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सरकार ने ही बिगाडे़ आर्थिक हालात: सुब्बाराव

नई दिल्ली [जाब्यू]। आर्थिक नीतियों को लेकर केंद्र सरकार पर अब तक सिर्फ विपक्ष और उद्योग जगत ही हमले कर रहा था। अब रिजर्व बैंक के निशाने पर भी सरकार आ गई है। कार्यकाल समाप्त होने से एक हफ्ते पहले आरबीआइ गवर्नर डी सुब्बाराव ने मौजूदा आर्थिक दुश्वारियों के लिए सरकार को सीधे तौर पर दोषी ठहराया है। मुंबई में गुरुवार को अपने अंतिम भाषण

By Edited By: Published: Fri, 30 Aug 2013 02:14 AM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)
सरकार ने ही बिगाडे़ आर्थिक हालात: सुब्बाराव

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। आर्थिक नीतियों को लेकर केंद्र सरकार पर अब तक सिर्फ विपक्ष और उद्योग जगत ही हमले कर रहा था। अब रिजर्व बैंक के निशाने पर भी सरकार आ गई है। कार्यकाल समाप्त होने से एक हफ्ते पहले आरबीआइ गवर्नर डी सुब्बाराव ने मौजूदा आर्थिक दुश्वारियों के लिए सरकार को सीधे तौर पर दोषी ठहराया है। मुंबई में गुरुवार को अपने अंतिम भाषण में सुब्बा ने एक तरह से आईना दिखाते हुए संकेतों में कहा कि अगर दो वर्ष पहले सरकार ने राजकोषीय घाटे को काबू में करने के सही कदम उठाए होते तो आज अर्थव्यवस्था के ये हालात नहीं होते।

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सख्त मौद्रिक नीति को लेकर सरकार और उद्योग जगत अक्सर आरबीआइ गवर्नर की आलोचना करते रहे हैं। इसे स्वीकार करते हुए सुब्बाराव ने कहा कि सरकार ने वर्ष 2009 से वर्ष 2012 के बीच अगर चालू खाते के घाटे को कम करने के लिए कदम उठाए होते तो ब्याज दरों को लेकर यह स्थिति नहीं होती। चालू वित्त वर्ष के दौरान भी चालू खाते के घाटे के नियंत्रण को लेकर सरकार के कदमों पर संशय जताते हुए उन्होंने कहा कि इसके सामान्य स्तर से ज्यादा ही रहने के आसार हैं।

सुब्बा के मुताबिक, ब्याज दरों में वृद्धि या इसमें पर्याप्त कमी नहीं होने का असर विकास दर पर पड़ा है। मगर सिर्फ इस वजह से आर्थिक विकास दर नहीं घटी है। आपूर्ति पक्ष और गवर्नेस की कमियां भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। इसका फायदा आगे दिखाई देगा। आगे विकास दर प्रभावित न हो इसके लिए जरूरी है कि अभी महंगे कर्ज को वहन किया जाए। सबसे बड़ी बात यह है कि ब्याज दरों को लेकर रिजर्व बैंक के हाथ सरकार की गलत वित्ताीय नीतियों ने बांध दिए। वित्ताीय हालात में तेजी से सुधार होते मौद्रिक नीतियों को भी उसी हिसाब से बदला जाता।

सुब्बा ने कुछ भी अलग नहीं कहा : चिदंबरम

वित्ता मंत्री पी चिदंबरम ने सुब्बाराव की आलोचना को लेकर कहा कि इसमें कुछ भी नई बात नहीं है। उन्होंने मंगलवार को संसद में कहा था कि मौजूदा हालात के लिए विदेशी वजहों के अलावा घरेलू कारण भी जिम्मेदार हैं। वर्ष 2009-11 के दौरान लिए गए निर्णयों के चलते ही सरकार का राजकोषीय घाटा और चालू खाते का घाटा सीमा पार कर गया। यह वही वक्त था, जब प्रणब मुखर्जी वित्ता मंत्री थे। उन्होंने संसद को आश्वस्त भी किया कि वर्ष 2013-14 के दौरान चालू खाते के घाटे को 70 अरब डॉलर से ऊपर जाने नहीं दिया जाएगा। इससे रुपये को मौजूदा स्तर से नीचे लाने में मदद मिलेगी। वैसे, चिदंबरम ने बीते साल अक्टूबर में कहा कि अगर आर्थिक विकास की चुनौतियों से अकेले निपटना पड़ा तो यही सही।

''उम्मीद है कि वित्ता मंत्री एक दिन कहेंगे कि मैं अक्सर रिजर्व बैंक से परेशान हो जाता हूं। इतना परेशान कि पैदल टहलने के लिए निकल जाना चाहता हूं, भले ही अकेले जाना पड़े। लेकिन भगवान का शुक्र है कि रिजर्व बैंक मौजूद है।''

डी सुब्बाराव

गवर्नर, रिजर्व बैंक


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