म्यूचुअल फंड रिटायरमेंट प्लान वक्त की जरूरत
संसद में बजट पेश होने के बाद 11 जुलाई को मैंने अपने इसी कॉलम में लिखा था कि यह बजट निवेश के एक और नए रास्ते को खोलता है, लेकिन उसका जिक्र बजट भाषण में नहीं मिलता। इसका वर्णन केवल बजट हाईलाइट्स में करके छोड़ दिया गया है। यह कुछ इस प्रकार से है- पेंशन फंड और म्यूच्
संसद में बजट पेश होने के बाद 11 जुलाई को मैंने अपने इसी कॉलम में लिखा था कि यह बजट निवेश के एक और नए रास्ते को खोलता है, लेकिन उसका जिक्र बजट भाषण में नहीं मिलता। इसका वर्णन केवल बजट हाईलाइट्स में करके छोड़ दिया गया है। यह कुछ इस प्रकार से है- पेंशन फंड और म्यूचुअल फंड लिंक्ड रिटायरमेंट प्लान को एक समान कर छूट मिलेगी। म्यूचुअल फंड आधारित रिटायरमेंट प्लान सुनने में बढि़या विचार लगता है। साथ ही 80 सी के तहत निवेश सीमा में वृद्धि के बाद यह और भी अच्छा विकल्प है। लेकिन समस्या यह है कि इतनी बढि़या योजना जमीन पर कैसे उतरेगी, जब इसकी मूल कार्ययोजना ही गायब है।
हाईलाइट्स से यह तो साफ होता है कि म्यूचुअल फंड लिंक्ड रिटायरमेंट प्लान जैसी कोई स्कीम मूर्त रूप ले सकती है। बाजार नियामक सेबी सरकार को इसका सुझाव पहले ही दे चुका है। दरअसल यह सेबी द्वारा तैयार लंबी अवधि की म्यूचुअल फंड नीति का ही एक हिस्सा थी। सेबी ने म्यूचुअल फंड आधारित रिटायरमेंट प्लान को लेकर एक अभियान भी चलाया था। ऐसे रिटायरमेंट प्लान की योजना पहले से चर्चा में थी। हाईलाइट में इसके शामिल होने से तय हो गया है कि इस स्कीम में टैक्स लाभ नेशनल पेंशन स्कीम के जैसे होंगे। इसके तहत निवेशकों को अनिवार्य रूप से रिटायरमेंट तक निवेशित रहना होगा और उन्हें 80सीसीडी के लाभ मिलेंगे।
समस्या यह है कि अभी तक इस स्कीम को लेकर आधिकारिक तौर पर कोई वक्तव्य सामने नही आया है। यह कब और किस रूप में अमल में आएगी, इसका पता किसी को नहीं है। बजट घोषणाओं पर अधिसूचना संसद में बजट पारित होने के बाद ही जारी होती है, लेकिन दिक्कत यह है कि इस स्कीम को लेकर बजट में कहीं कुछ कहा ही नहीं गया है। वित्त विधेयक में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे इस स्कीम को लेकर कोई संकेत मिलता हो। इसका जिक्र केवल बजट हाईलाइट्स के पेज नंबर 12 पर करके छोड़ दिया गया है। अन्य बजट दस्तावेजों के साथ वितरित हाईलाइट दुर्भाग्य से प्रचार सामग्री से ज्यादा कुछ नहीं है। बजट भाषण, वित्त विधेयक या अन्य दस्तावेजों के समान इसकी कोई वैधानिकता भी नहीं है। यही समस्या भी है। क्या फंड आधारित रिटायरमेंट प्लान को वास्तव में मंजूरी मिल पाएगी? यदि हां तो कैसे? और यदि नहीं तो हाईलाइट में इसका जिक्र क्यों और कैसे आया? क्या किसी गलती की वजह से ऐसा हुआ?
अगर ऐसा हुआ है तो यह गंभीर मामला है। केवल कुछ ही भारतीयों के पास लंबी अवधि की रिटायरमेंट वाली बचत है जो ऊंचे रिटर्न वाली इक्विटी असेट पर आधारित है। हममें से ज्यादातर के पास अलग तरह की बचत है। छोटी अवधि वाली बचत इक्विटी में निवेश पर आधारित है, जबकि लंबी अवधि की बचतें फिक्स्ड इनकम निवेश का हिस्सा हैं। इनमें बमुश्किल महंगाई दर के ऊपर रिटर्न मिल पाता है। इसीलिए म्यूचुअल फंड रिटायरमेंट प्लान इस समस्या से निकलने का जरिया है, बशर्ते सरकार उन्हें मूर्त रूप लेने की इजाजत दे।
धीरेंद्र कुमार
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