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एटीट्यूड भी जरूरी

अगर आपके पास किसी खास फील्ड की अच्छी नॉलेज है और आप अपडेट भी रहते हैं, लेकिन ऑफिस में कलीग्स के साथ आपका व्यवहार बढि़या नहीं है तो टीम को साथ लेकर चलने में आपको परेशानी हो सकती है। इसका असर आपकी ग्रोथ पर भी पड़ सकता है। करियर में कामयाबी के लिए कितना जरूरी है एटीट्यूड, बता रहे हैं अरुण श्रीवास्तव. मितेश वम

By Edited By: Published: Tue, 19 Aug 2014 09:57 AM (IST)Updated: Tue, 19 Aug 2014 09:57 AM (IST)
एटीट्यूड भी जरूरी

अगर आपके पास किसी खास फील्ड की अच्छी नॉलेज है और आप अपडेट भी रहते हैं, लेकिन ऑफिस में कलीग्स के साथ आपका व्यवहार बढि़या नहीं है तो टीम को साथ लेकर चलने में आपको परेशानी हो सकती है। इसका असर आपकी ग्रोथ पर भी पड़ सकता है। करियर में कामयाबी के लिए कितना जरूरी है एटीट्यूड, बता रहे हैं अरुण श्रीवास्तव.

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मितेश वर्मा को एक बड़ी कंपनी में अच्छे पैकेज पर सीनियर पोस्ट मिली थी। उनसे उम्मीद की जा रही थी कि वह अपनी विशेषज्ञता और अनुभवों के आधार पर अपनी टीम को नई दिशा देंगे और विभाग की अलग पहचान बनाने में मददगार साबित होंगे। एक-दो महीने तक इंतजार किया गया कि संभवत: उनकी तरफ से कोई पहल होगी, लेकिन जब ऐसा कुछ नहीं हुआ तो उन्हें ऊपर से असाइनमेंट दिए जाने लगे। पर यहां भी यह पाया गया कि वह हर असाइनमेंट को रस्मी ढंग से निपटा रहे हैं। कुछ ही महीनों बाद यह भी महसूस किया जाने लगा कि उनका तो अपने काम में मन ही नहीं लग रहा। उल्टे जाने-अनजाने वह दूसरों के कामों में मीन-मेख निकालने या इधर-उधर की बातों से सहयोगियों का ध्यान भटकाने में लगे रहते थे। उनसे कई बार कहा गया कि वह काम में मन लगाएं और मेहनत से खुद को प्रूव करें, लेकिन उनके ऊपर इन बातों का कोई असर होता नहीं दिखा। जब कई महीने इसी तरह बीत गए और उनके एटीट्यूड में कोई बदलाव आता नहीं दिखा, तो अंतत: मैनेजमेंट ने उनसे मुक्ति पाने का निर्णय कर लिया।

ईगो की मुठभेड़

यह नीति कथा बहुत पुरानी है कि वृक्ष जितना बड़ा और फलदार होता जाता है, वह उतना ही झुकता चला जाता है। मानव जीवन में इसका अर्थ लें तो यही मतलब निकलता है कि आप अगर कामयाबी की सीढ़ी पर आगे बढ़ते जाते हैं, तो आपको और ज्यादा विनम्र होना चाहिए। खुद को इस राह पर बढ़ाने से आप छोटे नहीं होते, बल्कि दूसरों से आप अधिक सम्मान पाते हैं। कई बार देखा जाता है कि लोग मिल-जुलकर काम करने के बजाय छोटी-छोटी बातों पर एक-दूसरे से उलझ जाते हैं। उनकी आवाज तो ऊंची हो ही जाती है, हाथापाई तक की नौबत आ जाती है।

मैच्योरिटी का सवाल

उपर्युक्त सीन वही लोग क्रिएट करते हैं, जिनमें परिपक्वता का अभाव होता है। ऐसा व्यवहार आमतौर पर वही लोग करते हैं, जो दिमाग के कच्चे होते हैं। यह भी हो सकता है कि अपनी नॉलेज और क्षमता को लेकर उनमें असुरक्षा का भाव हो। यही कारण है कि कहीं न कहीं अपनी कमजोरी को ढकने के लिए वे बदमिजाजी पर उतर आते हैं। हो सकता है कि अपनी विशेषज्ञता के कारण करियर की राह पर आगे बढ़ने में उन्हें कुछ मदद मिल जाए, लेकिन अपने एटीट्यूड को सुधारे बिना ऐसे लोग ज्यादा आगे बढ़ने में सफल नहीं हो पाते। कहीं न कहीं जाकर उनकी गाड़ी अटक ही जाती है।

न बढ़ाएं दूरी..

कुछ लोग यह समझने की भूल कर बैठते हैं कि वे दूसरों की तुलना में अपने काम में अधिक माहिर हैं। ऐसे में ओवर-कॉन्फिडेंस का शिकार होकर वे दूसरों के साथ अपने अनुचित व्यवहार पर भी ध्यान नहीं देते। सहयोगियों को कमतर करके आंकने के साथ-साथ वे अक्सर उन्हें नीचा भी दिखाने का प्रयास करते रहते हैं। किसी सहयोगी के मदद मांगने पर वे बुरी तरह बिफरते हुए उसे नाकारा साबित करने पर उतारू हो जाते हैं। ऐसे में एक समय ऐसा आता है, जब इस तरह के एटीट्यूड वाले लोगों से टीम के मेंबर दूर होने लगते हैं। अगर ऐसा व्यक्ति लीडिंग पोजीशन में है, तो जॉब की मजबूरी में बाकी स्टाफ उसकी बात सुन तो लेते हैं, पर मन से उस पर अमल नहीं कर पाते। वहीं, जो लीडर अपनी फील्ड का एक्सपर्ट होने के साथ-साथ अपनी टीम में अपनत्व का भाव पैदा करने में समर्थ होता है, वह बड़े से बड़ा टास्क सामने आने पर भी अपनी मजबूत टीम के बल पर उसे कामयाबी के साथ पूरा कर लेता है।

खुशनुमा हो माहौल

घर हो या वर्क-प्लेस, हर जगह सौहार्द्रपूर्ण माहौल जरूरी होता है। जिस तरह घर के सभी सदस्यों के बीच सद्भावपूर्ण संबंध होने की वजह से मुश्किल से मुश्किल काम भी वे एक-दूसरे की मदद से आसानी और खुशी-खुशी कर लेते हैं, उसी तरह ऑफिस में माहौल खुशनुमा होने पर कठिन से कठिन टास्क सामने आने पर भी टीम मेंबर्स को कोई परेशानी नहीं होती। आत्मीय संबंध होने के कारण जरूरत पड़ने पर सभी एक-दूसरे का सहयोग करने से पीछे नहीं हटते। ऐसा करके उन्हें सुकून और खुशी तो मिलती ही है, आपस की बॉन्डिंग भी और मजबूत होती है।

खुद को बदलें

बेहतर यही है कि घर से लेकर बाहर तक अपने स्वभाव को हर जगह अच्छा रखने की कोशिश करें। इसे अपनी आदत में शुमार कर लें, तो इसके लिए जबर्दस्ती प्रयास नहीं करना पड़ेगा। यह कोई ऐसा मुश्किल काम नहीं, जिसके लिए खास मशक्कत करनी पड़े। जरा सोचें, जब कोई दूसरा आपसे बदतमीजी से बोलता है या आपके प्रति ठीक व्यवहार नहीं करता, तो आपको कैसा लगता है? बहुत बुरा न। जब आप अपने लिए अच्छे व्यवहार की उम्मीद करते हैं, तो खुद दूसरों से ऐसा ही क्यों नहीं करते? आप जो फसल बोएंगे, वैसा ही काटने को लिए भी तो तैयार रहना होगा।

* अपनी नॉलेज पर इतराने और इसका धौंस जमाने की बजाय दूसरों को भी इससे लाभान्वित करें।

* किसी कलीग के मदद मांगने पर आगे बढ़कर सहयोग करने का प्रयास करें।

* अपनी टीम के साथ मिल-जुलकर काम करेंगे, तभी सभी आगे बढ़ेंगे।

* कोई सहयोगी काम में कमजोर है, तो उसकी मदद करें, न कि उसकी खिल्ली उड़ाएं।

पढ़े: स्टडी के साथ स्किल


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