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काम से पहचान

इधर-उधर की बातों पर समय जाया करने की बजाय जो कर्मचारी अपने काम पर फोकस करते हुए इनोवेशन और इनिशिएटिव पर ध्यान देते हैं, वही अलग पहचान बनाने के साथ-साथ तरक्की की सीढि़यां भी तेजी से चढ़ते हैं। कैसे बढ़ाएं कामयाबी की इस राह पर कदम, बता रहे हैं अरुण श्रीवास्तव.. देश की एक बड़ी एफएमसीजी कंपनी के एचआर डिपार्टमेंट मे

By Edited By: Published: Tue, 02 Sep 2014 03:27 PM (IST)Updated: Tue, 02 Sep 2014 03:27 PM (IST)
काम से पहचान

इधर-उधर की बातों पर समय जाया करने की बजाय जो कर्मचारी अपने काम पर फोकस करते हुए इनोवेशन और इनिशिएटिव पर ध्यान देते हैं, वही अलग पहचान बनाने के साथ-साथ तरक्की की सीढि़यां भी तेजी से चढ़ते हैं। कैसे बढ़ाएं कामयाबी की इस राह पर कदम, बता रहे हैं अरुण श्रीवास्तव..

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देश की एक बड़ी एफएमसीजी कंपनी के एचआर डिपार्टमेंट में दो असिस्टेंट मैनेजर धवन और श्रवण काम करते हैं। दोनों का वर्क प्रोफाइल कमोबेश एक जैसा है, लेकिन पूरे संस्थान में दोनों की छवि में जमीन-आसमान का अंतर है। इसका कारण दोनों का एटीट्यूड है। धवन जहां अक्सर दूसरे विभागों में घूमते और कानाफूसी करते दिखाई देते हैं, वहीं श्रवण को बिना काम के किसी दूसरे विभाग में जाते शायद ही किसी ने देखा हो। अपनी सीट पर कम बैठने के कारण धवन के तमाम काम हमेशा पेंडिंग ही पड़े रहते हैं। उल्टे वह सबसे वर्क-लोड ज्यादा होने का रोना रोते रहते हैं। इतना ही नहीं, वह खुद को ज्यादा काबिल और दूसरों को नॉन-सेंस साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। उन्हें लगता है इससे उन्हें दूसरों की नजर में खुद को काबिल और कर्मठ कर्मचारी साबित करने में मदद मिलती है। उधर, श्रवण के सारे काम अप-टु-डेट होते हैं और उनकी सीट पर शायद ही कभी कोई काम पेंडिंग रहता हो। इसका नतीजा यह है कि धवन को आए दिन उच्चाधिकारियों की डांट-फटकार सुननी पड़ती है। इधर-उधर बात करने की उनकी छवि को देखते हुए जहां उन्हें कॉन्फिडेंशियल वर्क देने से परहेज किया जाता है, वहीं नये और गोपनीय किस्म के काम अक्सर श्रवण के हवाले किए जाते हैं। इससे धवन के ईगो को चोट तो बहुत लगती है, लेकिन वह कभी आत्ममंथन करने की कोशिश नहीं करते कि आखिर ऐसा उनके साथ ही क्यों होता है? इसके उलट वह आत्ममुग्धता, आत्मप्रशंसा और बड़बोलेपन में ही लगे रहते हैं। इतना ही नहीं, उनकी दिली ख्वाहिश होती है कि दूसरे लोग उनको एप्रिशिएट करें।

अनूठा नहीं मामला

धवन और श्रवण जैसे एम्प्लॉयी आपको तकरीबन हर ऑफिस में देखने को मिल जाएंगे। कुछ कर्मचारी जहां बिना किसी के कहे अपने काम में लगे रहते हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बहुत सारा काम होने के बावजूद दूसरों के पास बैठकर, बिना मतलब की बातें करके अपने साथ-साथ उनका समय भी खराब करते हैं। ऐसे लोग ऑफिस टाइम में बार-बार बाहर जाने के बहाने भी ढूं़ढ़ते रहते हैं। ऐसे लोग अक्सर यह भी कहते मिल जाएंगे, यार, क्या बताएं, कुछ काम ही नही है या फिर मेरा तो काम में मन ही नहीं लगता। अपने आप में उन्हें लगता है कि वे यूं ही टाइम पास करते रहेंगे और नौकरी चलती रहेगी। उन पर किसी की नजर नहीं है। लेकिन ऐसे लोगों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ऐसा सोचना सरासर उनकी भूल है। उन्हें लंबे समय तक ऐसे नहीं छोड़ा जा सकता। संस्थान का प्रबंधन अपने हर कर्मचारी पर नजर रखता है। हां, कई बार वह कड़े कदम तभी उठाता है, जब पानी सिर से ऊपर होने लगता है। दरअसल, ज्यादातर संस्थानों में कर्मचारियों को सलेक्ट करते समय उनके एटीट्यूड को जांचने-परखने का कोई ठोस पैमाना नहीं होता। कुछ संस्थानों में साइकोमेट्रिक जैसे साइकोलॉजिकल टेस्ट की मदद से भावी कर्मचारयों के व्यवहार को परखने का प्रयास तो किया जाता है, लेकिन इसे भी शत-प्रतिशत कारगर नहीं माना जाता।

काम निकालें, मन लगाएं

हो सकता है कि आप अपना काम बहुत जल्दी और परफेक्शन के साथ निपटा देते हों, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इसके बाद आपको इधर-उधर घूमने की आजादी मिल जाती है। हर ऑफिस का एक अनुशासन होता है। अगर आपके पास कोई काम नहीं, तो आप अपने वर्क-प्रोफाइल को इन-रिच करने के तरीकों पर काम कर सकते हैं। आप अपने विभाग को आगे बढ़ाने और विभाग के दूसरे कार्यो में सहयोग की पहल कर सकते हैं। इससे टीम को तो मजबूती मिलेगी ही, इस पहल से आपको भी अलग पहचान मिलेगी। आप यह न सोचें कि जब तक कहा नहीं जाएगा, तब तक आप कुछ नहीं करेंगे। आगे बढ़कर कुछ नया करने की पहल करेंगे, तो यह आपको भी अच्छा लगेगा कि इससे दूसरे सहयोगी भी मोटिवेटेड महसूस करेंगे।

मिशन मल्टीटास्किंग

आप यह कभी न सोचें कि आपको जिस काम के लिए रखा गया था, आप सिर्फ वही करेंगे। आज के समय में हर कंपनी मल्टीटास्किंग अप्रोच रखने वाले एम्प्लॉयी पसंद करती है। ऐसे में हो सकता है कि आपके विभाग में आपके प्रोजेक्ट में कुछ तब्दीली हो जाए या फिर कुछ नए काम आ जाएं। ऐसे में आपको चुनौती लेने से पीछे नहीं हटना चाहिए। सीनियर्स या मैनेजमेंट के सामने यह लॉजिक देना आपकी इमेज को खराब कर सकता है कि अप्वाइंटमेंट के समय इस नए काम के बारे में तो बताया ही नहीं गया था। किसी भी संस्थान में नियमित रूप से नए काम और असाइनमेंट आते रहते हैं। ऐसा बहुत कम होता है कि नया काम आते ही नए लोग रख लिए जाएं। अक्सर इन्हें वर्तमान कर्मचारियों की मदद से ही पूरा करने की कोशिश की जाती है। इसलिए खुद को फ्लेक्सिबल मोड में रखें, ताकि कुछ भी नया असाइनमेंट सामने आने पर उसे आसानी से स्वीकार कर सकें।

लर्निग की ललक

आपके पास पहले से जो भी स्किल है, उसे समय और जरूरत के मुताबिक नियमित रूप से अपडेट करते रहें। इसके अलावा, नई स्किल्स को सीखने की ललक भी हमेशा बनाए रखें। अक्सर ऐसा होता है कि कंपनी में नियमित अंतराल पर नए सॉफ्टवेयर्स या तकनीक लाई जाती है। ऐसे में आप यह जिद नहीं कर सकते कि जब पुराने सिस्टम पर सहजता से काम हो रहा है, तो फिर इसकी जरूरत क्यों? आप कंपनी के फैसलों को अस्वीकार करने की बजाय इन नई तकनीकों को सीखने-समझने का प्रयास करें। शुरुआती दिक्कतों-उलझनों के बाद आपको वह तकनीक आसान लगने लगेगी।

एटीट्यूड हो सॉफ्ट

ऑफिस में कई बार ऐसे मौके आते हैं, जब आपको अपने स्वाभिमान पर चोट महसूस हो सकती है या आप प्रताड़ित महसूस कर सकते हैं। इससे घबराएं नहीं, परेशान न हों। दिमाग को शांत रखें। सोचे-विचारें और फिर काम पर फोकस करें, अन्यथा आपकी उग्र प्रतिक्रिया आपका बना काम बिगाड़ सकती है। मैनेजमेंट या सीनियर्स से उलझने या बहस करने या फिर उनके बारे में इधर-उधर बातें करने की बजाय आप उनके साथ बैठने का समय लें, ताकि आपस की गलतफहमियां दूर हो सकें। कुल मिलाकर आपका व्यवहार और काम ही आपको संस्थान का नंबर वन कर्मचारी बना सकता है।

* इधर-उधर बातें करके या घूमकर वक्त जाया करने की बजाय अपने काम को परफेक्शन के साथ करते हुए खुद को प्रूव करें।

* काम न होने या कम होने पर नए कार्यो के प्रस्ताव तैयार करके अपनी पॉजिटिव पहल का परिचय दें।

* उग्र प्रतिक्रिया जताने की बजाय अपने व्यवहार को संयत रखें और मैनेजमेंट-सीनियर्स को अपने एटीट्यूड और काम से भरोसे में लेने का प्रयास करें।

पढ़े: एटीट्यूड भी जरूरी


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