अफसरों को नहीं दलितों की परवाह
अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़ हरियाणा सरकार के अफसर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की बैठकों में पूरी तैय
अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़
हरियाणा सरकार के अफसर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की बैठकों में पूरी तैयारी के साथ नहीं पहुंचते। या यूं कहिए कि केंद्र और राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद अफसरों ने आयोग को गंभीरता से लेना बंद कर दिया है। अफसरों को यह तक पता नहीं होता कि उनके जिलों में दलित कल्याण की कितनी योजनाएं चल रही और उन पर कितना अमल हो रहा है।
अफसरों के पास दलितों को आवंटित 100-100 गज के प्लाटों तक का पूरा ब्योरा उपलब्ध नहीं है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने अफसरों की इस हीलाहवाली को गंभीरता से लिया है। दलित कल्याण की योजनाओं की अनदेखी करने वाले अफसरों के खिलाफ आयोग विपरीत टिप्पणियां कर सकता है। आयोग के सदस्य एवं पूर्व राज्यसभा सांसद चौ. ईश्वर सिंह आजकल जिलों के दौरे पर हैं। अभी तक वे कैथल, कुरुक्षेत्र, करनाल, जींद, पानीपत, फतेहाबाद और सिरसा जिलों का दौरा कर चुके हैं। अगले दो सप्ताह के भीतर बाकी जिलों के दौरे पूरे करने की योजना है।
आयोग को एक भी जिले में अफसर ऐसे नहीं मिले, जो बैठक में पूरी तैयारी के साथ आए थे। उनसे दलित कल्याण की योजनाओं की जानकारी मांगी गई तो पूरी योजना और उसका बजट पेश कर दिया। छात्रवृत्ति के बारे में रिपोर्ट तलब की गई तो राज्य सरकार की ओर से अनुदान नहीं मिलने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया गया। अनुदान की मांग के लिए राज्य सरकार से किए जाने वाले पत्र व्यवहार तक की उन्हें कोई जानकारी नहीं है।
सबसे बुरी स्थिति दलितों को आवंटित प्लाटों को लेकर है। किसी जिले में अफसरों ने आयोग को यह रिपोर्ट उपलब्ध नहीं कराई कि कितने दलितों को प्लाट आवंटित हुए और कितनों को कब्जे मिल चुके हैं। यदि कब्जे नहीं मिल पाए तो उसकी असली वजह क्या है। आयोग के सदस्य ईश्वर
सिंह ने जींद जिले के दरौली और बिल्लोवाला गांवों में 1976-77 में
दलितों को आवंटित प्लॉटों पर कब्जे नहीं मिलने की रिपोर्ट तलब की
तो अफसरों ने चुप्पी साध ली। 38 साल के लंबे अंतराल में 490 दलितों को आवंटित प्लॉटों का इंतकाल और रजिस्ट्री दोनों हो चुके मगर फिर भी उन्हें कब्जे नहीं मिले हैं। पिछली सरकार में दलितों को पानी की टंकियां मुफ्त प्रदान की गई थी, लेकिन अब अफसरों ने जबरदस्ती इन टंकियों पर पानी के कनेक्शन दे दिए। एक दलित परिवार में यदि तीन टंकी हैं तो तीनों पर कनेक्शन होने के कारण उन्हें भुगतान के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। यानि योजना का असली मकसद ही खत्म हो गया है।
दलित उत्पीड़न के मामलों की सुनवाई का भी हश्र बेहद बुरा है। अधिकतर दलित उत्पीड़न के केस खारिज किए जा रहे हैं। एक जिले में जिला अटार्नी से 26 में से 20 केस खारिज होने की वजह आयोग ने पूछी तो वह जवाब नहीं दे सके। बाकी जिलों में भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। अब आयोग इस स्थिति को गंभीरता से लेने का मन बना चुका है।
अफसरों को नहीं अहमियत का अंदाजा
मैंने अभी तक आठ-दस जिलों का दौरा किया है। कहीं भी अफसर गंभीर
नहीं दिखे। मैंने महसूस किया कि अफसरों को आयोग की वर्किंग और गंभीरता का अहसास ही नहीं है। यह सरासर दलितों के हितों की अनदेखी है। अफसर यदि दलित कल्याण की योजनाओं व उनके उत्पीड़न को दूर कराने को अहमियत नहीं दे रहे तो इसके लिए सीधे तौर पर डीसी-एसपी जिम्मेदार हैं। सिरसा व फतेहाबाद के डीसी-एसपी को नोटिस देकर मैंने एक सप्ताह में पूरी आंकड़ा गत रिपोर्ट तलब की है। पिछले तीन साल की रिपोर्ट मांगी गई है। बाकी जिलों में भी आयोग अधिकारियों के साथ बैठकें करेगा।
- चौ. ईश्वर सिंह, सदस्य, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग एवं पूर्व राज्यसभा सांसद
मानसून सत्र के बाद राज्य सरकार के साथ आयोग की फुल बेंच बैठक
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की फुल बेंच जल्द ही राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ चंडीगढ़ में बैठक करेगी। यह बैठक जिलों के दौरे निपट जाने के बाद होगी। विधानसभा के मानसून सत्र के बाद यह बैठक संभव है, जिसमें जिलों से मिलने वाली रिपोर्ट पर मुख्य सचिव, डीजीपी व प्रशासनिक सचिवों के साथ बातचीत की जाएगी और राज्य में समग्र तौर पर रिव्यू होगा।