लेकिन रैलियों के दौरान नरेंद्र मोदी मध्यमवर्ग को लुभाने में कामयाब नहीं रहे. वहीं अरविंद केजरीवाल इस बात को समझने में कामयाब रहे और अब उन्हें इसका फायदा मिलता भी दिखा।

    पेट्रोल-डीजल की घटती कीमतों का श्रेय लेना

    पढ़े-लिखे और समझदार लोग इस बात को समझते हैं कि तेल के दाम क्यों गिर रहे हैं। ऐसे में प्रचार के दौरान इसका श्रेय लेना पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हुआ। रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सभा में कहा, "अगर मेरे जैसे नसीब वाले के आने से तेल के दाम कम हो रहे हैं, तो फिर बदनसीब को लाने की क्या जरूरत।" दिल्ली की जनता में इसका गलत संदेश गया।

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