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    नोटबंदी के बाद हिमाचल

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    Updated: Sat, 19 Nov 2016 11:35 AM (IST)

    देश में 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने के बाद हिमाचल प्रदेश और यहां की आर्थिकी के पक्षों पर होने वाले प्रभाव की तह तक जा रही हैं दैन‍िक जागरण की राज्‍य संपादक डॉ. रचना गुप्ता

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    देश में मुद्रा को लेकर किए परिवर्तन के बाद छोटे से पहाड़ी प्रदेश की अर्थव्यवस्था की आगामी दशा उथल पुथल के दौर से गुजरेगी। 500 व 1000 रुपये के नोट बंद करने के ऐतिहासिक फैसले के पक्ष व विपक्ष दोनों तरह की प्रतिक्रियाओं के बीच राज्य 68 लाख की आबादी भविष्य में आर्थिकी को लेकर कई विरोधाभासों व अनुमानों के चलते शंकित है। क्योंकि दिनचर्या में व्यवहारिक दिक्कतों से लेकर बैकिंग प्रणाली और रोजमर्रा की जरूरतों के इर्द गिर्द घूम रहे पहाड़ के लोग भले ही कालेधन से जुड़े इस फैसले को सराहे लेकिन घरेलू अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को भी देखा जा रहा है।

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    हिमाचल की आर्थिकी कृषि व बागवानी पर निर्भर करती है। हालांकि कुछ हिस्सा पर्यटन का भी है वहीं कामगारों से ज्यादा लोग नौकरीपेशा भी है। परंतु बड़े राज्यों की तरह यहां बड़ा व्यापारी वर्ग न के बराबर है। लिहाजा प्रदेश की अर्थव्यवस्था में उपरोक्त क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए सकल घरेलू उत्पाद बढ़ाते आए है। वित्त वर्ष 2015-16 में हिमाचल की जीडीपी 7.5 रही है। वहीं प्रतिव्यक्ति आय 8.6 प्रतिशत बढ़ी है और एक लाख 19 हजार हुई है।

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    राज्य की 68.6 लाख की कुल जनसंख्या का 80 प्रतिशत गांव में रहता है जो पूरी तरह कृषि या बागवानी के काम को देखता है। कांगड़ा, मंडी, कुल्लू, शिमला व सिरमौर पांच ऐसे जिले है जहां सबसे ज्यादा लोग खेतीबाड़ी करते है, जिसमें अन्न व दालें शामिल है।

    लेकिन सब्जियां- शिमला, मंडी, कुल्लू व सिरमौर में होती है जबकि सेब व खट्टा प्रजाति के फल भी साढ़े सात लाख मीट्रिक टन औसतन पैदा होते है। ऐसे में फसलों पर मौसम की मार से अक्सर जूझते रहे कृषक व बागवान गांवो में बीमा योजना या सरकारी मुआवजे की ओर ताकते है। सालों साल तक राहत न मिलने की सरकारी प्रक्रिया मे पिसते ग्रामीणो के लिए 'घरेलू बैक' एक बल था।

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    अब जमीन जोतने के बजाए बैंको व डाकघरों के चक्कर लगाने की सूचनाओं के बीच यह भी महसूस किया जा रहा है कि बीज बुआई, नई पौध लगाने, स्प्रे के अलावा खाद की तैयारी कैसी होगी? वास्तव में हिमाचल के गांवो में अधिकतर सहकारी बैक है। अब दिक्कत यह है कि सहकारी बैंक पैसा तो जमा कर रहे है परंतु नोट नहीं बदल रहे। थोड़ा बहुत पैसा भी उसी को मिल रहा है जिसका उसमें खाता है। इसलिए लोगों को 18-20 किमी का न्यूनतम सफर तय करके शहरों में राष्ट्रीयकृत बैंको में आना पड़ रहा है। वहां भी चंद हजार रुपये निकलेंगे जबकि घरों में पड़ी पुरानी करंसी भी किसी तरह की मदद नहीं देने वाली।

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    गेहूं की बुआई एक बारिश पड़ते ही होगी जबकि मूली-शलगम के अलावा सेब का नया पौधा भी लगेगा। यह कैसे होगा, इसका कोई ठोस हल जल्द नहीं निकलने वाला। बता दे कि प्रदेश में इस वक्त कुल 1413 व्यवसायिक बैंक है और एक लाख की जनसंख्या पर 1955 बैंक की शाखाएं है। 2014 के सरकारी आंकड़े बताते है कि यहां लोग 56034 करोड़ रुपये जमा करवाते है और निकालते है 18317 करोड़ रुपये।

    यानी निकालने व जमा करने का अनुपात 32.69 है। जाहिर है कि राज्य के लोग बैंको पर ज्यादा निर्भर है बजाए बार-बार निवेश के। हालांकि बैंको में अब जमा पूंजी पर ब्याज दर इस घटना के बाद जैसे-जैसे घटी है उसका सीधा सीधा असर पहाड़ के कृषि व्यवसायियो पर पड़ेगा। पैसा निकलेगा कम, जमा होगा ज्यादा और ब्याज भी मिलेगा कम।

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    प्रदेश का दूसरा बड़ा वर्ग पर्यटन कारोबार से जुड़ा है। पर्यटन विभाग का आंकड़ा कहता है कि दिसंबर 2014 तक प्रदेश में 2416 होटल है। राज्य के 80 फीसद होटलों की बुकिंग रद हुई है और पर्यटन से जुड़े अन्य कारोबारी भी अगले दो महीने कोई बड़ा व्यापार नहीं होने की बात मान रहे है। लिहाजा ग्राहक न होने से निचले स्तर तक कामगारों पर भी इन सर्दियो में प्रभाव पड़ेगा। कुल्लू, शिमला व कांगड़ा में इसका असर सबसे ज्यादा पड़ सकता है। हालांकि गत वर्ष प्रदेश में एक करोड़ 63 लाख पर्यटक पहुंचे थे। उद्योग व व्यापार जगत में स्थिति यहां भी असहज है। आयकर में पूरा खुलासा न करने की सूरत में परेशानी तो है ही लेकिन अभी भी यह आस बंधी है कि आयकर पर पैनल्टी की दर को कम किया जाए तो काफी हद तक व्यापारी वर्ग बर्बादी से बच सकेगा। मध्यम वर्ग व्यापारी व बड़े उद्योगपतियो के बीच पूंजी निवेश का संकट बना है। क्योंकि प्रापर्टी व सोने पर भी सरकार की सख्ती के बाद कोई रास्ता नहीं बचा है।

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    उद्योग विभाग की जानकारी के मुताबिक राज्य में मध्यम व बड़े 4,848 कारखाने है। पन बिजली व सीमेंट के भी उद्योग है। जबकि महज 380 लघु उद्योग है। इनमें 3.13 लाख लोग काम करते है। सूचना के मुताबिक उद्योगों में कच्चे माल पर रोक तब थी जब ट्रांसपोर्ट को तेल के कारण प्रभावित माना जा रहा था।

    कामगारों व दिहाड़ीदारों के खाते होने के कारण प्रत्यक्ष कठिनाई नहीं प्रतीत हो रही। प्रदेश में एक बड़ा वर्ग सरकारी कर्मियों का है, जिन पर विमुद्रीकरण का इतना असर न हो लेकिन निसंदेह पैसे की कम निकासी पर हाथ कसा रहेगा। हालांकि हिमाचली खर्च करने में देश की तुलना में कहीं आगे है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम भारत सरकार की क्रियान्वयन रपट 2012 के मुताबिक प्रदेश का ग्रामीण प्रतिव्यक्ति एक महीने मे औसतन 1858 रुपये खर्च करता है, जबकि देश में यह संख्या 1278 रुपये खर्च की है। वहीं शहरी व्यक्ति हिमाचल मे 3134 रुपये खर्च करता है। होम लोन इत्यादि पर सरकारी कर्मी की निर्भरता रहती है। आगामी दिनों में अर्थव्यवस्था का असर होम लोन पर कैसा होगा, इस पर इस वर्ग की निगाहें हैं।

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