उत्तराखंड विधानसभा चुनाव: कांग्रेस को झटका दे ही गए एनडी
अपने पुत्र को राजनीतिक वारिस बनाने की नारायण दत्त तिवारी की मुहिम अंतत: भाजपा में जाकर खत्म होती नजर आ रही है। उनके द्वारा भाजपा की सराहना करना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है।
देहरादून, [विकास धूलिया]: पिछले कुछ महीनों से अपने पुत्र को राजनीतिक वारिस बनाने की नारायण दत्त तिवारी की मुहिम अंतत: भाजपा में जाकर खत्म होती नजर आ रही है। रोहित को विधानसभा चुनाव में भाजपा टिकट दिलाने के लिए वह सपरिवार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात तो कर आए, मगर स्वयं को भाजपा की सराहना तक ही सीमित रखा।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 के दौरान हालांकि राजनैतिक हलकों में माना जा रहा है कि अगर रोहित शेखर के टिकट की औपचारिक घोषणा हो जाती है तो एनडी तिवारी भी भाजपा में शामिल हो सकते हैं। संभावना है कि रोहित शेखर को भाजपा हल्द्वानी से अपना प्रत्याशी बनाए, क्योंकि पार्टी ने अभी इस सीट पर प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। भले ही एनडी ने अभी खुद भाजपा की औपचारिक रूप से सदस्यता नहीं ली, मगर उनके द्वारा भाजपा की सराहना किया जाना भी कांग्रेस के लिए बड़े झटके से कम नहीं।
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तीन दिन पहले ही दिग्गज कांग्रेसी रहे यशपाल आर्य ने पुत्र समेत भाजपा का दामन थामा और इसके बाद बुजुर्ग कांग्रेस नेता और उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, पत्नी उज्जवला शर्मा एवं पुत्र रोहित शेखर के साथ नई दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात करने जा पहुंचे।
तिवारी ने भाजपा तो ज्वाइन नहीं की मगर पार्टी की सराहना जरूर की। पिछले दस महीनों में भाजपा के हाथों एक के बाद एक झटके खा रही कांग्रेस के लिए यह नवीनतम आघात है। इसके साथ ही पिछले कुछ महीनों से चल रहे कयासों पर भी विराम लग गया और तिवारी ने अंतत: अपने पुत्र के लिए सियासी ठौर तलाश ही लिया।
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उम्र के नौ दशक पूर्ण कर चुके एनडी तिवारी आंध्र प्रदेश के राज्यपाल पद से मुक्त होने के बाद से ही सक्रिय राजनीति से अलग हैं। इसके बाद उन्होंने काफी वक्त लखनऊ में गुजारा और इस दौरान उनकी समाजवादी पार्टी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव व मुलायम सिंह यादव से नजदीकी सियासी गलियारों में चर्चा में भी रही।
रोहित शेखर तिवारी को उत्तर प्रदेश सरकार ने एक सरकारी ओहदा भी सौंपा। कुछ समय पहले तिवारी उत्तराखंड लौट आए और हल्द्वानी में रहने लगे। दरअसल, तिवारी की ख्वाहिश पुत्र रोहित शेखर को अपना राजनैतिक वारिस बनाने की है। उन्होंने कांग्रेस से इस संबंध में बात भी की।
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मुख्यमंत्री ने रोहित तिवारी को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं उत्तराधिकारी परिषद का उपाध्यक्ष मनोनीत कर मंत्री पद का दर्जा दिया मगर चुनाव में प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर कोई सकारात्मक संकेत नहीं दिया। नतीजतन, एनडी ने रोहित शेखर संग भाजपा का रुख करने का कदम उठाया।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी केंद्र में विदेश, वित्त और उद्योग जैसे अहम मंत्रालय भी संभाल चुके हैं। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद वर्ष 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा को शिकस्त देकर जब कांग्रेस सत्ता में आई, तो कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया।
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एनडी तिवारी उस वक्त लोकसभा में नैनीताल सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। हालांकि तिवारी को उत्तराखंड में अपनी पार्टी के भीतर ही विरोध का सामना करना पड़ा मगर वह अपने लंबे सियासी तजुर्बे के बूते पूरे पांच साल सरकार चला ले गए। वह अब तक उत्तराखंड में पूरे पांच साल तक पद पर रहे अकेले मुख्यमंत्री हैं।
हालांकि नब्बे के दशक में कुछ वक्त के लिए एनडी ने तिवारी कांग्रेस नाम से अलग पार्टी बनाई मगर जल्द ही वह फिर कांग्रेस में लौट आए। इस लिहाज से देखा जाए तो मौजूदा समय में सबसे उम्रदराज और तजुर्बेकार राजनेता नारायण दत्त तिवारी ही हैं।
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राजनीति में प्रवेश करे उन्हें साढ़े पांच दशक हो चुके हैं। उनकी पहचान विशुद्ध कांग्रेसी के रूप में रही है। अब जबकि वह उम्र के इस पड़ाव पर अपने पुत्र के राजनैतिक भविष्य की खातिर भाजपा की सराहना कर रहे हैं तो यह देखना दिलचस्प रहेगा कि भाजपा को चुनाव के मौके पर इसका कितना लाभ मिलता है।
भाजपा की रणनीति तिवारी की भावनात्मक अपील को अपने पक्ष में कैश कराने की हो सकती है। अभी भी तिवारी का कुमाऊं, खासकर नैनीताल व ऊधमसिंह नगर जिलों की कई सीटों पर प्रभाव माना जाता है।
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