यूनाइटेड बैंक में नियमों को ताक पर रख होता था काम
बेतहाशा फंसे कर्ज (एनपीए) की वजह से सरकारी बैंक यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है। मगर बैंक को इस मोड़ पर लाने में इसका शीर्ष प्रबंधन ही जिम्मेदार है। महीनों तक न सिर्फ बैंक के एनपीए को दबा कर रखा गया, बल्कि कर्ज बांटने में भी जिस तरह की लापरवाही दिखाई गई, वह भी
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बेतहाशा फंसे कर्ज (एनपीए) की वजह से सरकारी बैंक यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है। मगर बैंक को इस मोड़ पर लाने में इसका शीर्ष प्रबंधन ही जिम्मेदार है। महीनों तक न सिर्फ बैंक के एनपीए को दबा कर रखा गया, बल्कि कर्ज बांटने में भी जिस तरह की लापरवाही दिखाई गई, वह भी अपने आप में कई सवाल खड़े करता है।्र
वित्त मंत्रालय ने यूनाइटेड बैंक की स्थिति पर जो रिपोर्ट तैयार करवाई है, उससे साफ है कि बड़े बैंक कर्ज आवंटन में किस तरह का गड़बड़झाला कर रहे हैं। अक्टूबर-दिसंबर 2013 में यूनाइटेड बैंक के फंसे कर्ज में 188 फीसद की तेज बढ़ोतरी हुई थी। इससे बैंक को 1,238 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। तब रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय सक्रिय हुए थे।
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बैंक की सीएमडी अर्चना भार्गव को समय से पहले ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दे दी गई। वित्त मंत्रलय ने बैंक से पूरे मामले पर रिपोर्ट देने और पिछली कई तिमाहियों के तमाम कागजात मंगवाए थे। इसका अध्ययन अभी किया जा रहा है। मगर अब यह साफ होने लगा है कि यहां कई तरह की अनियमितताएं लंबे समय से चल रही थी।
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सूत्रों के मुताबिक पिछली तीन तिमाहियों की रिपोर्ट से साफ है कि यूनाइटेड बैंक का एनपीए लगातार हाथ से निकलता जा रहा था। मगर इसे काबू में करने को लेकर शीर्ष प्रबंधन की तरफ से कोई त्वरित कार्रवाई नहीं की गई। समय से पहले एनपीए को पहचान करने और उनकी वसूली की कार्रवाई के लिए कोई कदम बैंक की तरफ से नहीं उठाया गया। जबकि रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय बैंक को इस बारे में बार-बार ताकीद कर रहे था।
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सूत्रों के मुताबिक छोटे कर्ज के आवंटन और वितरण में भी निर्धारित नियमों का पालन नहीं होता था। वित्त मंत्रलय इस रिपोर्ट के आधार पर बैंक को पैकेज देने या दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने का कदम उठाएगा।
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