झारखंड में टिमटिमा रही लालटेन की लौ, कई नेताओं ने छोड़ा साथ
राज्य गठन के बाद प्रदेश राजद की सक्रियता का ग्राफ गिरने का सिलसिला जो शुरू हुआ, उसकी भरपाई आज तक नहीं हो सकी।

रांची, [ राज्य ब्यूरो] । चाहे संगठन सरकारी हो अथवा गैर सरकारी या फिर राजनीतिक दल, संगठन को क्रियाशील रखने के लिए 'फंड और फंक्शनरीज' पहली आवश्यक शर्त है। दुर्भाग्यवश झारखंड में टिमटिमा रही लालटेन की लौ को तेज करने की जद्दोजहद कर रहा राजद दोनों ही मामलों में बेहद कमजोर है।
राज्य गठन के बाद प्रदेश राजद की सक्रियता का ग्राफ गिरने का सिलसिला जो शुरू हुआ, उसकी भरपाई आज तक नहीं हो सकी। अविभाजित बिहार में झारखंड से राजद के नौ विधायक हुआ करते थे। 2005 में यह संख्या घटकर सात हो गई और 2009 में पांच। 2014 में राज्य से इनका पत्ता ही साफ हो गया, एक भी विधायक नहीं जीते। यह स्थिति तब हुई, जब झामुमो नीत वाली तत्कालीन हेमंत सोरेन की सरकार में राजद के कोटे से दो मंत्री थे। प्रदेश में राजद की बद से बदतर होती स्थिति की यह बानगी भर है।
एक स्थाई कार्यालय तक नहीं खुला :
यहां यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि एकीकृत बिहार में जब राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के नियंत्रण में यह क्षेत्र था, राजद की साख कमोबेश बरकरार रही। इस बीच 15 नवंबर 2000 को जब झारखंड बिहार से अलग हुआ, लालू ने झारखंड में राजद की इस साख को बनाए रखने पर कभी ध्यान नहीं दिया। लालू ने 2004 में मोरहाबादी मैदान में एक बड़ी रैली को संबोधित किया लेकिन इसके बाद वह छिटपुट ही कार्यक्रमों में झारखंड राजद का नेतृत्व करते नजर आए। पटना से ही वह स्थानीय नेताओं को निर्देश देते रहे। प्रदेश राजद की कमान पूरी तरह से स्थानीय नेताओं के हाथ सौंप दी गई, जो प्रदेश में राजद के सांगठनिक ढांचे को कमजोर करने में कहीं न कहीं सहायक बना। और तो और लगभग डेढ़ दशक की इस अवधि में प्रदेश राजद का स्थाई कार्यालय तक नहीं खुल सका।
बड़े नेताओं ने छोड़ा साथ :
दल की स्थिति झारखंड में नाजुक हुई तो कई बड़े नेताओं ने इससे किनारा कर लिया। वर्तमान में स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी राजद के बड़े स्तंभ माने जाते थे। इस दल से विधायक भी बने। लेकिन 2014 में पाला बदल कर भाजपा में चले गए और जीत कर विधानसभा पहुंचे। इसी तरह प्रकाश राम ने भी 2014 में ही दल का साथ छोड़ दिया और झारखंड विकास मोर्चा में शामिल होकर विधायक बने। राजद छोड़कर झाविमो में शामिल हुए जानकी यादव भी 2014 में विधायक चुने गए। इसके अलावा प्रदेश से लेकर जिला स्तर तक कई नेताओं ने दल का साथ छोड़ दिया।
फिर संगठन खड़ा करने की कवायद :
बहरहाल, 2019 के चुनाव को केंद्र में रख लालटेन की लौ तेज करने की कमान राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बीते साल गौतम सागर राणा को सौंपी है। विभिन्न दलों में राजनीति की लंबी पारी खेल चुके झारखंड के प्रदेश राजद अध्यक्ष राणा राज्य में राजद की साख फिर से स्थापित करने की जुगत में दिख रहे हैं। विपक्षी एकता की वकालत करने वाले गौतम सागर राणा ने जहां प्रखंड से लेकर राज्य स्तर तक पर सांगठनिक ढांचे में बदलाव किया है, वहीं लगभग डेढ़ वर्ष के अपने कार्यकाल में उन्होंने पूरे प्रखंड से लेकर प्रमंडलीय मुख्यालयों तक में कई कार्यक्रम आयोजित किए। बकौल राणा, इस अवधि में उन्होंने एक लाख से अधिक नए लोगों को संगठन से जोड़ा।
उनका दावा है कि 27 अगस्त को पटना में प्रस्तावित रैली के बाद झारखंड में विशाल रैली निकलेगी, जिसमें दो लाख से अधिक कार्यकर्ता शामिल होंगे। इससे पूर्व राजद के जनाधार वाले क्षेत्रों में राजद का रथ निकलेगा।
यह भी पढ़ें: चार और मामलों में आरोपी हैं लालू, रांची कोर्ट में चल रहा मुकदमा

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।