घुटने का पुन:प्रत्यारोपण, जानें जरूरी जानकारियां
8 वर्षीय श्रीमती विभा तलवार ने 1992 में दिल्ली में दाहिने घुटने का प्रत्यारोपण कराया था। वह मेरे पास आयीं। श्रीमती तलार पिछले एक साल से दाहिने घुटने में बढ़ रहे दर्द, चलने में लड़खड़ाहट और कठिनाई की तकलीफ से ग्रस्त थीं।
68 वर्षीय श्रीमती विभा तलवार ने 1992 में दिल्ली में दाहिने घुटने का प्रत्यारोपण कराया था। वह मेरे पास आयीं। श्रीमती तलार पिछले एक साल से दाहिने घुटने में बढ़ रहे दर्द, चलने में लड़खड़ाहट और कठिनाई की तकलीफ से ग्रस्त थीं। एक्सरे और बी.एम.डी. जांच के बाद पता चला कि पूर्व प्रत्यारोपित इंप्लांट हड्डी के क्षीण होते जाने और 'पॉली लाइनर' के घिसने से ढीला हो चुका है। वह ऑस्टियोपोरोसिस से भी ग्रस्त थीं। पूरी बात समझाने पर उन्हाेंने पुन: प्रत्यारोपण करा लिया। उनका ऑस्टियोपोरोसिस का इलाज भी चला। आज वह पुन: अपनी पूर्ववत स्वस्थ जीवन-शैली पर अमल कर रही हैं। एक दिन मॉर्निंग वॉक पर मिलने पर उन्होंने मुझे तहेदिल से धन्यवाद दिया।
घुटना प्रत्यारोपण से संबंधित सर्जरी निस्संदेह हमारे समय की सबसे बड़ी मेडिकल उपलब्धियों में से एक है। कूल्हा और घुटना प्रत्यारोपण की तकनीक ने पिछले चार दशकों से दुनिया के लाखों लोगों की जिंदगी में सुखद बदलाव ला दिया है। प्रत्यारोपण ऑपरेशन के बाद दर्द से निजात, चाल में सहजता और गति की सीमा में सुधार से जीवन की गुणवत्ता में सुधार हुआ है और व्यक्ति वापस सामान्य जीवन हासिल कर लेता है। कृत्रिम जोड़ों के घिसने और ढीले होने के कारण पुराने प्रत्यारोपण को हटाने और नए कृत्रिम घुटनों के साथ उन्हें बदलने के लिए पुन:प्रत्यारोपण नामक एक दूसरी प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
क्या है घुटने का पुन: प्रत्यारोपण
घुटने के पुन: प्रत्यारोपण को संशोधन सर्जरी (रिवीजन नी सर्जरी) के रूप में भी जाना जाता है। इस प्रक्रिया में पहले से प्रत्यारोपित कृत्रिम घुटने के इंप्लांट को निकाल दिया जाता है और एक नए विशिष्ट प्रकार के कृत्रिम इंप्लांट को प्रत्यारोपित किया जाता है। इस संशोधन सर्जरी में हड्डी के ग्राफ्ट और विशेष प्रकार के इंप्लांट का इस्तेमाल किया जाता है। पुन: प्रत्यारोपण की आवश्यकता इन कारणों से होती है..
इंप्लांट का ढीला होना
समय के साथ कृत्रिम घुटने ढीले होते जाते हैं। वास्तव में सालों पूर्व कृत्रिम इंप्लाट में प्रयुक्त पॉलीएथीलिन की सतह समय के साथ घिसती जाती है और उसके फलस्वरूप उत्सर्जित कण जोड़ के किनारे एकत्र होते जाते हैं, जो सूजन पैदा करते हैं। कालांतर में सामान्य हड्डी भी कमजोर हो जाती है और गैर संक्रमित हड्डी क्षीण होने लगती है। फलस्वरूप इंप्लांट ढीला होने लगता है। इस प्रक्रिया में सालों लगते हैं।
संक्रमण
संक्रमण होना किसी भी सर्जरी की एक जटिलता है। आम तौर पर संक्रमण या तो मरीज के शरीर के अंदर मौजूद जीवाणुओं से होता है या फिर ऑपरेशन के स्थान पर बाहर से पहुंचने वाले जीवाणुओं से उत्पन्न होता है। मौजूदा चिकित्सकीय परिवेश में जहां जीवाणुरहित एयर फिल्टरयुक्त मॉड्युलर ऑपरेशन थिएटर और उच्च कोटि की एंटीबॉयटिक दवाएं उपलब्ध हैं। इस प्रकार के संक्रमण की संभावना सिर्फ 0.5 फीसदी रह गयी हैं।
फ्रैक्चर
पुन: प्रत्यारोपण की जरूरत फ्रैक्चर के प्रकार पर निर्भर करती है। यहां फ्रैक्चर से आशय घुटने के प्रत्यारोपण के आसपास हड्डी के टूटने से है। यदि फ्रैक्चर प्रत्यारोपण की स्थिरता को बाधित कर रहा है, तो पुन: प्रत्यारोपण सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है।
अस्थिरता
घुटने के आसपास सॉफ्ट टिश्यू की संरचना के कमजोर होने के कारण चलने-फिरने में दिक्कत होती है। सॉफ्ट टिश्यू के ढीलेपन के कारण जोड़ अस्थिर हो जाता है और दर्द होने लगता है। इस स्थिति में पुन: प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो सकती है।
रोगी से संबंधित कारण
मरीज की आयु, उसकी गतिविधियों का स्तर, इंप्लांट की डिजायन और मरीज की वजन नियंत्रण में विफलता पुन:प्रत्यारोपण की स्थिति पैदा कर सकती है। अत्यधिक मोटापे से ग्रस्त रोगियों में इम्प्लांट ढीला होने की संभावना अधिक होती है।
कुछ प्रमुख लक्षण
घुटना प्रत्यारोपण की असफलता के लक्षण आम तौर पर दर्द में वृद्धि या घुटने की चाल में कमी, सूजन, लगातार दर्द रहना और इंप्लांट के ढीला होने का संकेत मिलना है। इसके अलावा संक्रमण, घुटने की कार्यक्षमता में गिरावट, और जकड़न आदि लक्षणों के प्रकट होने पर संशोधन या पुन:प्रत्यारोपण सर्जरी की आवश्यकता होती है। घुटने की पुन:प्रत्यारोपण सर्जरी के बाद फिजियोथेरेपी आवश्यक है।
निष्कर्ष
मौजूदा दौर में मेडिकल साइंस में हुई प्रगति के कारण घुटने की पुन:प्रत्यारोपण सर्जरी अत्यंत सफल और सुरक्षित हो चुकी है। पुन:प्रत्यारोपण के बाद व्यक्ति एक बार फिर लगभग 20 से 25 सालों तक सक्रिय जीवन जी सकता है।
(डॉ.आर.के.सिंह, ज्वाइंट रिप्लेसमेंट व स्पाइन सर्जन)