कांग्रेस के कीचड़ में खिलेगा कमल!
कांग्रेस के सामने भाजपा की चुनौती कम है तो 'कांग्रेसियों के कुनबों' की ज्यादा है। 16 जून को मतदान होना है। ...और पढ़ें

शिमला, डॉ.रचना गुप्ता। शिमला नगर निगम यूं तो 34 वार्डों का शहरी चुनाव भर है, लेकिन जिस ताकत के साथ भाजपा जुटी है उससे असंगठित कांग्रेस के होश फाख्ता हैं। हालांकि शिमला का यह निगम परंपरागत तौर पर कांग्रेसी रहा है लेकिन गत कुछ वर्षों में भाजपा ने बतौर पार्टी अपने को यहां जिस तरह मजबूत किया उसके बाद कांग्रेस की राह धीरे-धीरे मुश्किल होती रही।
इस बीच वामपंथियों को भी यहां परचम लहराने का मौका मिला गया क्योंकि इससे पहले वर्ष 2012 में जब निगम चुनाव हुए तब भाजपा प्रदेश में सत्ता में थी और उस वक्त पार्टी सिंबल पर चुनाव लडऩे के साथ ही मेयर व डिप्टी मेयर के लिए सीधे चुनाव का कानूनी प्रावधान किया था। भाजपा का यह दांव मेयर व डिप्टी मेयर के मामले में तब उलटा पड़ गया था। लेकिन कांग्रेस को शिमला के जमा जोड़ की कवायद की परख थी लिहाजा वामपंथियों का रास्ता बंद करने के लिए पार्टी सिंबल व डायरेक्ट चुनाव के भाजपाई प्रावधान को पलट दिया गया। लेकिन इस बार कांग्रेस एकछत्र मैदान में नहीं है। कांग्रेस के सामने भाजपा की चुनौती कम है तो 'कांग्रेसियों के कुनबों' की ज्यादा
है। 16 जून को मतदान होना है।
हफ्ताभर पहले ही प्रत्याशी उभरे और फिर पार्टी बैनर को लेकर भिड़ंत दोनों ही दलों में हुई। हाल यह हुआ कि भाजपा ने अपने प्रत्याशियों की सूची तो जारी कर दी लेकिन यहां भी पूर्व पार्षद के पति या पत्नी मैदान में आए तो कहीं पार्टी के नए चेहरे। चूंकि भाजपा खेमेबाजी को पहले ही गंभीरता से ले रही थी लिहाजा जिम्मेदारी संभाल रहे वरिष्ठ नेताओं व पार्टी अध्यक्ष सतपाल सत्ती ने कोई 'रिस्क' नहीं लिया। वहीं केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा, पार्टी प्रभारी मंगल पांडे, संगठन महामंत्री पवन राणा सहित बड़े नेताओं को घोषणापत्र के जरिए चुनाव में बड़ा संदेश दिया कि
किसी भी सूरत में भाजपा को शिमला में कब्जा दिलाना है। जो गलतियां पिछली बार हुई उनसे बचा गया।
संगठन बिलकुल एकजुट होकर काम कर रहा है। दूसरी ओर कांग्रेस के आगे कई दिक्कतें हैं। टिकट बंटवारे में
वीरभद्र, सुक्खू, आनंद शर्मा या कौल सिंह इत्यादि के या तो घोषित प्रत्याशी हैं पर जो घोषित नहीं हैं वे मुख्यमंत्री तस्वीर वाले पोस्टरों के साथ मैदान में है। यानी 70 प्रतिशत सीटों पर कांग्रेस के दो-तीन बागी एक साथ
खड़े हैं। जाहिर है बड़े नेताओं की शह है इसलिए कोई बैठ भी नहीं रहा। यही एक बड़ी वजह है जो भाजपा को मजबूती भी दे रही है। वर्ना गत चुनावों में विधायक सुरेश भारद्वाज जिन पार्षदों के साथ घर-घर वोट मांगने गए वहां पूरे पांच बरस वह पार्षद नजर ही नहीं आए। भराड़ी वार्ड एक उदाहरण भर है। यह अलग बात है कि पार्टी के मंत्री या बड़े नेता कितनी शिद्दत से वार्डों में काम कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस के समर्थित या जिताऊ उम्मीदवारों पर भाजपा भी नजर रखे हुए है।
इधर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह वार्डों में कल से खुद उतरे हैं। इस पर भ्रम है कि वास्तव में कांग्रेस वार्ड में प्रचार कौन से कैंडीडेट के लिए कर रही है? पार्टी मान रही है कि जो जीता वही हमारा पार्षद कहलाएगा। लेकिन सुक्खू द्वारा जारी की लिस्ट इस दावे पर पचड़ा जरूर डालेगी। बहरहाल निगम में आरक्षण रोस्टर पर भी स्थिति धुंधली होती रही। कांग्रेस सरकार ने निगम के वार्ड बढ़ा दिए। पुनर्सीमांकन में वे क्षेत्र हिल गए जहां कांग्रेस मजबूत थी। या फिर खेल ऐसे बिगड़ गया कि पुरुष वार्ड महिला के हो गए और महिला वार्ड पर पुरुष। भाजपा व कांग्रेस 34 सीटों पर लड़ रही है वहीं महिलाओं के लिए 17 आरक्षित हैं, जबकि सीपीएम 17 पर है। गत चुनावों में 25 वार्ड थे
और कांग्रेस 11 पर, भाजपा 12 पर व माकपा २ पर थी।
अब भी कांग्रेस व भाजपा मंत्रियों या पूर्व मंत्रियों के साथ मैदान में उतरी है। दो दिन प्रचार को बचे हैं। 17 जून को मतगणना है। जाहिर है विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले के यह नतीजे कम से कम मतदाताओं का मन परखने वाले होंगे। मौजूदा सरकार की खिलाफत है या मौजूदा विधायकों पर असहमति है या मोदी फैक्टर है या लोग परंपरागत तौर पर उम्मीदवारों की पसंद या न पसंद के साथ हैं, यह राज निगम चुनाव खोल देगा।
बहरहाल स्थिति यह है कि माकपा पुराने दमखम में नहीं है, वहीं कांग्रेस छिटकी व भिड़ी हुई है, जबकि भाजपा के लिए अपना विस्तार करने का अच्छा मौका है।
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