Move to Jagran APP

‘बजरंगी भाईजान’ इंसानियत की बात करती है - कबीर खान

निर्देशक कबीर खान खुद को राजनीतिक रूप से जागरूक और सचेत फिल्मकार मानते हैं। ‘बजरंगी भाईजान’ के जरिए वे लेकर आ रहे हैं भारत-पाकिस्तान के रिश्ते पर एक नई कहानी। उन्होंने फिल्म के बारे में अजय ब्रह्मात्मज के साथ खुलकर बात की। पेश हैं उसके कुछ अंश...

By Monika SharmaEdited By: Published: Sun, 05 Jul 2015 12:43 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2015 01:08 PM (IST)
‘बजरंगी भाईजान’ इंसानियत की बात करती है - कबीर खान

निर्देशक कबीर खान खुद को राजनीतिक रूप से जागरूक और सचेत फिल्मकार मानते हैं। ‘बजरंगी भाईजान’ के जरिए वे लेकर आ रहे हैं भारत-पाकिस्तान के रिश्ते पर एक नई कहानी। उन्होंने फिल्म के बारे में अजय ब्रह्मात्मज के साथ खुलकर बात की। पेश हैं उसके कुछ अंश...

loksabha election banner

हॉट सनी लियोन को ये एक्टर लगते हैं सबसे हॉट

‘बजरंगी भाईजान’ में बजरंगी का सफर सिर्फ भावनात्मक है या उसका कोई राजनीतिक पहलू भी है?

भारत-पाकिस्तान का संदर्भ आएगा तो राजनीति आ ही जाएगी। मैं मेनस्ट्रीम सिनेमा में रियल बैकड्रॉप की कहानी कहता हूं। मुझे राजनीतिक संदर्भ से हीन फिल्में अजीब लगती हैं। राजनीति से मेरा आशय पार्टी- पॉलिटिक्स नहीं है। ‘बजरंगी भाईजान’ में स्ट्रॉन्ग राजनीतिक संदर्भ है।

‘बजरंगी भाईजान’ की क्या पॉलिटिक्स है?

आप किसी भी धार्मिक और राजनीतिक विचार के हों। आप बॉर्डर के इस तरफ हों या उस तरफ... आखिरकार इंसानियत सभी सीमाओं को तोड़ देती है। हम सभी चीजों को देखने-समझने का एक स्टीरियोटाइप बना देते है। उससे हमारी सोच प्रभावित होती है। ‘बजरंगी भाईजान’ इंसानियत की बात करती है। धार्मिक, राजनीतिक, वैचारिक और अन्य सीमाओं से ऊपर उठकर बातें करती है।

आपकी फिल्म के शीर्षक पर आपत्ति है?
जो आपत्ति कर रहे हैं, मेरी फिल्म उन लोगों के लिए ही है। उन्हें संकीर्णता खत्म करनी चाहिए। इस तरफ और उस तरफ के कट्टरपंथियों के लिए ही फिल्म बनाई है, जिन्हें यह फिल्म देखकर
शर्म आएगी।

अभी के माहौल में आप जैसी सोच के साथ काम करना आसान है क्या?
हमें अपनी लड़ाई जारी रखनी होगी। अगर कुछ चीजें गलत हो रही हैं तो हमें बोलना होगा। उन सभी को बोलना होगा, जिनकी पहचान है। सोच-विचार के बिना आदमी होने का तो कोई मतलब ही नहीं रह जाता। उसकी वजह से हम जानवरों से अलग होते हैं। सलमान खान के स्टारडम के पावर का इस्तेमाल मैंने एक सही बात रखने में
किया है। वे खुद ऐसी सोच में यकीन रखते हैं।

पाकिस्तान को लेकर समाज में अनेक धारणाएं प्रचलित हैं। एक खास किस्म की राजनीति उसे हवा भी देती है?
समस्या यह है कि पाकिस्तान के पॉलिटिकल क्लास के काम की जिम्मेदारी हम अवाम पर डाल देते हैं। पाकिस्तान के प्रशासन से मेरे मतभेद हैं। वहां की अवाम को हम क्यों बुरा समझें? वे उतने ही परेशान हैं, जितने हम। आतंकवाद से उनका ज्यादा नुकसान हो रहा है। पिछले दस सालों में हमने जितनी जानें गंवाई हैं, उससे कई गुना पाकिस्तान गंवा चुका है। ‘काबुल एक्सप्रेस’ के समय भी यह प्रॉब्लम थी। अफगान सुनते ही टेररिस्ट का ख्याल आता है। तालिबान के हाथों सबसे ज्यादा कौन मारे गए - अफगानी। हमें समझना होगा कि देश की राजनीति और देश की अवाम दोनों अलग चीजें हैं। ‘न्यू यॉर्क’ में भी मैंने यही कहने की कोशिश की थी।

फिर साथ नजर आ सकते हैं 'देसी बॉयज' अक्षय और जॉन

पॉलिटिक्स पर इतना जोर क्यों देते हैं?
वह डॉक्युमेंट्री के दिनों से आया है। मैंने सईद नकवी के साथ काम किया है। पांच सालों में उनके साथ सीएनएन और बीबीसी में अलग नजरिए से घटनाओं को देखने की कोशिश में राजनीतिक समझ बढ़ती गई। दक्षिण एशिया के संदर्भ और दृष्टिकोण से मैंने सब कुछ देखा। जो हमें बताया जाता है और जो होता है, उन दोनों के बीच से मेरी
कहानियां निकलती हैं। मेरी पांचों फिल्में उसी जोन की हैं।

डॉक्यूमेंट्री से फिल्मों में आने की क्या वजह रही?
मुझे लगा कि भारत में उनके लिए स्पेस नहीं है। मेरी फिल्में विदेशों में दिखाई जा रही थीं। उन्हें भारत के दर्शक नहीं मिल रहे थे। मुझे संतोष नहीं हो रहा था। फिर समझ में आया कि मेनस्ट्रीम सिनेमा से बड़ा प्लेटफॉर्म भारत में नहीं है। दर्शकों की तलाश में मैं फिल्मों में आया।

यहां आउटसाइडर को जल्दी मौके नहीं मिलते। आपका कैसा अनुभव रहा?
मुझे खुशी है कि यशराज फिल्म्स से मुझे मौके मिले। मैं ‘काबुल एक्सप्रेस’ की स्क्रिप्ट लेकर घूम रहा था। सभी स्क्रिप्ट की तारीफ करते थे लेकिन कोई पैसे देने को तैयार नहीं था। कहीं से मेरी स्क्रिप्ट आदित्य चोपड़ा के पास पहुंची। उनका फोन आया तो पहले लगा कि कोई मजाक कर रहा है। आदि ने पांच मिनट में स्क्रिप्ट फाइनल
कर दी। दो महीनों के बाद शूटिंग शुरू हो गई। फिर उनकी तरफ से ‘न्यू यॉर्क’ का सुझाव आया। वे मुझे मेनस्ट्रीम तक ले आए। यशराज के लिए वह बड़ा जोखिम था। उसके बाद ‘एक था टाइगर’ आई। इस फिल्म में सलमान से संबंध बने और अब ‘बजरंगी भाईजान’ आ रही है।

इस फिल्म की बात कैसे बनी?
‘बजरंगी भाईजान’ जैसी फिल्म सलमान को लेकर ही बन सकती थी। ‘एक था टाइगर’ के समय हुई दोस्ती काम आई। हम दोनों कुछ अलग करना चाहते थे। हम दोनों एक फेज पर थे। इस फिल्म में हम दोनों की परस्पर समझदारी से मदद मिली। हम दोनों को इस फिल्म में बहुत यकीन है। तभी इसकी स्क्रिप्ट सुनते ही सलमान ने
कहा कि इसे हम खुद प्रोड्यूस करेंगे। इस फिल्म में मैंने चुटीली बातें मजाकिया लहजे में रखी हैं। अनेक शार्प कमेंट मिलेंगे।

ससुर के शोक संदेश से करिश्मा कपूर का नाम गायब


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.