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    बदनामी के भंवर में फंसा रहा कोयला क्षेत्र

    By Edited By:
    Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)

    कोयला उद्योग के लिए 2013 बदनामी का साल रहा। ब्लॉक आवंटन में हुई धांधली की आग से उठे धुंए ने प्रधानमंत्री कार्यालय [पीएमओ] तक पर कालिख पोत दी। कोयला घोटाले ने संसद नहीं चलने दी और सीबीआइ की चार्जशीट में कुमार मंगलम बिड़ला का नाम आने के बाद खूब हो हल्ला मचा। सार्वजनिक क्षेत्र की कोयला कंपनी कोल इंडिया [सीआइएल] भी बिजली कंपनियों के साथ ईधन आपूर्ति समझौते [एफएसए] पर झगड़ती रही।

    नई दिल्ली। कोयला उद्योग के लिए 2013 बदनामी का साल रहा। ब्लॉक आवंटन में हुई धांधली की आग से उठे धुंए ने प्रधानमंत्री कार्यालय [पीएमओ] तक पर कालिख पोत दी। कोयला घोटाले ने संसद नहीं चलने दी और सीबीआइ की चार्जशीट में कुमार मंगलम बिड़ला का नाम आने के बाद खूब हो हल्ला मचा। सार्वजनिक क्षेत्र की कोयला कंपनी कोल इंडिया [सीआइएल] भी बिजली कंपनियों के साथ ईधन आपूर्ति समझौते [एफएसए] पर झगड़ती रही।

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    लोकसभा और राज्यसभा के कई सत्र कोयला घोटाले के चलते हंगामे की भेंट चढ़ गए। मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने ब्लॉक आवंटन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग जारी रखी। वर्ष 2006-09 तक प्रधानमंत्री के पास ही कोयला मंत्रालय था। इसलिए बिना नीलामी के ब्लॉक आवंटन में वह फंस गए। वहीं, कोयला मंत्रालय से इस विवाद से जुड़ी फाइलें गायब हो गई और विपक्षी दलों को नया मौका मिल गया। कोयले की कालिख को धोने के लिए कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने गुम फाइलों को ढूंढ़ने के लिए टीम गठित कर दी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने यह काम सीबीआइ को सौंपने का निर्देश दिया।

    पूर्व कोयला सचिव पारेख से पूछताछ की तैयारी

    कोयला क्षेत्र में नया ड्रामा सीबीआइ द्वारा उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला और पूर्व कोयला सचिव पीसी पारिख के खिलाफ मामला दर्ज कराने के बाद शुरू हुआ। इन पर आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जाने से बाद उद्योग जगत खफा हो गया। वहीं, पारिख ने कहा कि प्रधानमंत्री आखिरी फैसला लेने का हक रखते हैं। यदि केस चलाया जाना है तो उन्हें क्यों छोड़ा जा रहा है। सांसद नवीन जिंदल और पूर्व कोयला राज्य मंत्री डी. नारायण राव पर सीबीआइ की एफआइआर में धोखाधड़ी एवं भ्रष्टाचार के आरोप तय होने के बाद यह सेक्टर एक बार फिर सुर्खियों में आ गया।

    कैग ने अनुमान लगाया कि 57 कोयला ब्लॉक के गलत तरीके से हुए आवंटन के चलते सरकारी खजाने को करीब 1.86 लाख करोड़ का नुकसान हुआ। इसके बाद मंत्रालय ने भी कंपनियों को आवंटित हुए ब्लॉक के विकास एवं खनन पर कड़ी नजर रखनी शुरू कर दी। कई कंपनियों से ब्लॉक वापस लिए गए और कई को नोटिस भी भेजे जा चुके हैं। वहीं, एनटीपीसी और कोल इंडिया के बीच कोयले की गुणवत्ता को लेकर झगड़ा शुरू हो गया। एनटीपीसी ने आरोप लगाया कि दुनिया की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक आपूर्ति को पूरा करने के लिए पत्थर और बोल्डर सप्लाई कर रही है। इस आरोप से खफा कंपनी ने आपूर्ति बंद कर दी, जिसके चलते सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा। कोल इंडिया के ईधन आपूर्ति समझौते पर सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद कई कंपनियों ने हस्ताक्षर नहीं किए।

    कोल इंडिया के विनिवेश का कदम भी सरकार पर भारी पड़ा। कर्मचारियों के भारी विरोध और हड़ताल की धमकी के चलते 10 फीसद विनिवेश के प्रस्ताव को घटाकर पांच फीसद पर लाना पड़ा। लोकसभा में सरकार ने कोयला सेक्टर के नियामक का गठन करने के लिए विधेयक लाया। तमाम विवादों के बीच सरकार ने इस साल 17 कोयला खदानों का आवंटन भी किया।