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    12वीं में अकाउंट में दिए बोर्ड ने 7 अंक, री-चे¨कग में हो गए 54

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 30 Jul 2017 03:00 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, अंबाला: हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड की लापरवाही के चलते नन्हेड़ा निवासी ग

    12वीं में अकाउंट में दिए बोर्ड ने 7 अंक, री-चे¨कग में हो गए 54

    जागरण संवाददाता, अंबाला: हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड की लापरवाही के चलते नन्हेड़ा निवासी गरीब परिवार की होनहार छात्रा मनप्रीत का भविष्य खराब हो गया। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी से इस छात्रा ने अंबाला के बकरा मार्केट सीनियर सेकेंडरी स्कूल से परीक्षा दी थी। 12 कक्षा में कॉमर्स की छात्रा का जब परिणाम आया तो छात्रा के होश उड़ गए। अकाउंटेंसी विषय में छात्रा के 70 में से सात अंक थ्योरी में डीएमसी में दिखाए गए और प्रेक्टिकल में 30 में से 17। निराश छात्रा ने जैसे-तैसे 1100 रुपये का जुगाड़ कर पहले री-चे¨कग का पेपर भरा लेकिन री-चे¨कग के रिजल्ट जोकि इंटरनेट पर जारी हुआ उसमें भी छात्रा को बोर्ड ने फेल दिखा दिया और छात्रा के थ्योरी में 7 की जगह 15 अंक दिखाए। री-चे¨कग में फेल होने पर छात्रा ने दोबारा 1100 रुपये खर्च कर री-अपीयर का पेपर भर दिया। 28 जुलाई को छात्र का अकाउंटेंसी कंपार्टमेंट का पेपर हुआ और 29 जुलाई को छात्रा के पास री-चे¨कग की डीएमसी पहुंच गई। इस डीएमसी में छात्रा के अकाउंटेंसी विषय में 54 अंक आए जबकि इंटरनेट पर 15 अंकों के साथ छात्रा को री-चे¨कग में भी फेल दिखाया गया था। इस तरह बोर्ड के रिजल्ट पर सवाल खड़े हो गए हैं।

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    कैसे बदल गए प्रेक्टिकल में नंबर

    हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड ने न केवल री-चे¨कग में छात्रा को पास किया बल्कि प्रेक्टिकल नंबर भी बदल गए। जबकि प्रेक्टिकल नंबर कभी नहीं बदले जाते। यदि स्कूल की तरफ से प्रेक्टिकल के पहले ही 25 नंबर भेजे गए थे तो छात्रा के पहली डीएमसी में 17 नंबर क्यों दिखाए गए। इसी तरह यदि वास्तव में छात्रा के 17 ही नंबर थे तो री-चे¨कग में 25 कैसे हो गए? बोर्ड या तो पहले गलत था या अब गलत है।

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    सदमे में रही दो माह छात्रा का चला इलाज

    छात्रा मनप्रीत कौर के दादा गुरनाम ने बताया कि उनकी पोती दो महीने तक इसी सदमे में रही कि वह फेल नहीं हो सकती। इसी कारण वह घर से बाहर निकलना तक छोड़ गई। कई जगह से मनप्रीत का इलाज कराया गया। इस तरह उन्हें आर्थिक नुकसान तो हुआ ही मानसिक शोषण भी पूरे परिवार का हुआ। बोर्ड की लापरवाही के चलते ही उनकी पोती का गवर्नमेंट कालेज में दाखिला नहीं हो सका और मजबूरी में अब उसे प्राइवेट कालेज में दाखिला दिलाना पड़ा।