Punjab election : चुनाव नतीजे के बाद एसवाइएल नहर बढ़ाएगी पार्टियों की मुश्किल
पंजाब चुनाव पहले अहम मुद्दा रहा एसवाइएल नहर का मामला अगली सरकार के लिए बड़ी चुनौती रहेगा। सभी दलों ने इसका वोट के लिए इस्तेमाल किया, लेकिन चुनाव नतीजे के बाद यह बड़ी मुसीबत होगी।
जेएनएन, चंडीगढ़। पंजाब विधानसभा चुनाव में और उससे पहले अहम मुद्दा रहा सतलुज-यमुना लिंक (एसवाइएल) नहर का मामला अगली सरकार के लिए बड़ी चुनौती रहेगा। भले ही वोट की राजनीति के लिए सभी दलों ने इस मुद्दे का चुनाव में इस्तेमाल किया, लेकिन इस मामले में आगे की राह किसी के लिए भी आसान नहीं होगी। चुनाव नतीजे आने के बाद जिसकी भी सरकार बने उसे इसे कड़ी चुनौती से सबसे पहले रूबरू होना होगा।
इस मामले पर 2 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में संभावित अंतिम सुनवाई के बाद आने वाला फैसला पंजाब की नई सरकार के लिए कांटों भरी राह बनाएगा। सुप्रीम कोर्ट की ओर से 22 फरवरी को पंजाब-हरियाणा को इस नहर का निर्माण करने के दिए आदेश के बाद ऐसा माना जा रहा है कि फैसला पंजाब के खिलाफ ही आएगा।
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सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि नहर बनाने का काम पूरा किया जाए और पानी की संभावना बारे बाद में तय किया जाए।कांग्रेस और अकाली-भाजपा गठजोड़ का एसवाइएल को लेकर स्पष्ट स्टैंड रहा है। दोनों की ही समय-समय की सरकारों ने बीते 13 साल में पंजाब का पानी बचाने और एसवाइएल में अड़ंगा लगाने के प्रयास भी किए हैं। कैप्टन अमरिंदर ने मुख्यमंत्री रहते विधानसभा में 'पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट' पारित कराया था। इसके जरिए पड़ोसी राज्यों के साथ जल समझौते तोड़ दिए गए थे।
इसके बाद पिछले साल अकाली-भाजपा सरकार ने न केवल पंजाब के हिस्से में बनी नहर को पाट दिया था, बल्कि नहर के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन भी किसानों को मुफ्त में वापस कर दी थी। आम आदमी पार्टी की पंजाब इकाई का रुख भी ऐसा ही रहा है। हालांकि, आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल पंजाब में एसवाइएल के हक में बोलने के बाद दिल्ली जाकर अपने बयान से पलट गए थे। बाद में पंजाब विधानसभा चुनाव में उन्होंने पंजाब के पानी पर पंजाब का ही हक बताया है।
नतीजों के बाद बढ़ेगी परेशानी
11 मार्च को आने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर अकाली-भाजपा गठबंधन, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दावा करते रहे हैं कि सत्ता उन्हें ही मिलेगी। ऐसे में जिसकी भी सरकार बनी, उसे नहर बनाने का काम शुरू करना होगा। हालांकि नई सरकार कुछ ऐसे तर्क ढूंढने की कोशिश करेगी, जिससे नहर का निर्माण टाला जा सके। लेकिन, ताजा हालात में ऐसा संभव नहीं दिखता और जिस दल की सरकार अब नहर का निर्माण कराएगी, उसे आगे पंजाब के लोगों के बीच अपनी सफाई देने में बेहद मुश्किल हाेगी।
अफसरशाही संभाल रही मामला
फिलहाल सरकार की ओर से अफसरशाही ही यह मामला संभाल रही है और कोई राजनीतिक दखल इसमें नहीं दिया जा रहा। पिछले दिनों पंजाब के वरिष्ठ अधिकारी दिल्ली जाकर पंजाब का पक्ष रखने वाले वकीलों के साथ बैठक कर चुके हैं। अगली सुनवाई से पहले फिर से यह अधिकारी पंजाब के वकीलों से मुलाकात करेंगे। सुप्रीम कोर्ट पंजाब की यह दलील पहले ही नामंजूर कर चुका है कि नई सरकार बनने तक इस मामले की सुनवाई टाली जाए।
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