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कानूनी लड़ाई का खर्च वसूलने की तैयारी में सेबी

बाजार नियामक सेबी अब विभिन्न कानूनी कार्रवाइयों पर होने वाले खर्च की भरपाई डिफॉल्टरों से वसूल किए जाने वाले जुर्माने की रकम से करने की तैयारी कर रहा है। सेबी के आदेशों को विभिन्न अदालतों और ट्रिब्यूनल में बार-बार चुनौती दिए जाने से कानूनी खर्च लगातार बढ़ रहा है। नियामक चाहता है कि डिफॉल्टरों से वसूल किए ज

By Edited By: Published: Wed, 19 Mar 2014 09:39 AM (IST)Updated: Wed, 19 Mar 2014 09:40 AM (IST)

नई दिल्ली। बाजार नियामक सेबी अब विभिन्न कानूनी कार्रवाइयों पर होने वाले खर्च की भरपाई डिफॉल्टरों से वसूल किए जाने वाले जुर्माने की रकम से करने की तैयारी कर रहा है। सेबी के आदेशों को विभिन्न अदालतों और ट्रिब्यूनल में बार-बार चुनौती दिए जाने से कानूनी खर्च लगातार बढ़ रहा है। नियामक चाहता है कि डिफॉल्टरों से वसूल किए जाने वाले जुर्माने को सरकारी खजाने में जमा करने से पहले उसमें से कानूनी कार्रवाई पर होने वाले खर्च की राशि उसे अदा की जाए।

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पिछले तीन वित्त वर्षो में नियामक को कानूनी कार्रवाइयों पर सालाना चार से पांच करोड़ रुपये की रकम खर्च करनी पड़ी है। चालू वित्त वर्ष में खर्च की यह रकम और ज्यादा रह सकती है। इसके अलावा सेबी कंपनियों की विभिन्न मांगें पूरी करने के लिए प्रोसेसिंग शुल्क वसूलने की भी तैयारी कर रहा है। फिलहाल, नियामक कंपनियों को कई सेवाएं मुफ्त में उपलब्ध करा रहा है। यह सेवाएं देने में नियामक को खासी लागत वहन करनी पड़ती है।

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सूत्रों के मुताबिक, केवल निवेशकों की शिकायतों पर कार्रवाई को छोड़कर बाकी सभी सेवाओं पर यह शुल्क लगाने का प्रस्ताव है। प्रोसेसिंग में लगने वाले समय, लागत और प्रक्रिया के आधार पर यह शुल्क तय किया जाएगा। इसके अलावा, अनौपचारिक दिशानिर्देश और कंसेंट सेटलमेंट जैसी सेवाओं की फीस भी बढ़ाई जाएगी।

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इस सप्ताह आयोजित होने वाली सेबी बोर्ड की बैठक में इन प्रस्तावों पर विचार हो सकता है। सेबी की रेशनलाइजेशन ऑफ फाइनेंशियल रिसोर्सेज कमेटी (सीआरएफआर) की सिफारिशों के आधार पर यह प्रस्ताव तैयार किया गया है। इस समिति ने कंपनियों और बाजार के मध्यस्थों को दी जाने वाली सेवाओं के मौजूदा शुल्क दरों में भी बढ़ोतरी की सिफारिश की है।

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समिति ने विभिन्न नियामकीय और निवेशक केंद्रित गतिविधियों के संचालन के लिए सेबी के आर्थिक संसाधन बढ़ाने के लिए यह सिफारिशें की हैं। कानूनी लागत के मामले में समिति ने सिफारिश की है कि वसूल किए गए जुर्माने को सरकारी खजाने में जमा करने से पहले कानूनी लागत काटी जाए।

सेबी (संशोधन) अधिनियम 2002 में यह प्रावधान किया गया था कि वसूल किए गए जुर्माने की रकम सरकारी खजाने में जमा की जाए। इससे पहले वसूली की यह रकम सेबी के फंड में ही जमा होती थी। सीआरएफआर ने कहा कि सेबी के कई आदेशों को प्रतिभूति अपीलीय ट्रिब्यूनल (सैट) और सुप्रीम कोर्ट तक में चुनौती दी जाती है। इससे सेबी को कानूनी लड़ाई पर काफी रकम खर्च करनी पड़ती है। इसलिए इस खर्च की वसूली जुर्माने की रकम में से की जानी चाहिए।


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