हिंदी सिर्फ भाषा ही नहीं, बन सकती है रोजगार का भी माध्यम
जो लोग हिंदी को गरीबों या अछूत की भाषा समझते हैं वो अब ये जान लें कि अब हिंदी बड़ी आबादी से संपर्क का माध्यम बनेगी।

मुजफ्फरपुर [जेएनएन]। यह बात पूरी शिद्दत से कही जा सकती है कि दुनिया के एलिट वर्ग के लिए गरीबों की या फिर बाजारू भाषा कहलाने वाले वक्त मे हिंदी बड़ी आबादी से संपर्क का माध्यम होगी। और वे लोग जो इसे अछूत मान इससे दूरी बनाए हुए हैं, इसकी शब्दावली, साहित्य और ज्ञान-विज्ञान के भंडार को समृद्ध करते नज़र आएंगे।
दुनिया के कोने-कोने मे निवास कर रहे हिदी भाषी और हिंदी प्रेमी अपनी पहचान व संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए हिंदी का ही सहारा ले रहे हैं। विश्व पटल पर अनेक विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन कर हिंदी ने दुनिया के लोगों का ध्यान अपनी उपयोगिता,गुणवत्ता और व्यापकता की और खींचा है। ये बाते मंगलवार को विश्व हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर दैनिक जागरण कार्यालय मे आयोजित परिचर्चा मे सामने आई।
हिंदी दूसरे नंबर की भाषा
उत्क्रमित मध्य विद्यालय दरधा मुरौल के जितेश कुमार ने कहा कि अमेरिका मे वर्ष 2007 मे आयोजित नौवे हिंदी सम्मलेन के अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि यूएनओ के सचिव बाई केय मून ने हिंदी की बढ़ती उपयोगिता और संवाद की अन्तराष्ट्रीय भाषा बनने की पूरी सभावना को रेखांकित किया था। उन्होंने कहा कि यह विश्व संवाद के दूसरे नंबर की भाषा बन चुकी है।
हिंदी की बढ़ी है लोकप्रियता
आबेदा हाई स्कूल प्लस टू के राम कुमार सिंह कहते है कि ऐसे समय में जबकि दुनिया मे प्रतिदिन हजारों बोलियां और सैकड़ो भाषाएं मर रही हों तब हिदी भाषा की लगातार बढती लोकप्रियता उसकी ताकत का एहसास कराती है। भारतीय लोक भाषा सर्वेक्षण मे यह बात सामने आयी है कि इस सदी के अंत तक हिंदी को मातृभाषा मानने व बोलने वालों की संख्या अंग्रेजी बोलने वालों के बराबर हो जाएगी।
हिंदी का तेजी से हो रहा विकास
गांधी जानकी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की पुनीता कुमारी का कहना है कि हिंदी का तेजी से विकास हो रहा है। भारत की हृदय स्थली प्रांतो उत्तर प्रदेश,बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल और उनसे सटे भू -भाग मे हिंदी का फैलाव हुआ है। जिसका आधार ही हिंदी भाषा है।
हिंदी बेचारी नही ..
सेवानिवृत्त प्रो. डॉ. राजनारायण राय का कहना है कि हिंदी बेचारी नहीं है। सबसे सरलतम भाषा हिंदी है। इसे उदार भाषा भी कहा जाता है। इसमे सबों का समावेश है। केरल, कनार्टक में गया तो कई महिलाओ को हिंदी मे बातचीत करते देखा। जब उससे पूछा गया कि क्या वे हिंदी भाषी क्षेत्र की हैं? तो उन्होंने इंकार करते हुए कहा कि यह सरल भाषा है।
अतिक्रमण काल से गुजर रही हिंदी
संत जोसेफ्स सीनियर सेकेण्डरी स्कूल के कृष्ण कुमार झा कहते है कि हिंदी अतिक्रमण व संक्रमण काल से गुजर रही है। हिंदी भाषी लोगो के लिए यह चिंता का विषय है। हिंदी भाषी लोग ही इसका फैलाव कर सकते हैं।
हिंदी है सरल भाषा
एलएस कॉलेज हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ. अब्दुल रब अंसारी की मानें तो हिंदी काफी सरल भाषा है। इन क्षेत्रों मे रह रहे लोगो की राष्ट्र निर्माण और ज्ञान -विज्ञान की दुनिया मे कुछ कर दिखाने की जो ललक दिख रही है वह हिंदी की पहचान और प्रगति की सबसे बड़ी ताकत है।
साहित्य का विकास हो
एमएस कॉलेज के प्राचार्य डॉ. हरिनारायण ठाकुर का कहना है कि पूरे देश मे हिंदी भाषा को लोग समझते हैं। हिंदी दुर्बल है। भाषा के साथ-साथ उसके साहित्य का भी विकास होना चाहिए।
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हिंदी को अपनों से खतरा
बिहार विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. रेवती रमण का कहना है कि इंजीनियरिंग, मेडिकल व अन्य क्षेत्र की पुस्तकें हिंदी मे कम हैं। सभ्यता, टेक्नोलॉजी के विकास के साथ-साथ इस भाषा का विकास करना होगा। हिंदी को पारंपरिक रखना चाहते है। हिंदी को अपनों से ही खतरा है। क्षेत्रीय भाषा का भी इस पर दवाब है। भोजपुरी भी इसपर अपना दवाब बढ़ा चुका है। सरकार के स्तर पर हिंदी को बचाने का प्रयास होना चाहिए।
सरकार के स्तर पर प्रयास हो
बीआरए बिहार विश्वविद्यालय की डॉ. कुमकुम राय का कहना है कि हिंदी के विकास के लिए सरकार के स्तर पर विभेदीकरण को खत्म करना होगा। पब्लिक स्कूल मे अंग्रेजी का अभ्यास कराया जाता है। वहीं सरकारी स्कूलों मे हिंदी मे पढ़ाई होती है। दूसरी ओर हिंदी को अपभ्रंश किया जा रहा है। इसके मूल स्वरूप को बचाने की जरुरत है।
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धीरे-धीरे हो रही हिंदी मजबूत
नीतीश्वर महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. अंजना वर्मा का कहना है कि जहां कभी विज्ञापन और मॉडलिंग की दुनिया में हिंदी भाषी कार्मिकों और विशेषज्ञों को हेय दृष्टि से देखा जाता था अब सर आँखो पर बैठाया जा रहा है। टीवी चैनल और समाचार पत्रों की बढती प्रसार संख्या हिंदी भाषा के पुष्ट होने का प्रमाण है।
हारी नही हिंदी ..
सेवानिवृत प्राध्यापक डॉ. इंदु सिन्हा का कहना है कि हिंदी हारी नहीं है। हिंदी के अंदर लचीलापन है। इसी वजह से इसका विस्तार हो रहा। बाजारवाद के कारण हिंदी फैल रही है। ज्ञान, शक्ति व जन-जन की भाषा है।
हिंदी को प्रतियोगिता परीक्षा से जोड़े
विवि हिंदी विभाग की पूनम सिन्हा का कहना है कि हिंदी भाषा मे लचीलापन है। प्रतियोगिता परीक्षा से हिंदी को जोड़ने की जरुरत है। बाजारवाद से हिंदी भ्रष्ट हो जाएगी।
रोजगार से जोड़ने पर फैलाव
जंतु विज्ञान विभाग के श्री नारायण प्रसाद सिंह का कहना है कि हिंदी को रोजगार से जोड़ने की जरुरत है। रोजगार से जुड़ने के साथ ही हिंदी का फैलाव शुरू हो जाएगा। सरकार के स्तर पर प्रयास होनी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा।

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