गणेश परिक्रमा करने वालों से कांग्रेस का भला नहींः सुखदेव भगत
वरिष्ठ लोगों का अनुभव और युवाओं की आक्रामकता मिलकर कांग्रेस को आगे बढ़ाएगी, मजबूती दिलाएगी।

रांची, जेएनएन। झारखंड में कांग्रेस कभी लड़खड़ाकर संभलती है तो अक्सर चंद खेवनहार ही उसे मंझधार में फंसाते भी नजर आते हैं। ऐसी विपरीत परिस्थिति में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत ने अपेक्षाकृत नई टीम के साथ हर मोर्चे पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है।
खुद वे ऐसे तमाम नेताओं की आंखों में भी खटकते हैं, जो उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के पद पर एक पल भी टिके रहना देखना नहीं चाहते। हालांकि भारी अंतर से लोहरदगा से विधानसभा का उपचुनाव जीतकर उन्होंने अपने विरोधियों को चौकाया। संगठन में चुनाव की प्रक्रिया, नेताओं की आपसी महत्वाकांक्षा और रोजाना आ रही चुनौतियों के मद्देनजर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत से बातचीत की प्रदीप सिंह ने।
संगठन में ऊपर से लेकर नीचे तक चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। इस दौरान किन चीजों का अधिकाधिक ध्यान रखा जा रहा है?
-दो जोन में निर्वाचन की प्रक्रिया का ज्यादातर काम हो चुका है। इसके लिए संगठन ने जिम्मेदार पदाधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की है। अब अगली बारी संताल परगना इलाके की है। लगातार नए कार्यकर्ताओं से वरीय नेता विचार-विमर्श कर रहे हैं। वरिष्ठ लोगों का अनुभव और युवाओं की आक्रामकता मिलकर कांग्रेस को आगे बढ़ाएगी, मजबूती दिलाएगी। गंभीर लोग आगे आएं तभी पार्टी को बल मिलेगा। ध्यान यही रखा जा रहा है कि सिर्फ गणेश परिक्रमा करने वाले लोग नहीं आएं। ऐसे लोगों से कांग्रेस का भला नहीं होगा।
चर्चा है कि प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व में भी बदलाव होगा। कुछ लोग प्रदेश अध्यक्ष बनने की रेस में भी हैं।
-पहले यह देखना होगा कि कोई रेस हो रहा है अथवा नहीं। जब दौड़ ही नहीं हो रहा है तो नंबर एक या दो पर खुद को बताने का कोई तुक नजर नहीं आता। ऐसे लोगों को यह भी बताना चाहिए कि दौड़ आखिरकार हो कहां रहा है?
अक्सर देखा जाता है कि पसंद के आधार पर टीम बनाई जाती है और मेहनत से काम करने वाले लोग दरकिनार कर दिए जाते हैं।
- ऐसी प्रवृति संगठन में है और मैं इससे इन्कार नहीं कर सकता। सदस्यता अभियान लगातार चलता रहता है लेकिन निर्वाचन के लिए एक डेडलाइन तय कर दी गई है कि इसी अवधि तक सक्रिय सदस्य बनने वाला पदाधिकारी बन पाएगा। अभी ऐसी प्रवृति चल रही है कि सक्रियता से ज्यादा ‘अपने’ लोगों की चिंता की जाती है। यह अच्छा संकेत नहीं है। इससे संगठन के प्रति प्रतिबद्धता पैदा नहीं होती और पूरी निष्ठा व्यक्ति विशेष पर केंद्रित हो जाती है।
झारखंड में फिलहाल विपक्षी दलों की एकजुटता की कोशिश चल रही है। इस प्रक्रिया को आप किस रूप में देखते हैं?
-विपक्षी दलों की एकजुटता के लिए कई स्तर पर प्रयास चल रहे हैं लेकिन मेरा मानना है कि यह उचित माध्यम के जरिए होना चाहिए। जो प्रमुख दल हैं उनके नेताओं के कई दौर की बातचीत हुई है। बातचीत आगे भी होगी लेकिन मैं बार-बार यही कहता हूं कि यह अवश्य ध्यान में रखा जाए कि उचित माध्यम के जरिए हीं बातें आगे बढ़ाई जाए। वैसे दलों पर ज्यादा केंद्रित करने से भी कोई फायदा नहीं जिनका राज्य में कोई जनाधार ही नहीं है।
हाल में कुछ फैसले नई दिल्ली से ले लिए गए। संगठन में कई लोग वापस आना चाहते हैं।
-पार्टी हित में फैसले ले रहे हैं। आपने देखा होगा कि कई दलों से लोग कांग्रेस में आ रहे हैं। यह प्रक्रिया और तेज होगी। जुलाई माह में एक बड़ा समूह पार्टी से जुड़ेगा। इनकी सूची लंबी है।
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