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    जानिए क्यों मनाया जाता है हिंदी दिवस

    By Rahul SharmaEdited By:
    Updated: Wed, 14 Sep 2016 10:51 AM (IST)

    आज हम आपको बताएंगे हिंदी दिवस से जुड़ी वो बाते जिनका जानना आपके लिए बहुत जरूरी है।

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    आज हमारा देश हिंदी दिवस मना रहा है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि हर साल हिंदी दिवस 14 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है। आज हम आपको बताएंगे हिंदी दिवस से जुड़ी वो बाते जिनका जानना आपके लिए बहुत जरूरी है।

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    वर्ष 1918 में महात्मा गांधी ने हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी भाषा को राजभाषा बनाने को कहा था। गांधी जी ने जनमानस की भाषा भी कहा था। बाद में 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने निर्णय लिया था कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। इसी दिन भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 (1) में दर्शाया गया है कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। चूंकि यह निर्णय 14 सितंबर को लिया गया था। इस कारण इस दिन को हिंदी दिवस के लिए काफी को श्रेष्ठ माना गया था। और वर्ष 1953 से पूरे भारत में इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

    हिंदी की लोकप्रियता के तीन कारण हैं। एक, प्रदेश का भाषाई गुट दूसरे गुट की भाषा नहीं समझ पाता लेकिन हिंदी सभी लोग समझते हैं। दूसरा कारण 1962 के चीनी युद्ध में जब हिंदी राज्य के सैनिक जब स्थानीय लोगों के संपर्क में आए तो हिंदी को लोग समझने लगे और सैनिकों के कारण हिंदी घर-घर में पहुंच गई। हिंदी की लोकप्रियता के लिए तीसरा कारण यह है कि यहां पर हिंदी फिल्मों को स्थानीय लोग बढ़े शौक से देखना पसंद करते हैं। वहीं तमिलनाडु में हर साल दो लाख तमिल भाषा बोलने वाले छात्र हिंदी की परिक्षा में हिस्सा लेते हैं।

    एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में 80 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं। वहीं भारत के अलावा 40 से अधिक देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों और स्कूलों में संस्कृत पढ़ाई जाती है। चीन के नौ, जर्मनी के सात, ब्रिटेन के चार और रूस, इटली हंगरी फ्रांस तथा जापान के दो दो विश्वविद्यालयों सहित करीब 150 विश्वविद्यालयों में हिंदी कोर्स में शमिल है। विशव के क्रिकेट दर्शकों में 56 करोड़ लोग हिंदीभाषी, 22 करोड़ बंगलाभाषी करोड़ मराठी करोड़ अंग्रेजीभाषी हैं इस तरहा देखा जाए तो दर्शकों की संख्या के लिहाज से हिंदीभाषी पहले स्थान पर है।

    हिंदी में सबसे पहले इलहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमुर्ति प्रेम शंकर गुप्ता ने फैसला लिया था। पहला समाचार पत्र पं. जुगलकिशोर शुक्ल द्वारा लाया गया था। वहीं, पहला शोध कार्य थिओलॉजी आॅफ तुलसीदास लंदन विशिवविद्यालय में पहली बार अंग्रेजी के महारथी जे.आर.कार्पेंटर ने प्रस्तुत किया था।

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