क्या आपको मालूम हैं अपने ये अधिकार?
जानकारी होगी तभी मिलेगा अधिकार अपनी शिकायत को कानून तक पहुंचाने की प्रक्रिया मालूम होने भर से ही महिलाओं के बहुत सारे मसले हो सकते हैं हल...
कानून का तराजू भले ही महिला ने संभाला हो पर इसके तमाम अधिकारों से आज भी अनभिज्ञ हैं महिलाएं। घर-परिवार से जुड़े मसले हों या उनसे मिलीं प्रताडऩाएं, किसी भी मामले में पुलिस या कानून की मदद लेने में जहां महिलाओं में आज भी झिझक है तो वहीं पूरी प्रक्रिया की सही जानकारी न होने से मन में डर भी रहता है। अहम जानकारियों के अभाव में कई बार बड़ी गलतियां हो जाती हैं, जिससे फैसला भी प्रभावित हो जाता है। किस मामले को थाने लेकर जाना है और कैसे अदालत में अर्जी देनी है, इनका पता हो तो बेहतर रहता है।
सजगता ही है उपाय
498ए दहेज प्रताडऩा के खिलाफ होने वाली कानूनी प्रक्रिया के बारे में एडवोकेट आशीष गुप्ता बताते हैं, 'इस मामले में पीडि़ता को सबसे पहले थाने में शिकायत दर्ज करानी होती है। इसे पीडि़ता लिखित रूप से खुद भी दे सकती है। जिस पर सील लगाकर शिकायतकर्ता के हस्ताक्षर करवाकर थानाप्रभारी या किसी पुलिस अधिकारी से लिया जाता है। इसे लेना बेहद जरूरी होता है। इसके
बाद थाने के महिला प्रकोष्ठ में पीडि़ता और उसके
पति, ससुरालवालों के बीच बातचीत के जरिए सुलह करवाने का प्रयास होता है। इसी दौरान पीडि़ता का बयान दर्ज करवाने के लिए उसे थाने बुलवाया जाता है। जिसे 161-1 का बयान माना जाता है। यह बयान आई ओ यानी इनवेस्टिगेटिंग ऑफिसर ही लिखता है।
अगर आई ओ महिला न हो तो पीडि़ता इसकी मांग कर सकती है। आई ओ पीडि़ता से पूछताछ कर पूरी बात ब्योरे समेत लिखती है। इसमें जिन तमाम लोगों के नामों का जिक्र होगा, आई ओ उन्हें समन भेजकर पूछताछ के लिए बुलवा सकती है। इसमें जिन बातों को आप साबित कर सकती हैं, उनके बारे में यहां अवश्य बताएं। इसमें शादी के दौरान दिए गए उपहारों की फेहरिस्त व अन्य लेन-देन से जुड़ी बातें आदि शामिल हैं। आई ओ सुबूत और जांच-पड़ताल के आधार पर एफआईआर दर्ज कराती है। इसके बाद आरोपियों के खिलाफ वॉरंट जारी होते हैं फिर मामला अदालत में चलता है।
हरगिज न सहें घरेलू हिंसा
घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत महिलाओं के अधिकारों के बारे में एडवोकेट मनीषा मिश्रा बताती हैं, 'इस मामले में सीधे अदालत में ही
याचिका दायर की जाती है। याचिका के साथ ही पीडि़ता अंतरिम आवेदन भी दाखिल कर सकती है, जिसमें अगर पीडि़ता को घर से निकाल दिया गया है तो अपने घर में ही रहने, अपनी और बच्चों के लिए सुरक्षा, अदालती कार्यवाही के लिए
आर्थिक राहत जैसी मांगें रख सकती है। याचिका की सुनवाई से पहले, जज अंतरिम राहत के आवेदन पर निर्णय देते हैं, इसलिए इसे तुरंत ही पेश कर देना चाहिए। घरेलू हिंसा अपराध की श्रेणी में आती है और दोषी को तगड़ा मुआवजा और न मानने पर सजा का प्रावधान होता है।-
मानसिक हिंसा भी है बड़ा कारण
कई बार महिलाएं शारीरिक के बजाय मानसिक रूप से प्रताडि़त होती रहती हैं। इसको सहने के बजाय तलाक की अर्जी भी दी जा सकती है। तलाक के मामले में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13ए के तहत तलाक के आधार तय किए गए हैं। इनमें हिंसा पहला है। शारीरिक ही नहीं मानसिक हिंसा भी तलाक का आधार बन सकती है। सीआरपीसी की धारा 125 के जरिए याचिका देकर पत्नी, बच्चे और अभिभावक गुजारा भत्ता मांग सकते हैं। इसके लिए सीधे अदालत में ही याचिका दर्ज होती है।
गर न हो एफआईआर
अगर थाने में आईओ के सामने बयान लिखे जाने के कुछ दिनों तक एफआईआर दर्ज न हो तो 156-3 के तहत अदालत में याचिका पेश की जा सकती है और फिर कोर्ट, संबंधित अधिकारियों से सीधे सवाल करके कारण पूछती है।
इनकी भी हैं आप हकदार
- समान वेतन का अधिकार
- काम पर हुए उत्पीडऩ के खिलाफ अधिकार
- नाम न छापने का अधिकार
- कन्या भ्रण हत्या के खिलाफ अधिकार
- रात में गिरफ्तार न होने का अधिकार
- पिता और पति की संपत्ति पर अधिकार पीडि़ता इन कैमरा प्रोसिडिंग्स यानी केवल
जज, दोनों पक्ष के वकीलों व केस से जुड़े लोगों की ही मौजूदगी में कार्यवाही किए जाने की भी मांग कर सकती हैं।
- अगर प्रतिपक्ष के वकील की भाषा अभद्र लगे या सवाल मर्यादा से परे हों तो वे जवाब देने से इंकार कर सकती हैं।
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आरती तिवारी
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