तो कुछ और ही होता शोले का क्लाइमेक्स..
बॉलीवुड फिल्मों में ये एक जोक से कम नहीं कि फिल्म के एंड में जब हीरो विलेन की कहानी खत्म कर चुका होता है, पुलिस हमेशा तभी आती है और हवा में फायर करते हुए कहती है रूक जाओ, कानून को अपने हाथ में मत लो। इसके पीछे भी एक जबरदस्त कहानी है। रमेश सिप्पी ने फिल्म शोले से जुड़ा ऐसा ही एक रा
नई दिल्ली। बॉलीवुड फिल्मों में ये एक जोक से कम नहीं कि फिल्म के एंड में जब हीरो विलेन की कहानी खत्म कर चुका होता है, पुलिस हमेशा तभी आती है और हवा में फायर करते हुए कहती है रुक जाओ, कानून को अपने हाथ में मत लो। इसके पीछे भी एक जबरदस्त कहानी है।
रमेश सिप्पी ने फिल्म शोले से जुड़ा ऐसा ही एक रोमांचक किस्सा सुनाया। उन्होंने बताया कि देश में उस समय इमरजेंसी का टाइम था तो फिल्मों में अपने मन से बहुत कुछ दिखाने की छूट नहीं थी। ऐसे में शोले की रिलीज डेट से कुछ दिन पहले रमेश सिप्पी को सेंसर बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) के ऑफिस में बुलाया गया और कहा गया कि आपकी फिल्म में हिंसा दिखाई गई है। रमेश ने इस बात पर अपने मत सामने रखे और समझाने की कोशिश की कि फिल्म में कहीं कोई खून के सीन नहीं है, और यहां तक की जिस सीन में गब्बर ने ठाकुर के हाथ काटे हैं, उसमें भी हाथ काटने के बजाय शॉल उड़ते हुए दिखाया गया है। जैसे तैसे सीबीएफसी ने दलील को मान लिया। पर फिर वे इस बात पर अड़ गए कि फिल्म का एंड बदलना पडे़गा क्योंकि उसमें भी बहुत हिंसा है।
रमेश को यह समझ आ चुका था कि अगर सीबीएफसी की बात नहीं मानी तो फिल्म रिलीज की डेट टाल दी जाएगी। उस समय सीबीएफसी ने कहा कि हम आपको सुझाव देते हैं कि एंड कैसा होना चाहिए और तब खोज शुरू हुई एक पुलिस इंस्पेक्टर की जो एंड में आकर हवा में फायर करते हुए ठाकुर साहब से कहता है कि रुक जाइए, आप खुद एक पुलिस ऑफिसर रह चुके हैं, कानून को अपने हाथ में मत लीजिए।
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