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    यूपी चुनाव- 2017 हिंदुओं के पलायन के बाद विरासत की जंग में उलझा कैराना

    By Ashish MishraEdited By:
    Updated: Tue, 31 Jan 2017 04:03 PM (IST)

    हिंदुओं के पलायन का मुद्दा गर्माने के बाद से यहां सांप्रदायिक धुव्रीकरण और गहराया है। पलायन मुद्दे को लेकर सुर्खियों में रहा कैराना चुनावी बेला आते ही विरासत की जंग में उलझा है।

    यूपी चुनाव- 2017 हिंदुओं के पलायन के बाद विरासत की जंग में उलझा कैराना

    [अवनीश त्यागी] शामली । महाभारत काल में महाराजा कर्ण की राजधानी कर्णपुरी माना जाने वाला कैराना मुगलकाल में भी राजाओं की पंसद रहा। हिंदू-मुस्लिम गुर्जर बहुल वाले इलाके में चबूतरा (चौपाल) की सियासी व सामाजिक गतिविधियों के केंद्र हैं। हसन परिवार और हुकुम सिंह के चबूतरों के इर्दगिर्द ही कैराना की सियासत सिमटती रही है। हिंदुओं के पलायन का मुद्दा गर्माने के बाद से यहां सांप्रदायिक धुव्रीकरण और गहराया है।
    पलायन मुद्दे को लेकर सुर्खियों में रहा कैराना चुनावी बेला आते ही विरासत की जंग में उलझा है। आम लोगों की मुश्किलें जस की तस हैं और हालात बेहतर होने की आस भी अधिक नहीं है। ऐसे में चाय की दुकानों और गांवों में चौपाल पर एक सवाल छाया है कि बाबूजी (हुकुम सिंह) की सियासी विरासत को कौन संभालेगा? स्थानीय दो प्रमुख सियासी घरानों सांसद हुकुम सिंह व हसन परिवार के बीच में वर्चस्व की जोर आजमाइश के बीच ही राजनीतिक वारिसों के कद भी तय होंगे। कैराना की लड़ाई अन्य सीटों की तुलना मे ज्यादा दिलचस्प मानी जा रही है।

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    70 के दशक में सेना छोड़कर वकालत के साथ ही राजनीति की शुरुआत करने वाले हुकुम सिंह 1974 में पहली बार विधायक निर्वाचित हुए और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कैराना में तब कांग्रेस नेता व पूर्व सांसद स्व.अख्तर हसन सक्रिय थे। उनके और हुकुम ंिसंह के बीच शुरू राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता आज भी कायम है। पूर्व सांसद अख्तर हसन के पुत्र स्व. मुनव्वर हसन के बाद अब पौत्र विधायक नाहिद हसन भी उसी लड़ाई को कायम रखे हैं। मुनव्वर के नाम सबसे कम उम्र लोकसभा, विधानसभा, राज्यसभा व विधान परिषद सदस्य बनने का अनोखा रिकार्ड भी है। लगभग चार दशक से दोनों परिवार इस क्षेत्र में राजनीतिक धुरी बने हैं। गत लोकसभा चुनाव में सांसद निर्वाचित होने की हसरत पूरी कर लेने वाले 75 वर्षीय हुकुम सिंह ने 90 के दशक में भाजपा का दामन थामा।

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    प्रदेश में कई सरकारों में मंत्री रहे हुकुम सिंह लगातार गत चार विधानसभा चुनाव में जीते। वर्ष 2014 में सांसद निर्वाचित हुए परंतु अपनी सीट पर भतीजे अनिल चौहान को उप चुनाव में नहीं जिता सके। मामूली अंतर (1070 वोट) से हसन परिवार के नाहिद हसन ने अनिल को हरा कर कैराना विधानसभा सीट को सपा के खाते में डाल दिया। सपा ने जाहिद पर फिर दांव खेला है और भाजपा ने हुकुम सिंह की बेटी मृगांका को मैदान में उतारा है। नाराज भतीजा अनिल चौहान बगावत कर राष्ट्रीय लोकदल उम्मीदवार के तौर पर मैदान में है और विरासत को चुनौती दे रहा है। प्रथम चरण में 11 फरवरी को मतदान में 17वीं विधानसभा के लिए क्षेत्रीय विधायक ही नहीं हुकुम सिंह परिवार का सियासी वारिस भी तय होगा।

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    हसन परिवार और हुकुम सिंह के चबूतरों के इर्दगिर्द ही कैराना की सियासत सिमटती रही है। हिंदुओं के पलायन का मुद्दा गर्माने के बाद से कैराना में सांप्रदयिक धुव्रीकरण और गहराया है। विधानसभा चुनाव में पलायन को भी एक अहम मुद्दा बता रहे गांव अलीपुरा के विक्रम सिंह कहते हैं कि आजादी के बाद से मुस्लिम-हिंदुओं की आबादी अनुपात में उलटफेर की अनदेखी नहीं की जा सकती है। इस इलाके में गरीबी जैसी समस्याओं से अधिक जान माल व इज्जत आबरू की हिफाजत कर पाना भी मुश्किल है। एडवोकेट इरफान अली भी इस बात का समर्थन करते हुए कहते हैं कि जिस तरह से पलायन विवाद को तूल दिया जा रहा है, उसका दो तरफा असर होना लाजमी है।

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    जीते कोई, समस्याएं वही : हरियाणा से सटे हुए इस क्षेत्र के किसान उत्पादन में पड़ोसी राज्य को टक्कर देते हैं, लेकिन उपज के दाम नहीं मिलते। बेचने के लिए हरियाणा का मुंह ताकना पड़ता है और डीजल पेट्रोल का इंतजाम भी वहीं से करने की मजबूरी बता रहे आटो रिक्शा संचालक मो. मुस्तकीम का आरोप है कि कैराना ने नेता बड़े- बड़े दिए परंतु उन्होंने 'रिटर्न गिफ्ट नहीं दिया। चंद मुख्य सड़कों को छोड़ दें तो अन्य संपर्क मार्गों की दशा दुरुस्त नहीं है। कैराना से जिला मुख्यालय शामली को जोडऩे वाली सड़क के गड्ढे मुस्तकीम के आरोपों में सच्चाई को बयां करते हैं। कोल्हू पर गन्ना बेचकर लौट रहे राम सिंह कश्यप का कहना है कि किसानों को न तो सही दाम मिलते हैं, न समय से भुगतान।

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    उद्योग धंधे चौपट, खेती ही सहारा : उपेक्षाओं के चलते कंडेला में औद्योगिक क्षेत्र विकास योजना कारगर नहीं हो सकी। यमुना के खादर में धान, गन्ना व सब्जी की खेती होती है। छोटी नौकरियों के लिए भी यमुना नदी पार हरियाणा जाने का दर्द बयां करते योगेश मित्तल का कहना है कि कानून व्यवस्था के बदतर हालात कैराना में रौनक न होने देंगे। संगीत घरानों में आला मुकाम रखने वाला कैराना अब अवैध हथियारों की मंडी बना है।
    टीचर्स कालोनी की खामोशी : कैराना की टीचर्स कालोनी भी पलायन के केंद्र में रही है। चुनाव के नजदीक आने पर भी क्षेत्रवासी उत्साहित नहीं है। पान की दुकान चला रहे कि सतेंद्र का कहना है कि कानून व्यवस्था में सुधार के आसार नहीं है, गत दिनों हथियारों को जखीरा पकड़ा गया उससे कैराना की विस्फोटक स्थिति का अंदाज लगाया जा सकता है।

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    न झंडा, न शोरगुल : चुनाव निकट है परंतु बुढ़ाना से कैराना तक करीब 30 किलोमीटर सफर तय करने के बाद भी इक्का-दुक्का घरों पर ही झंडे नजर आए। गांव पंजीठ पहुंचे तो वहां पर वर्षा के कारण बंद कोल्हू पर ताश खेल रहे लोगों में से एक इस्लाम कहते हैं कि अभी चुनावों जैसा नहीं लग रहा। नारे लगाते जुलूस नहीं दिख रहे और न कोई शोर-शराबा है। आयोग की सख्ती का असर दिखता है। उधर, रामबीर ने नोटबंदी की वजह बताते हुए जात बिरादरियों में भी बंटवारा होने का गणित समझा।

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    धुव्रीकरण पर दांव : क्षेत्र में सवा लाख से अधिक मुस्लिम मतदाता होने का दावा कर रहे सुलेमान अली का कहना है, उम्मीदवारों मे अकेला बड़ा मुस्लिम नाम सपा को ताकत देगा परंतु सत्यपाल चौहान का दावा है कि मुस्लिम धुव्रीकरण बढ़ेगा तो प्रतिक्रिया भी होगी। इसका लाभ हिंदुओं के जिताऊ प्रत्याशी को मिलेगा। माहौल गर्माने के साथ ही मतदाताओं का बदलता मिजाज चौंकाने वाले नतीजे भी देता है। एआइएमआइएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी कैराना पर निगाह लगाए हैं और मसीउल्लाह की उम्मीदवारी के जरिए अपनी ताकत आंकना चाहते हैं।

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    यह है कैराना-
    विधानसभा सीट संख्या-आठ
    जिला-शामली
    कुल मतदाता : 2,99,980
    पुरुष मतदाता : 1,63,493
    महिला मतदाता : 1,36,487
    साक्षरता दर : 60 फीसद

    प्रमुख प्रत्याशी
    सपा-नाहिद हसन विधायक
    भाजपा-मृगांका सिंह
    बसपा-दिवाकर कश्यप
    रालोद-अनिल चौहान

    वर्ष 2012 के चुनावी नतीजे
    पार्टी प्रत्याशी वोट प्रतिशत
    भाजपा हुकुम सिंह 80293 45.17
    बसपा अनवर हसन 60750 34.13
    सपा अय्यूब जंग 21267 11.96
    निर्दल अब्दुल अजीज 5862 03.30
    वर्ष 2007
    भाजपा हुकुम सिंह 53487 38.45
    रालोद अरशद 44983 32.34
    बसपा देवपाल 21330 15.33
    सपा विजय मलिक 11217 08.06
    वर्ष 2002
    भाजपा हुकुम सिंह 72782 51.48
    सपा राजेश्वर 62299 44.06
    निर्दल संजीव 1839 01.30
    कांग्रेस शराफत अली 1768 01.25