पर्यावरण के साथ मन की सफाई
साफ-सफाई भी अन्य कौशलों की भांति शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग है। यदि एक शिक्षक बच्चों को कक्षा में गंदगी फैलाकर चले जाने देते हैं, तो शायद वे उन्हें कुछ भी नहीं सिखा रहे हैं।
अरुणाभ सिंह (प्रधानाचार्य) - नेहरु वर्ल्ड स्कूल, गाजियाबाद
स्वच्छता का अर्थ केवल अपने आपको साफ रखना ही नहीं, अपितु अपने पर्यावरण, परिवेश, शारीरिक व मानसिक स्वच्छता से भी है। एक व्यक्ति अपने किसी क्षेत्र के ज्ञान के मामले में बेशक परिपूर्ण हो, किन्तु अंदरूनी सफाई के बिना उसका दिमाग बेकार, मरुस्थल की भांति होता है। साफ-सफाई सिर्फ व्यक्ति की सेहत ही नहीं बनाते, बल्कि इससे आत्मविश्वास भी विकसित होता है। इसी प्रकार कोई भी आदत बचपन से ही विकसित होती है। इसकी शुरुआत अध्यापक एवं अभिभावक ही कर सकते हैं। हमें बच्चों को शिक्षा के माध्यम से स्वच्छता का उद्देश्य, महत्व तथा आवश्यकता को समझाना चाहिए। स्कूलों में विभिन्न प्रतियोगिताओं व क्रियाओं के माध्यम से छात्रों के बीच स्वच्छता को प्रसारित किया जाना चाहिए। जैसे-स्कूल परिसर, कक्षा, लैब की सफाई, स्वच्छता पर पोस्टर प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता, कविता पाठ, समूह चर्चा, डॉक्यूमेंट्री व वीडियो द्वारा। एक समाज निर्माता होने के नाते स्कूल की जिम्मेदारियां इस क्षेत्र में और आधिक बढ़ जाती हैं। पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए विद्यालय परिसर में वृक्षारोपण कराना, नुक्कड़ नाटकों द्वारा मलिन बस्तियों में सफाई की महत्ता समझाना, जनजागरूकता रैली निकालना आदि जैसी पहल नियमित रूप से करनी चाहिए। सफाई को हम केवल किसी वर्ग या समूह विशेष का काम न समझें, बल्कि अपने स्तर पर प्रत्येक व्यक्ति अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझे तभी हमारा वातावरण, समाज व देश साफ रह पाएगा।
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