सलामत रहे आपकी सेहत
बरसात का मौसम समाप्त हो चुका है और सर्दियां दस्तक दे रही हैं। यह गुलाबी ठंड भले ही लुभावनी लगती है, लेकिन अगर सतर्कता नही बरती गयी, तो यह बदलता मौसम द ...और पढ़ें

बरसात का मौसम समाप्त हो चुका है और सर्दियां दस्तक दे रही हैं। यह गुलाबी ठंड भले ही लुभावनी लगती है, लेकिन अगर सतर्कता नही बरती गयी, तो यह बदलता मौसम दमा समेत कई रोगों के कारण स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकता है। फिर भी कुछ सजगताएं बरतकर आप इस मौसम में स्वस्थ बने रह सकते हैं..
ऐसे काबू में आएगा दमा
दमा (अस्थमा) फेफड़ों की बीमारी है, जिसमें सीने में जकड़न, खांसी आना, और सांस लेने में अत्यधिक तकलीफ महसूस होती है। यह रोग सांस नली में सूजन के कारण उत्पन्न होता है। सांस नली की यह तकलीफ कई कारणों से उत्पन्न होती है।
जेनेटिक कारण: यानी जिन लोगों के परिवार में दमा और किसी तरह की एलर्जी की समस्या है, उन्हें इस रोग से ग्रस्त होने का ज्यादा खतरा रहता है, पर इसका यह मतलब नहीं है कि जिन लोगों के परिवार में एलर्जी की समस्या है, उनके सभी सदस्यों को यह रोग होगा। वहीं अगर फेमिली हिस्ट्री नहीं है, तो भी व्यक्ति दमा से ग्रस्त हो सकता है। बावजूद इसके, फेमिली हिस्ट्री होने से दमा होने की संभावना दो से तीन गुना बढ़ जाती है।
अन्य प्रमुख कारण: दमा होने की संभावना और इस रोग की तीव्रता विभिन्न कारणों से बढ़ जाती है..
-मौजूदा मौसम में दमा की समस्या बढ़ने का एक प्रमुख कारण परागकण हैं, जो एलर्जी का कारण बनते हैं। दमा के मरीजों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, क्याेंकि परागकण उनके लक्षणों को बढ़ा देते हैं।
-प्रदूषित वातावरण। धूल और धुएं का प्रकोप।
-डस्ट माइट्स- जो कपड़ों और बिस्तरों में पाए जाते हैं।
-कुछ खाद्य पदार्थो से एलर्जी होना।
-पालतू जानवरों के बालों से एलर्जी।
-वाइरल फीवर या फ्लू के इंफेक्शन के कारण।
-अनियमित रूप से व्यायाम करना।
-कुछ पेन किलर्स के कारण।
जटिलताएं
समय पर सही उपचार न करवाने के कारण दमा के चलते बच्चों में समुचित शारीरिक विकास नहीं हो पाता। बच्चों की पढ़ाई का नुकसान होता है। वहीं वयस्कों में इस रोग के चलते काम पर न जाने से धन की हानि होती है। इसी तरह अस्थमा की गंभीर अवस्था (सीवियर अस्थमा) का इलाज न कराने से पीड़ित व्यक्ति की जान भी जा सकती है।
उपचार
अभी तक दमा-पीड़ितों के लिए एक बार में हमेशा के लिए रोग से मुक्ति पाने का इलाज नहीं तलाशा जा सका है। हां, दवाओं के जरिये और परहेज कर दमा को नियंत्रित जरूर किया जा सकता है। अगर कोई व्यक्ति दमा को जड़ से खत्म करने या इसे पूरी तरह जीवनभर के लिए खत्म करने का दावा करता है, तो उससे सजग रहें। इलाज की विधियां इस प्रकार हैं..
इनहेलर व नेबुलाइजर का इस्तेमाल: यह एक सरल, सुरक्षित और कारगर तरीका है। इनसे दवा सीधे फेफड़ों में पहुंचती है और कम दवा शीघ्र ही असर डालती है। इनहेलर और नेबुलाइजर के साइड इफेक्ट भी कम होते हैं। अपने डॉक्टर से इनके इस्तेमाल का सही तरीका सीखें और इनका लगातार इस्तेमाल करें, तब भी जब आप आराम महसूस कर रहे हों।
टैब्लेट्स: कुछ एंटी एलर्जिक टैब्लेट्स या गोलियां, ब्रांकोडाइलेटर और स्टेराइड टैब्लेट्स का भी दमा के नियंत्रण में प्रयोग किया जाता है, लेकिन इनका सेवन डॉक्टर की सलाह से ही करें।
बचाव
-फ्लू का टीका (वैक्सीन) हर साल लगवाएं और न्यूमोनिया का टीका एक बार जरूर लगवाएं।
-डॉक्टर द्वारा सुझायी गयी मात्रा में ही दवा नियमित रूप से लें।
-पालतू जानवरों को बिस्तर पर न आने दें।
-धूम्रपान न करें और न ही धूम्रपान करने वाले के पास रहें।
-सोने और ओढ़ने के कपड़े जैसे चद्दर आदि सूती होने चाहिए। इन कपड़ों को महीने में दो बार गर्म पानी में धोने से इनके अंदर रहने वाले डस्टमाइट्स मर जाते हैं।
-घर में भारी पर्दे और कार्पेट आदि में धूल ज्यादा रुक जाती है। इसलिए हल्के सूती पर्दे और कार्पेटस का इस्तेमाल करें।
(डॉ.सुशीला कटारिया फिजीशियन, मेदांता दि मेडिसिटी, गुड़गांव)

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