रिजर्व बैंक ने कहा कि कर्ज देने से पहले खुद जांच करें बैंक
करोड़ों रुपए कर्ज लेकर ना चुकाने वाले कंपनियों और कर्जदारों पर रिजर्व बैंक सख्त रूख अपनाने जा रही है। इसी के तहत रिजर्व बैंक ने सोमवार को बैंकों से कहा कि वे थर्ड पार्टीज से क्रेडिट प्रोसेसिंग का कामकाज न कराएं।
नई दिल्ली। करोड़ों रुपए कर्ज लेकर ना चुकाने वाले कंपनियों और कर्जदारों पर रिजर्व बैंक सख्त रूख अपनाने जा रही है। इसी के तहत रिजर्व बैंक ने सोमवार को बैंकों से कहा कि वे थर्ड पार्टीज से क्रेडिट प्रोसेसिंग का काम न कराएं।
उन्होंने कहा कि अगर क्रेडिट प्रोसेसिंग का काम बाहरी लोगों से कराया जाएगा तो वही हालत होगी, जिसका सामना अभी बैंक कर रहे हैं। उनका इशारा बैंकों के डूबते कर्जे की तरफ था।
आरबीआई के डेटा के मुताबिक, दिसंबर 2014 तक सरकारी बैंकों का डूब रहा कर्ज एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स) 2,50,531 करोड़ रुपये था।
जानबूझकर कर्जा ना चुकाने वाले कर्जदारों के बारे में मूंदड़ा ने कहा, 'जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए और जल्द से जल्द उनसे कर्ज वसूली की कार्रवाई शुरू कर देना चाहिए।'
उन्होंने कहा कि नॉन-परफॉर्मिंग एकाउंट्स से बैंकिंग सिस्टम पर बुरा असर होता है। यह बात सबसे ज्यादा ईमानदार कस्टमर्स के खिलाफ है।
मूंदड़ा ने कहा कि देश में क्रेडिट सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए इस तरह के अवांछित तत्वों को तुरंत बाहर करना चाहिए। उन्होंने बताया, 'इसके लिए कोशिशें भी हो रही हैं। सेंट्रल फ्रॉड रजिस्ट्री बनाई जा रही है। इससे बैंकों को चूना लगाने वालों की जानकारी शेयर करने में मदद मिलेगी।'
आरबीआई और इंडियन बैंकिंग एसोसिएशन (आईबीए) फ्रॉड के बारे में आगाह भी कर रहे हैं। मूंदड़ा ने बताया कि लोन और एडवांसेज को लेकर भी इस तरह की पहल की जा रही है।
रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर ने कहा कि जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों और फर्जीवाड़ा करने वालों के लिए बैंकिंग सिस्टम के दरवाजे बंद किए जाने चाहिए। उन्हें और कर्ज नहीं मिलना चाहिए। मूंदड़ा ने बैंकों को एक-दूसरे की देखादेखी में किसी खास सेक्टर को लोन देने की भेड़चाल से भी बचने की सलाह दी।
उन्होंने कहा कि किसी उभरते हुए सेक्टर की कंपनियों को कर्ज देने से पहले उस बारे में पर्याप्त छानबीन कर लेनी चाहिए। यह देखना चाहिए कि इसमें कितना रिस्क है।
उन्होंने कहा, 'मैंने बैंकों में यह भेड़चाल देखी है। ये मामले कुछ कथित सनराइज सेक्टर्स की फंडिंग से जुड़े हैं। इन मामलों में हर बैंक किसी एक सेक्टर को लोन देने की जल्दबाजी दिखाता है।'
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