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    चाइल्ड केयर:क्या करें क्या ना करें

    By Rahul SharmaEdited By:
    Updated: Sat, 25 Jun 2016 10:14 AM (IST)

    अक्सर हमारे आपके सामने बच्चों और मां से जुड़ी छोटी-छोटी समस्याएं सामने आती रहती हैं। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए, आइए जानें

    स्तनपान के समय मां को बुखार सामान्य बुखार के समय स्तनपान कराना कभी न छोड़ें। मां अपना इलाज कराए। साबुन से हाथ धोकर बच्चे को उठाएं व बेझिझक स्तनपान कराएं, इसे छोड़ देने पर दूध आना रुक सकता है। यदि मां को खांसी/जुकाम हो तो चेहरे पर ‘मास्क’ लगाकर माताएं अपनी सांस द्वारा संक्रमण बच्चे में फैलने से रोक सकती हैं।
    बच्चे को बुखार आना
    बच्चे को ठंडे वातावरण में रखें, बच्चे को बेवजह लपेटने के बजाय खुला छोड़ दें। सादे पानी की पट्टी पूरे शरीर पर करें, सिर्फ माथे पर ही नहीं। साथ ही नहलाना बंद न करें। डॉक्टर की सलाह से उचित दवा दें। बच्चे को संतुलित आहार व पर्याप्त तरल पदार्थ देती रहें।

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    कुत्ता काट लेने पर
    घबराएं नहीं, सबसे पहले साबुन व पानी से जख्म को 10-15 मिनट लगातार अवश्य धोएं। मिर्च, केरोसिन आदि कभी न लगाएं। बिना समय बर्बाद किए विशेषज्ञ डॉक्टर से रेबीज व टिटनेस के टीके लगवाएं। रेबीज के पूरे पांच टीके व आवश्यकता पड़ने पर इम्यूग्लोसुलिन इंजेक्शन भी लगवाएं। जख्म पर पट्टी या स्टिच आदि कराएं।

    खांसी आने पर
    बच्चों को सिखाएं कि खांसते समय मुंह पर रूमाल या हाथ जरूर रखें, ताकि संक्रमण दूसरों को न फैले। स्वयं दवा प्रयोग करने की बजाय विशेषज्ञ की सलाह से सही दवा दें। बच्चे को ऐसे में तले पदार्थ, मिर्च-मसाले व ठंडा आदि देने से बचें। दस्त के दौरान शिशु का स्तनपान व बच्चे का खानपान जारी रखें। अनावश्यक परहेज से बचें जिससे कि बच्चे को कुपोषण न हो। डॉक्टर की सलाह से ओ.आर.एस, जिंक व अन्य जरूरी दवाएं दें। एंटीबॉयोटिक दवाओं का अत्यधिक इस्तेमाल न करें। अधिकतर डायरिया वायरल होते हैं, जिन पर एंटीबॉयोटिक का कोई असर नहीं होता।

    खसरा/चेचक निकलने पर
    इस स्थिति में मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। ऐसे में उन्हें निमोनियाा, स्किन इंफेक्शन आदि हो सकते हैं। इनसे बचने के लिए बच्चे का शरीर गीले कपड़े से पोंछें। पौष्टिक आहार खिलाएं। अन्य परिवारजनों से अलग रखें। ‘विटामिन ए’ देने से बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जा सकती है। दानों के उभरते ही परिवार के अन्य बच्चों का टीकाकरण कराकर उन्हें इस बीमारी से बचा सकती हैं।

    दौरा/झटका आने की स्थिति में
    घबराएं नहीं व ठंडे दिमाग से काम लें, बच्चे को चोट से बचाने के लिए फर्नीचर आदि से दूर करवट लेकर लिटा दें, कपड़े ढीले कर दें। कभी भी मुंह में उंगली/ कपड़ा न डालें, प्याज/चप्पल आदि न सुंघाएं। नजदीकी अस्पताल में तुरंत दिखाएं। आजकल आधुनिक नेजल स्प्रे या लैट्रीन के रास्ते दवा द्वारा दौरे को घर पर ही काबू किया जा सकता है।
    चोट लगने की स्थिति में
    जख्म को सर्वप्रथम साफ कर लें। खून बह रहे होने की स्थिति में बर्फ की सिंकाई लाभदायक रहेगी। ‘प्रेशर बैंडेज’ से भी ब्लीडिंग पर काबू पाया जा सकता है। लोहे द्वारा या गंदगी भरी जगह से जख्म होने पर टिटनेस का टीका अवश्य लगवाएं।
    नवजात की देखभाल
    ध्यान रहे, प्रसव सदैव अस्पताल में प्रसूति विशेषज्ञ व नवजात शिशु विशेषज्ञ की मौजूदगी में ही हो। शिशु का जन्म के समय रोना अत्यंत आवश्यक है। पहले 24 घंटे में उसे मल-मूत्र कर लेना चाहिए। बच्चे को नहलाने में अति शीघ्रता न दिखाएं। उसे मां के समीप ही रखें व सिर्फ स्तनपान ही कराएं। शहद, पानी आदि कदापि न दें।बच्चे की रोजाना उपयुक्त तेल से मालिश करें। हां, नाक/कान/नाभि में कभी तेल न डालें। आंखों में काजल आदि भी न लगाएं।

    रखें ध्यान

    बच्चों को टीकाकरण नियमित रूप से कराएं। अच्छी सेहत के लिए उन्हें घर का संपूर्ण पौष्टिक आहार खिलाएं और ‘जंक फूड्स’ से दूर रखें। नियमित व्यायाम अवश्य कराएं जिससे बच्चे मोटापे से दूर रहें। पानी हमेशा उबला या फिल्टर्ड ही पिलाएं। शौच के बाद व खाने से पहले उसके हाथ साबुन से जरूर धुलवाएं।

    डॉ. सी. एस. गांधी (नवजात शिशु व बाल रोग विशेषज्ञ)

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