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बच्चों को बनाना है सफल तो माता-पिता करें ये काम

आज के दौर में बच्चों की देखभाल और उन्हें सही दिशा दिखाना काफी मुश्किल काम है। हालांकि थोड़ी सी सूझबूझ से इस मुश्किल को आसान बनाया जा सकता है

By Babita kashyapEdited By: Published: Sat, 10 Sep 2016 01:32 PM (IST)Updated: Sat, 10 Sep 2016 01:40 PM (IST)
बच्चों को बनाना है सफल तो माता-पिता करें ये काम

राधिका से जब स्कूल में उसके मनपसंद विषय का पीरियड पूछा गया तो उसने कहा लंच टाइम। उसके जवाब में शैतानी झलक रही थी, पर राधिका के माता-पिता इस बात से परेशान हैं कि वह अपनी पढ़ाई को गंभीरता से नहीं ले रही है। राधिका के माता-पिता अपनी परेशानी में अकेले नहीं हैं, आज लगभग 60 प्रतिशत अभिभावकों के लिए अपने बच्चों को लेकर तमाम तरह की परेशानियां सामने आ रही हैं, जिनका सामना करना उनके लिए कठिन हो रहा है।

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'आजकल बच्चों का पालन-पोषण और उनका सही मार्गदर्शन बहुत मुश्किल होता जा रहा है। बदलते दौर ने परिवार के भावनात्मक पहलू को काफी प्रभावित किया है' कहती हैं बाल मनोचिकित्सक डॉ. मीना। सभी अभिभावक अपने बच्चों को तरक्की करते हुए देखना चाहते हैं। यह इच्छा हर माता-पिता की होती है और ज्यादातर लोग इस दिशा में बच्चे की हर संभव सहायता भी करते हैं। अधिकांश माता-पिता यही चाहते हैं कि उनका बच्चा पढ़ाई में फस्र्ट आए ही, खेलकूद, संगीत और ऐसी ही अन्य गतिविधियों में भी वह नाम कमाए।

न थोपें अपनी इच्छाएं

अपने बच्चे को सफल होते देखना हर मां-बाप का सपना होता है और इस सपने को साकार करने की इच्छा में माता-पिता एक पहलू को अक्सर नजरअंदाज कर जाते हैं। वह है अपने बच्चे की कमजोरियों और ताकतों को समझना। आभा ने अपनी बेटी सुप्रिया को गाना सिखाने के लिए एक बड़े म्यूजिक स्कूल में दाखिला दिलाया। चार वर्र्षों की लगातार मेहनत का फल यह हुआ आठ वर्षीया सुप्रिया आज 100 से अधिक स्टेज शो कर चुकी है और पुरस्कारों की लंबी कतार उसके घर में देखी जा सकती है। आभा की देखा-देखी रीना ने भी अपनी दस वर्षीया बेटी को म्यूजिक स्कूल में डाला, जबकि उसकी बेटी की संगीत सीखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। रीना की बेटी को चित्रकारी का बेहद शौक था। दो साल तक बेमन से संगीत सीखने के बाद उसने संगीत छोड़ दिया। इस कारण से रीना अपनी बेटी को हमेशा ताने देती रहती है कि इतना समय और पैसे खर्च करने के बाद भी उनकी बेटी कुछ भी सीख नहीं पाई। इस संदर्भ में डॉ. मीना का कहना है कि बहुत से माता-पिता अपने बच्चों की सफलताओं और असफलताओं में खुद का प्रतिबिंब देखते हैं, जो उनके स्वयं के लिए भी अच्छा नहीं है और उनके बच्चों के हित में भी नहीं। बच्चों से जबरदस्ती वह काम कराना जिसमें उसकी बिल्कुल भी रुचि नहीं है, बच्चे के व्यक्तित्व को

खराब कर सकता है। यह उसके आत्मविश्वास को ठेस पहुंचा सकता है।'

बार-बार असफलताओं का मुंह देखने पर बच्चे में प्राय: यह धारणा विकसित हो जाती है कि उसकी किस्मत ही खराब है या फिर वह चाहे जो कर ले कभी सफल नहीं होगा। इस तरह की नकारात्मक सोच से उसका जीवन विपरीत रूप से प्रभावित होता है। वह खुद को अकेला और असहाय महसूस करता है।

सफलता पाने की कोशिश में वह अपने मापदंडों को बहुत निचले स्तर पर रखता है। नये अनुभवों को प्राप्त करने की कोशिश नहीं करता और प्राय: ऐसे अवसरों को खो देता है, जिसमें असफल होने का लेशमात्र भी खतरा नहीं रहता।

जरूरी है सही संतुलन

संक्षेप में कहा जा सकता है कि माता-पिता को अपने बच्चे को उसके सही व सच्चे रूप में स्वीकारना चाहिए और उन्हें वही करने और बनने देना चाहिए जो वह चाहता हो। इसका अर्थ यह नहीं कि बच्चे की गलत बातें या आदतें भी स्वीकार कर ली जाएं और उसकी मनमानी करने दी जाए। बच्चे के गलत व्यवहार या मनमानी को

समय रहते ठीक करने की कोशिश करें। होमवर्क समय से ही होना चाहिए, परिवार के मूल्यों और सदस्यों का आदर होना चाहिए। स्कूल और समाज में रहने के तरीकों को सही रूप से सिखाना चाहिए। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों पर नियंत्रण और उन्हें आजादी देने के बीच सही संतुलन बनाएं, जो उनके बच्चे के विकास के लिए ठीक हो। प्राय: बच्चे स्वयं ही माता-पिता को ऐसे संकेत दे देते हैं, जिनसे वे अपने बच्चों के सामने उचित और व्यावहारिक उद्देश्य रख सकें। यदि माता-पिता अपने बच्चों को उनके सच्चे रूप में स्वीकार करें, प्यार करें और उनकी सहायता करें तो बच्चे अक्सर माता-पिता की अपेक्षाओं से कहीं अधिक करने के लिए तैयार हो जाते हैं और कर भी पाते हैं।

अपने बच्चे को पहचानें

माता-पिता जब भी अपने बच्चे को उसके स्वाभाविक रूप से अधिक बुद्धिमान, प्रभावी, शालीन तथा सफल बनाने की कोशिश करते हैं, वे नाकामयाब और निराश होते हैं। जब माता-पिता बच्चों के स्वभाव को नकारते हैं, तब भी वे अपने बच्चों को पहचानने में भूल करते हैं।

अपने बच्चे से अपेक्षाएं रखने से पहले अपने उद्देश्यों का विश्लेषण करें। माता-पिता प्राय: अपने अधूरे सपने अपने बच्चों के माध्यम से पूरे करने की इच्छा रखते हैं। ऐसा क्यों होता है कि आप अपने बच्चों के माध्यम से पूरी करने की इच्छा रखते हैं। ऐसा क्यों होता है कि आप अपने बच्चे को वही करने के लिए बाध्य करती हंै, जो आपके माता-पिता ने आपके साथ किया था? बच्चों को पालने में अक्सर दुविधा का भी सामना करना पड़ता है। इस मन: स्थिति को दूर करने के लिए दूसरे अभिभावकों या उसके स्कूल के काउंसलर से बातचीत करें।

बाल मनोविज्ञान से संबंधित किताबें पढ़ें जिससे आपको यह पता लगे कि अपने बच्चे के जीवन की हर अवस्था में आपको उससे क्या व कितनी अपेक्षाएं रखनी चाहिए।

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