इंटरनेट और हमारी हिंदी....ब्लैक एंड व्हाइट से कलरफुल हो गयी है
राष्ट्रभाषा हिंदी और अाज के युग का इंटरनेट माध्यम। इस माध्यम पर भी हिंदी ने अपनी मजबूत पकड़ बना रखी है। यानि हमारी हिंदी भी ब्लैक एंड व्हाइट से कलरफुल हो गयी है।

पटना [जेएनएन]। नए-पुराने हर कलेवर, हर विधा में हिंदी की सत्ता आज भी कायम है। भले ही लोगों ने इस भाषा को तमाम यातनाएं दी हों लेकिन आज भी इसकी स्वायत्तता कायम है। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा जिसने जाने कितनी भाषाओं को जन्म दिया, आज भी इस दुनिया की नई तकनीक और नए कलेवर पर भी छायी हुई है।
हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी और नया संचार माध्यम इंटरनेट। इन दोनों ने एक-दूसरे को काफी प्रभावित किया है। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि हिंदी और इंटरनेट का प्रयोग। क्या और कैसा है आज के नए युग के साथ इसका तालमेल?
हिंदी दिवस की पूर्व संध्या मंगलवार को दैनिक जागरण ने राजधानी के विद्वानों-विदुषियों के साथ इस मुद्दे पर परिचर्चा की। विषय था-इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल का हिंदी पर प्रभाव। इससे इतर भी हिंदी की समृद्धि को लेकर महत्वपूर्ण विचार आए। विद्वानों ने बड़ी साफगोई, लेकिन असरदार तरीके से अपने विचारों और अनुभवों को रखा।
वक्ताओं की राय थी कि एकाध छोटी-मोटी त्रुटियों के बावजूद इंटरनेट ने हिंदी को समृद्ध और व्यापक बनाया है। प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर सद्गुरु शरण अवस्थी ने कहा कि हिंदी के प्रचार-प्रसार में जागरण अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहा है और विद्वानों के सहयोग से और भी बेहतर करने का प्रयास किया जाएगा। धन्यवाद ज्ञापन महाप्रबंधक एसएन पाठक ने किया और अतिथियों को उपहार स्वरूप पौधे दिए।
वक्ताओं ने कहा:-
मानक हिंदी का रूप निर्धारित करने की जरूरत है। इंटरनेट सूचनाएं देता है, जबकि किताबें ज्ञान देती हैं। इंटरनेट पुस्तकों का विकल्प नहीं हो सकता। भाषा का सवाल भावुकता से नहीं जोड़ा जा सकता। यह भ्रम है कि संस्कृत हिंदी की जननी है। पीढिय़ों के विकास के क्रम में देखा जाए तो संस्कृत हिंदी की नानी है।
- प्रो. रामवचन राय, पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी, कवि
बिना तकनीक के हम नहीं बढ़ सकते। अगर इंटरनेट पर हिंदी पिछड़ेगी, तो देश-दुनिया में हिंदी पिछड़ जाएगी। तमाम पुस्तकें आज इंटरनेट पर पीडीएफ या दूसरे रूपों में मौजूद हैं। हिंदीभाषियों द्वारा अंग्रेजी का इस्तेमाल मानसिक गुलामी का प्रतीक है।
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- कलानाथ मिश्र
दूसरी भाषाओं की तुलना में हिंदी का कम विकास हुआ। हिंदी में शब्दों की संख्या कम बढ़ पाई। दिक्कत है कि विद्वानों ने आम जनता के शब्द इसमें शामिल नहीं किए। मेडिकल आदि की पढ़ाई हिंदी में भी होनी चाहिए।
- रामश्रेष्ठ दीवाना
इंटरनेट ने हिंदी को व्यापकता प्रदान की है। अधिक आपाधापी के कारण भाषा में गलतियां हो रही हैं। इंटरनेट का दूरगामी सार्थक प्रभाव पड़ेगा। बच्चे अपने घरों में अशुद्ध हिंदी सीख रहे हैं।
- डॉ. रमेश पाठक
इंटरनेट हिंदी के प्रयोग को गति दे रहा है। इंटरनेट ने भाषाओं की दूरियां घटाई हैं। जरूरत है कि हम पूरे आत्मविश्वास और दृढ़ इच्छाशक्ति से हिंदी का प्रयोग करें।
- भागवत शरण झा अनिमेष
इंटरनेट पर हिंदी के लिए काफी सामग्री उपलब्ध है।
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- नरेश प्रसाद
इंटरनेट पर हिंदी का महत्व बढ़ रहा है। भाषा का संबंध भूमि और भावना से है। यह गंभीर बात है कि हम इसे रोजगार की भाषा नहीं बना पाए। लोकभाषाओं के शब्द अपनाए जाने चाहिए।
- डॉ. रामकुमार सिंह
इंटरनेट के जरिये हिंदी दुनिया के कोने-कोने में पहुंच गई। ङ्क्षहदी की विकृति इंटरनेट के कारण नहीं है। इंटरनेट ने तो पूरा पुस्तकालय मुट्ठी में उपलब्ध करा दिया है। ङ्क्षहदी का परचम हर जगह लहरा रहा है, इसमें इंटरनेट की बड़ी भूमिका है।
- भावना शेखर
इंटरनेट की वजह से लोग अपनी भाषा से दूसरे देशों में जाकर भी जुड़े हुए हैं। हम शुद्ध सुन नहीं रहे, इसलिए शुद्ध लिख या बोल नहीं पाते।
- पल्लवी विश्वास
हिंदी पर उतना ही गर्व होना चाहिए, जितना हिंदुस्तानी होने पर है। इंटरनेट ने हमें सिर्फ दिया है, लिया कुछ नहीं है। यह हम पर निर्भर है कि हम इंटरनेट से कितना ग्रहण करते हैं।
- कल्याणी सिंह
इंटरनेट के माध्यम से साहित्यकार भी आसानी से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। एक-दूसरे से विमर्श भी कर लेते हैं। इंटरनेट सकारात्मक ऊर्जा लेकर आया है। विद्यालयों में ङ्क्षहदी के अच्छे शिक्षकों की कमी है।
- सविता सिंह नेपाली
इंटरनेट और हिंदी में अन्योन्याश्रय संबंध बनता जा रहा है। इंटरनेट पर लोकभाषाओं के शब्द भी डाले जाएं। अच्छी और कॅरियर से जुड़ी किताबों का हिंदी में अनुवाद हो।
- डॉ. पुष्पा जमुआर
हिंदी के प्रसार में इंटरनेट का बहुत योगदान रहा है। इंटरनेट पर ङ्क्षहगलिश का प्रचलन बढ़ा है। जरूरत लोगों को ङ्क्षहदी सीखने पर विवश कर रही है। इंटरनेट पर कई साहित्यिक समूह बने हुए हैं। हिंदी सिनेमा का भी अहम रोल रहा है। भाषाओं में कई शब्दों का स्वत: परिवर्तन होते रहता है।
- सतीश राज पुष्करणा
जिनकी रचना कोई प्रकाशक छापने को तैयार नही है, वे उसे इंटरनेट पर डालकर लोगों के बीच ले जा रहे हैं। इंटरनेट के चलते हम पूरी दुनिया से जुड़ते हैं। हमें आसानी से प्रतिक्रिया मिल जाती है।
- अरविंद निषाद
दूसरे देशों में उनकी अपनी भाषा का इंटरनेट पर इस्तेमाल होता है। अपने देश में भी ऐसा हो। हमें अपनी भाषा पर गर्व होना चाहिए।
- प्रो. बीएन विश्वकर्मा
लोकभाषाओं के शब्दों का इस्तेमाल हो। इससे ङ्क्षहदी समृद्ध होगी। दफ्तरों में ङ्क्षहदी की बजाय अंग्रेजी का अधिक इस्तेमाल हो रहा है।
- गोविंद शर्मा

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