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    ...जब दो महिलाओं को अपनी सीट देकर ट्रेन के फर्श पर सो गए थे मोदी

    By kishor joshiEdited By:
    Updated: Fri, 27 May 2016 02:07 PM (IST)

    सोशल मीडिया पर इन दिनों एक स्टोरी खूब सुर्खिंया बटोर रही है जिसमें यह जिक्र किया गया है कि ट्रेन में दो सहयात्री महिलाओं को सीट देने के लिए मोदी और वाघेला ट्रेन की फर्श पर सो गए।

    नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार केे दो साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है और सरकार इन दो वर्षों के दौरान हासिल की गई उपलब्धियों का जमकर बखान कर रही है। इन सब के बीच सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला की एक स्टोरी इन दिनों फिर से सुर्खियों में है।

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    यह स्टोरी 2014 में अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' में छपी थी जिसे आजकल फिर से सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया जा रहा है। स्टोरी में मोदी और वाघेला की करीब 26 साल पहले की एक 'रेल यात्रा' का जिक्र है जिसमें इन दो नेताओं ने अपने विनम्र स्वभाव से दो अजनबी महिलाओं पर ऐसी गहरी छाप छोड़ी कि वो आज भी इस ट्रेन यात्रा को नहीं भूलती हैं। इंडियन रेलवे (ट्रैफिक) सर्विस की वरिष्ठ अधिकारी लीना शर्मा ने द हिंदू अखबार में लिखे एक लेख में अपनी 90 की दशक की अहमदाबाद यात्रा का जिक्र करते हुए लिखा है,-

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    मैं और मेरी दोस्त ट्रेन द्वारा लखनऊ से दिल्ली जा रहे थे। दो सांसद भी उसी बोगी में यात्रा कर रहे थे। सब कुछ तो ठीक था लेकिन उनके साथ यात्रा कर रहे 12 लोग जो बिना टिकट के थे, उनका व्यवहार बड़ा खौफनाक था। उन्होंने हमें हमारी सीट से उठने पर मजबूर कर दिया और वहां बैठकर अपना सामान रखकर वो अश्लील कमेंट करने लगे।

    हमें गुस्सा भी आ रहा था और डर भी लग रहा था। यह एक भयावह रात थी हमें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? ऐसा लग रहा था कि सभी यात्री गायब से हो गए हैं। किसी तरह हम अगली सुबह दिल्ली पहुंच गए। फिर हमें अहमदाबाद जाना था लेकिन हम भावनात्मक रूप से कमजोर हो गए थे। मेरी दोस्त को गहरा आघात लगा था और उसने निर्णय कर लिया था कि वह अब अहमदाबाद नहीं जाएगी और दिल्ली ही रहेगी। मैंने निर्णय ले लिया कि मैं जाऊंगी और एक अन्य बैचमेट (उत्पलप्रना हजारिका, जो रेलवे बोर्ड में अभी एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं) मेरे साथ हो गई थी। हम रात को अहमदाबाद की ट्रेन में सवार हो गए और इस बार हमारे पास टिकट नहीं था क्योंकि हमारे पास इतना समय नहीं था कि हम टिकट खरीद सके। हम प्रतीक्षा सूची में थे।

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    हम फर्स्ट क्लास बोगी के टीटी से मिले और उसने उसे अपनी परेशानी के बारे में बताया जिस पर उसने मदद करने का भरोसा दिया। कुछ देर में टीटीई हमें एक कूपे की तरफ ले गया जहां सफेद खादी कुर्ता-पायजामा पहने दो नेता बैठे थे। टीटीई ने हमें कहा कि "ये अच्छे लोग हैं और इस रूट के नियमित पैंसेजर हैंं, डरने की बात नहीं है।" दोनों ही व्यवहारिक रूप से अच्छे लग रहे थे लेकिन पिछली रात के अनुभव से डर भी लग रहा था। उन्होंने अपने आप का परिचय गुजरात के दो भाजपा नेताओं के रूप में दिया। उन्होंने अपना नाम बताया था लेकिन हम जल्दी ही हम उनका नाम भूल गए। हमने भी उन्हें अपने बारे में बताया और कहा कि हम असम से रेलवे के दो प्रशिक्षु अधिकारी हैं। बातचीत का सिलसिला चला तो इतिहास से लेकर राजनीति जैसे मुद्दों पर बात हुई।

    लीना अपने लेख में लिखती हैं कि, उन दो नेताओं में जो सीनियर (वाघेला) थेे वह काफी जोशीले स्वभाव केे थेे जबकि दूसरेे जवान नेता (नरेंद्र मोदी) ज्यादातर चुप थेे, लेकिन उनकी बॉडी लैंग्वेज से लग रहा था कि हम जो चर्चा कर रहे हैं वह अच्छी तरह से उसे सुन रहेे हैंं। तभी मैंने श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत का जिक्र किया तो वह अचानक से बोलेे, "आप कैसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जानती हैं?" तब मैंने उन्हें बताया कि मेरे पिता ने मुझे उनके बारे में बताया था।

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    इन दो नेताओं ने हमें यह कहते हुए गुजरात भाजपा ज्वाइन करने का न्योता भी दिया लेकिन हमने हंंसते हुए कहा कि हम असम से हैं तब उन्होंने कहा हमें कोई दिक्कत नहीं हैं हम आपके टैलेंट की कद्र करते हैं। तभी डिनर आ गया और भोजन की चार शाकाहारी थालियां आई। सबने भोजन किया और सभी का बिल उस नौजवान (मोदी) ने चुकता किया। तभी टीटीई आया और उसने कहा कि ट्रेन में सीट नहीं हैं और मैं आपके लिए सीट की व्यवस्था नहीं कर सकता। तभी दोनों आदमी (मोदी और वाघेला) अपनी सीट से खड़े हो गए कहा कोई बात नहीं हम आपके लिए व्यवस्था कर देते हैं। दोनों ने अपनी सीट हमें दे दी और खुद ट्रेन के फर्श पर अपनी चादर बिछाकर सो गए।

    यह कहानी लिखते हुए लीना शर्मा लिखती हैं कैसा विपरीत उदाहरण था पिछली रात दो नेताओं के साथ हमारी यात्रा कितनी भयावह रही था जबकि यह यात्रा यादगार हो गई थी। अगली सुबह जब ट्रेन अहमदाबाद पहुंची तो दोनों ने हमसे किसी भी परेशानी के लिए मदद करने का आश्वासन दिया। वरिष्ठ नेता (वाघेला) हमसे कहा कि किसी भी तरह की परेशानी हो तो हमारे दरवाजे आपके लिए हमेशा खुले हैं। जबकि दूसरे व्यक्ति (मोदी) ने हमसे कहा, "मेरे पास कोई पक्का घर तो है नहीं कि मैं आपको आमंत्रित कर सकूं लेकिन आप उनका (वाघेला) आमंत्रण स्वीकार कर सकती हैं।" ट्रेन के रूकने से पहले मैंने अपनी डायरी निकाली और फिर से उनका नाम पूछा मैंने तुरंत दोनों का नाम लिखा: शंकर सिंह वाघेला और नरेंद्र मोदी।

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    लेखिका लीना शर्मा ने इस घटना का जिक्र 1995 में पहली बार असम के एक अखबार के लिए लिखे अपने लेख में किया था। उस वक्त लीना ने गुजरात से ताल्लुक रखने वाले दो अज्ञात राजनेताओं के नाम यह लेख लिया था और लीना को इस बात का जरा सी भी आभास नहीं था कि वो जिन दो राजनेताओं का जिक्र अपने लेख में कर रही हैं, वो आने वाले दिनों में मशहूर हो जाएंगे। वाघेला 1996 में गुजरात के सीएम बने जबकि मोदी 2001 से लगातार 2014 तक गुजरात के सीएम बने और आज वो देश के पीएम हैं।