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आप की दस्तक से कांग्रेस-भाजपा बेचैन

दिल्ली के बाद पूरे देश में आम आदमी पार्टी (आप) की मजबूत दस्तक ने भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस को खासा बेचैन कर दिया है। भाजपा को जहां महानगरों में नरेंद्र मोदी के प्रभाव में अरविंद केजरीवाल की सेंध का डर सता रहा है, वहीं कांग्रेस अपनी 'आम आदमी' की सियासी जमीन ही पूरी खिसक जाने के खतरे से आशंकित है। कांग्रेस

By Edited By: Published: Mon, 06 Jan 2014 09:20 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jan 2014 09:22 PM (IST)

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। दिल्ली के बाद पूरे देश में आम आदमी पार्टी (आप) की मजबूत दस्तक ने भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस को खासा बेचैन कर दिया है। भाजपा को जहां महानगरों में नरेंद्र मोदी के प्रभाव में अरविंद केजरीवाल की सेंध का डर सता रहा है, वहीं कांग्रेस अपनी 'आम आदमी' की सियासी जमीन ही पूरी खिसक जाने के खतरे से आशंकित है। कांग्रेस में हालांकि एक वर्ग को भरोसा है कि केजरीवाल के उदय से मोदी की तेज रफ्तार पर ब्रेक लगेंगे, लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों को उससे बड़ी चिंता है कि कहीं उसका पूरा कैडर ही आप में न चला जाए।

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केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश से लेकर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह तक सभी आप के करिश्मे से अभिभूत हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पहले ही कह चुके हैं कि वह केजरीवाल से सीखेंगे। जयराम रमेश ने कहा है कि आप ने जिस तरह दिल्ली में सरकार बनाई है वह कांग्रेस और भाजपा जैसे स्थापित दलों के लिए चेतावनी है। उससे यदि नहीं सीखा तो वे इतिहास बन जाएंगे। कभी केजरीवाल के कटु आलोचक रहे दिग्विजय तो अब हर किसी को दिल्ली के मुख्यमंत्री से सीख लेने की सलाह दे रहे हैं।

आप की वजह से जिस तरह खबरों से फिलहाल मोदी गायब हैं, उससे कांग्रेस खेमे में कुछ राहत भी है। उन्हें लग रहा है कि शहरों में तो कम से कम मोदी के प्रभाव को केजरीवाल कमजोर करेंगे। भाजपा भी आप के प्रभाव को आज की तारीख में नकार नहीं रही है। पार्टी मान रही है कि आप में करीब दो दर्जन सीटों पर भाजपा का खेल बिगाड़ने की क्षमता है।

कांग्रेस के रणनीतिकार भी इसी आशा में हैं, लेकिन उनकी बड़ी चिंता है कि कहीं यूपी और बिहार जैसे राज्यों में कांग्रेस का बचा-खुचा कैडर पूरी तरह आप में ही न चला जाए। उनकी चिंता पूरी तरह निर्मूल भी नहीं है। दिल्ली में पहले आप के उभार को कांग्रेस सत्ता विरोधी वोटों का बंटवारा मानकर अपने लिए फायदेमंद समझ रही थी। भले ही आप ने दिल्ली में भाजपा की सरकार न बनने देकर मोदी के आभामंडल को कमजोर कर दिया, लेकिन इसकी ज्यादा कीमत कांग्रेस ने चुकाई। दिल्ली में डेढ़ दशक तक राज करने वाली कांग्रेस दो अंकों तक नहीं पहुंच सकी। फिलहाल दोनों राष्ट्रीय दल आप के प्रभाव को आंकने में लगे हैं, लेकिन फायदा-नुकसान चाहे जो तर्क दें लोकसभा चुनाव में वह केजरीवाल फैक्टर को अहम मान रहे हैं।

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