केवल यहीं पर है ये दो मंदिर, जिनसे जुड़ी है एक दिलचस्प कहानी
महाभारत के दुर्योधन और कर्ण का मंदिर कहीं देखा या सुना नहीं होगा आपने। पर उत्तराखंड के दो गांवों में इन दोनों के मंदिर हैं और इन मंदिरों से जुड़ी है बड़ी रोचक कहानी... जानें यहां।
नेतवार/जाखोली। महाभारत के नकारात्मक भूमिका वाले दुर्योधन के किसी मंदिर के बारे में सुना है या फिर कुंती द्वारा त्याग दिए गए संतान कर्ण के मंदिर, जिसने कौरवों के साथ मिलकर अपने भाइयों ‘पांडवों’ के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
इन दोनों के मंदिर उत्तराखंड के सूदूर इलाके में है। इन दोनों मंदिरों में इनकी मूर्तियां रखी हैं और इसके पीछे दिलचस्प कहानी भी है। नेतवार गांव के लोग अपने गांव में स्थित कर्ण के मंदिर होने से खुद को गर्वित महसूस करते हैं वहीं जखोली के निवासी दुर्योधन के मंदिर के लिए ऐसा महसूस नहीं करते, उन्हें अपने गांव में दुर्योधन के मंदिर होने से इतना अफसोस है कि कुछ दिनों पहले ही इस मंदिर को शिव मंदिर में बदल दिया गया। गांव में सोने की परत वाला कुल्हाड़ी भी है जो कहा जाता है कि कौरव राजकुमार का है।
रुद्रप्रयाग के नजदीक स्थित जखोली में दुर्योधन के बारे में पूछे जाने पर लोगों में चुप्पी होती है या फिर चेहरे पर अजीब से भाव।
ग्रामीण पूरण सिंह नौटियाल ने कहा, ‘हमारे पूर्वजों ने हमारे गांव से जुड़ी दुर्योधन की कई काल्पनिक कहानियों को स्वीकारा। पिछले कई सालों से विभिन्न मीडिया रिपोर्ट ने इन कहानियों को स्थायी बना दिया।‘ गांव के पोस्टमास्टर जनक सिंह रावत व मंदिर की कमेटी प्रमुख ने कौरवों से किसी तरह के जुड़ाव से इंकार कर दिया।
उन्होंने आगे बताया, ‘हमारे भगवान हमेशा शिव रहे हैं और इसलिए हमारे गांव के मंदिर का नाम सोमेश्वर मंदिर है।‘ नाम न बताने की शर्त पर एक दूसरे ग्रामीण ने यह स्वीकार किया कि गांव में दुर्योधन का मंदिर था लेकिन नौ वर्ष पहले, एक बैठक के दौरान गांववालों ने निर्णय लिया कि दुर्योधन से दूरी बनाना ठीक होगा क्योंकि महाभारत के इस पात्र से गांव की केवल बदनामी ही होगी। उन्होंने आगे बताया कि अब भी गांव वाले स्थानीय देवता की पूजा के दौरान दुर्योधन के उस सोने की कुल्हाड़ी को लेकर ही पारंपरिक नृत्य करते हैं।
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जबकि नेतवार से करीब 50 किमी दूर कर्ण के मंदिर कर बिल्कुल अलग तस्वीर है। इस गांव में दानवीर कर्ण के साथ जुड़ने का गर्व महसूस करते हैं। कर्ण का अनुसरण करते हुए गांव के हर परिवार की ओर से दान दिया जाता है और यहां दहेज लेने और देने की परंपरा पर प्रतिबंध है। गांव के प्रधान, मनमोहन प्रसाद नौटियाल ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘कर्ण हमारे आदर्श और हमारे भगवान हैं। हम उनके आदर्शों का अनुसरण करते हैं। कुछ दिनों पहले एक ग्रामीण ने दहेज लेने की कोशिश की थी पर वह मुश्किलों में फंस गया था। तब से कोई ऐसा नहीं करता।‘
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