आशीष ने कहा, 'अपनी बात से क्यों मुकर रही हैं बेदी'
आशीष खेतान आम आदमी पार्टी [आप] के मुख्य रणनीतिकारों में से एक हैं। पॉश से लेकर अनधिकृत कॉलोनियों तक में चुनाव प्रचार के लिए योजना तैयार करने में खेतान की प्रमुख भूमिका रहती है। वह पिछले लोकसभा चुनाव में नई दिल्ली सीट से पार्टी के उम्मीदवार थे। उसके बाद से
आशीष खेतान आम आदमी पार्टी [आप] के मुख्य रणनीतिकारों में से एक हैं। पॉश से लेकर अनधिकृत कॉलोनियों तक में चुनाव प्रचार के लिए योजना तैयार करने में खेतान की प्रमुख भूमिका रहती है। वह पिछले लोकसभा चुनाव में नई दिल्ली सीट से पार्टी के उम्मीदवार थे। उसके बाद से खेतान विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी की तैयारियों को धार देने में व्यस्त हैं। पल-पल बदलते चुनावी माहौल पर जागरण के मुख्य संवाददाता वीके शुक्ला ने उनसे बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश:
चुनाव महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच चुका है। प्रचार में पार्टी किन बातों को अहमियत दे रही है?
हम जो बातें कल उठा रहे थे वही आज भी उठा रहे हैं। हम जनता से पूछ रहे हैं कि बिजली के दाम आधे किसने किए। सात सौ लीटर पानी प्रतिदिन किसने मुफ्त दिया?
हमारे चुनावी कार्यक्रमों में इस बात को उठाया जा रहा है और जनता से भी हमें सकारात्मक सहयोग मिल रहा है। जब हम यह सवाल पूछते हैं तो जनता से जवाब मिलता है कि आप की सरकार ने यह किया था। हमारा अगला सवाल होता है कि वोट किसे दोगे। जनता बड़े उत्साह से कहती है कि इस बार वोट तो आप को ही देंगे।
क्या इसके सहारे चुनाव जीता जा सकता है?
देखिए, अलग-अलग पार्टियों का इस पर अलग-अलग नजरिया हो सकता है, मगर मैं और हमारी पार्टी मानती है कि चुनाव इसी से ही जीता जा सकता है। आपको ध्यान होगा कि पिछली बार हमारे कई ऐसे प्रत्याशी चुनाव जीते थे जिन्होंने एक-दो लाख रुपये भी खर्च नहीं किए थे। हमारी नीयत तब भी साफ थी और आज भी है। हमने न पैसे के दम पर पहले चुनाव जीता था और न अब जीतने की बात करते हैं। हम जनता से भी कह रहे हैं कि आप लोग तय कीजिए कि भ्रष्टाचार दूर करने वाली पार्टी को वोट देना है या घर वापसी की बात करने वालों को चुनना है। आप लोग आम आदमी पार्टी को वोट देना चाहते हैं या काले धन से चुनाव लडऩे वालों को?
आपका इशारा किस तरफ है, आप किसे काले धन से चुनाव लडऩे वाली पार्टी मान रहे हैं?
हमारा इशारा भाजपा व कांग्रेस दोनों की तरफ है। जनलोकपाल के लिए आंदोलन से लेकर आप के गठन तक हमारी यही मांग है कि सभी राजनीतिक दलों को आरटीआइ के दायरे में लाया जाए? हम पूछते हैं कि यदि भाजपा व कांग्रेस के मन में खोट नहीं है तो वे आरटीआइ के दायरे में आने से क्यों डर रही हैं? क्यों कांग्रेस ने इसे अपने शासनकाल में लागू नहीं होने दिया और अब भाजपा लागू नहीं कर रही है। मैं पूछता हूं कि भाजपा की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी भी इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं?
किरण बेदी का इससे क्या लेना-देना है?
किरण बेदी का पूरी तरह से इस मामले से लेना-देना है। जनलोकपाल आंदोलन में किरण बेदी हमारे साथ थीं। हमें हैरानी होती है कि दर्जनों बार उन्होंने यह बात अपने भाषण में कही कि राजनीतिक दलों को आरटीआइ के दायरे में लाया जाना चाहिए। एक साल पहले तक भी वह यह बात दोहराती रही हैं। मगर अब वह इससे मुकर रही हैं।
आम आदमी पार्टी का राजनीतिक दलों को आरटीआइ के दायरे में लाने पर क्या विचार है?
हम तो चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं कि राजनीतिक दलों को आरटीआइ के दायरे में लाया जाए, जनता जान सके कि जिस पार्टी को वह वोट दे रही है उसके पास पैसा कहां से आ रहा है? कहीं वह काला धन तो नहीं ले रही है, हम तो यह कहते हैं कि बेदी जी अपनी पार्टी के घोषणापत्र में भी इसे शामिल कराएं। हमने अपनी पार्टी के घोषणापत्र में इसे शामिल किया है। हम जानते हैं कि यह बेदी जी के बस की बात नहीं है और न ही उनकी पार्टी की नीयत ऐसा करने की है। वह उस पार्टी में हैं जो सिर्फ सपने दिखाती है। केवल एक ही पार्टी है जो कहती है, वह करती है, वह है आम आदमी पार्टी।