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    भवन असुरक्षित..खतरे में शिमला

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    Updated: Thu, 18 Aug 2016 01:01 AM (IST)

    राज्य ब्यूरो, शिमला : राजधानी शिमला में लोग मौत के मुहाने पर हैं। लोअर बाजार से लेकर लालपानी तक मकान

    राज्य ब्यूरो, शिमला : राजधानी शिमला में लोग मौत के मुहाने पर हैं। लोअर बाजार से लेकर लालपानी तक मकानों का इतना जमघट है कि यदि एक की भी नींव कमजोर हुई और भवन गिरा तो अपने साथ सैकड़ों मकान नष्ट हो जाएंगे। संजौली, समिट्री व टुटु कई ऐसे क्षेत्र व उपनगर हैं जो कंकरीट में बदल चुके हैं। किसी भी तरह की आपदा होने पर ये मकान पलभर में ढह जाएंगे। पहाड़ के पहाड़ पूरे कंकरीट में हैं। एक घर से दूसरा, तीसरा व चौथा सब सटे हुए हैं जो पूरे एक साथ तबाह हो सकते हैं। शिमला शहर में 300 से अधिक भवन असुरक्षित हैं जिन पर खतरा मंडराने लगा है। ये भवन बरसात के कारण कभी भी जमींदोज हो सकते हैं। हालाकि इन भवनों को निगम द्वारा असुरक्षित घोषित कर दिया गया था। इसके बावजूद लोग इन घरों में जान जोखिम में डालकर रह रहे हैं। ऐसे असुरक्षित भवनों के मालिकों को भवनों का जीर्णोद्धार करने के लिए निगम की तरफ से आदेश देने चाहिए ताकि कोई हादसा न हो सके। विडंबना यह है कि ऐसे भवनों के लिए निगम की तरफ से भी कोई ठोस नीति नहीं अपनाई गई है। निगम की तरफ से सिर्फ दावे ही किए जा रहे हैं कि असुरक्षित भवनों को खाली करवाया जाएगा। निगम के ये दावे खोखले ही साबित हुए हैं।

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    ब्रिटिश शासनकाल से खड़ी हैं इमारतें

    ब्रिटिश शासनकाल के समय में बसाई गई राजधानी शिमला की अधिकाश इमारतें आज अपनी उम्र पूरी कर चुकी हैं। वक्त के थपेड़ों को सहते-सहते कई इमारतें बूढ़ी हो चुकी हैं जो भूकंप के एक झटके में ही जवाब दे जाएंगी। आपदा से निपटने के लिए प्रशासन द्वारा बैठकें तो की जा रही हैं मगर ये कितनी कारगर साबित होंगी, यह वक्त ही बताएगा। लिहाजा जरूरत उन असुरक्षित भवनों को बचाने की है जिनमें अभी लोग रह रहे हैं।

    हर साल हो रहा नुकसान

    हर साल बरसात के दिनों में शिमला में असुरक्षित भवन ताश के पत्तों की तरह ढह रहे हैं लेकिन लोग आखें मूंदें और जान की परवाह किए बिना परिवारों की जान को जोखिम में डाले हुए हैं। असुरक्षित भवनों में रहने वाले लोगों का कहना है कि या तो इन भवनों की मकान मालिक मरम्मत करें या फिर घरों में रहने वाले लोगों को मरम्मत करने की अनुमति दी जाए।

    शिमला में है सिंकिंग जोन

    शिमला का लक्कड़ बाजार व लोअर बाजार से लेकर कृष्णानगर तक पूरा सिंकिंग जोन है जहां घरों की बुनियाद कमजोर है और मलबे पर ही कई इमारतें खड़ी की गई हैं। इन क्षेत्रों में अकसर भूस्खलन होते हैं।

    डंगे लगाने पर भी खतरा बरकरार

    लक्कड़ बाजार की बात की जाए तो तिब्बतियन बाजार भी आधा इसी कारण तहस नहस हुआ था और दर्जनों दुकानें मलबे के नीचे दब गई थीं। इसके बाद कई बार डंगे लगाने पर भी खतरा बना हुआ है। यहां स्थित रिवोली सिनेमा हॉल भी हादसे के बाद से बंद है।

    हादसे के बावजूद नहीं चेते लोग

    कृष्णानगर में यहां हर साल दर्जनों घरों में दरारें पड़ती आई हैं। कई घरों की दीवारें तक टूटी हैं। इसके बावजूद यहां लोगों ने बसना नहीं छोड़ा है।

    हादसे को बुलावा दे रहा पेयजल टैंक

    रिज मैदान पर पेयजल टैंक जिसमें दस लाख गैलन पानी भंडारण करने की क्षमता है, वो भी कभी बड़े हादसे को बुलावा दे सकता है।

    न कोई रोक टोक, न नियंत्रण

    लक्कड़ बाजार सिंकिंग जोन में करीब 15 साल पहले दर्जनों भवन तहत नहस हुए थे। ताश के पत्तों की तरह इमारतें ढह गई थीं। लक्कड़ बाजार बस स्टैंड के समीप ईदगाह में भूस्खलन के कारण ऐसी आपदा आई थी। इसके बावजूद अब तक नगर निगम फिर भी वैसे ही पुराने ढर्रे पर आधारित कार्यप्रणाली अमल में ला रहा है। लोगों पर न कोई रोक टोक है और न ही किसी का नियंत्रण है।

    सिंकिग जोन में भी नक्शा पास

    सिंकिंग जोन होने के बाद भी नगर निगम नक्शे पास करता है। रूलदुभट्टा वार्ड की पार्षद सरोज ठाकुर का कहना है कि सिंकिंग जोन में नगर निगम को कम से कम नक्शे पास नहीं करने चाहिए। ऐसे स्थानों पर पहले से ही भवनों को खतरा है। उस पर अतिरिक्त भवन निर्माण होने से पुराने भवनों पर और खतरा बढ़ जाएगा लेकिन निगम का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है।