इस शख्स की सैलरी है 1 रुपये, कंपनी का कारोबार 13000 करोड़ से ज्यादा
ऐसा व्यक्ति जिसने देश के आइटी सेक्टर को आसमान पर पहुंचा दिया, जिसकी वजह से इस कंपनी को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ आइटी कंपनी के तौर पर देखा जाता है उसकी सैलरी मात्र एक रुपया है जबकि कारोबार तेरह हजार करोड़ रुपये से ज्याद। जी हां, वो कोई और नहीं बल्कि इंफोसिस के सहसंस्थापक एनआर नारायणमूर्ति हैं।
नई दिल्ली। ऐसा व्यक्ति जिसने देश के आइटी सेक्टर को आसमान पर पहुंचा दिया, जिसकी वजह से इस कंपनी को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ आइटी कंपनी के तौर पर देखा जाता है उसकी सैलरी मात्र एक रुपया है जबकि कारोबार तेरह हजार करोड़ रुपये से ज्यादा। जी हां, वो कोई और नहीं बल्कि इंफोसिस के सहसंस्थापक एनआर नारायणमूर्ति हैं।
एक वक्त था जब इंफोसिस हर साल कामयाबी की नई ऊंचाइयों को छू रही थी। लेकिन जैसे ही नारायण मूर्ति का नाता कंपनी से छुटा वैसे ही कंपनी की परफॉर्मेस खराब होने लगी। नारायण ने एक बार फिर इंफोसिस में वापसी की और सबको हैरान कर दिया। इंफोसिस की खराब हालत को संभालने के लिए एनआर नारायण मूर्ति कंपनी में लौट आए।
इंफोसिस ने मारा छक्का, मुनाफा बढ़कर 2875 करोड़, चौंका दलाल स्ट्रीट
साल 1981 में छह अन्य इंजीनियर्स के साथ मिलकर नारायण मूर्ति ने इंफोसिस को शुरू किया। इसके लिए उन्होंने उस समय 10,000 रुपये का निवेश किया वो भी रिश्तेदारों और परिवारवालों से उधार लेकर।
नारों से गरीबी नहीं मिटती: नारायण मूर्ति
क्या आप जानते हैं इस बड़े आदमी ने पिछले साल जब कंपनी में वापसी की तो उसकी सैलरी कितनी थी। नारायण मूर्ति ने जब वापसी की तो उन्होंने मात्र 1 रुपये प्रति वर्ष की सैलरी पर कुर्सी संभाली। हाल ही में जारी इंफोसिस के वित्तीय परिणामों ने सभी को चौंका दिया। कंपनी का कारोबार बढ़कर 13,064 करोड़ रुपये पर पहुंच गया और मुनाफा बढ़कर 2,875 करोड़ रुपये दर्ज किया गया। इससे पहले इंफोसिस की वित्तीय हालत नाजुक दौर से गुजर रही थी।
ऐसा ही उदाहरण विदेशों में देखा गया जब बड़ी कंपनियों के सीईओ 1 डॉलर का वेतन लेकर कंपनी का परिचालन कर रहे थे। सिटी ग्रुप की माली हालत खराब होने के बाद कंपनी के सीईओ विक्रम पंडित ने सैलरी के नाम 1 डॉलर का भुगतान लेना शुरू किया था। इसके अलावा, फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग, गूगल के लैरी पेज, हेल्वेट पैकार्ड के मेग वाइटमैन उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने कंपनी को आगे बढ़ाने और एक आदर्श साबित करने के लिए 1 डॉलर सैलरी पर काम किया। हालांकि, इस एक डॉलर सैलरी की शुरुआत अमेरिका में वर्ल्ड वॉर 1 के बाद हुई जब सरकारी कर्मचारियों ने इस सैलरी पर काम किया था।

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