बड़े घर के बेटे
एक पिता के नाते पूर्व मंत्री रामाश्रय सहनी की पीड़ा को समझा जा सकता है। उनके पुत्र राजीव की ग्रामीणों की पिटाई से मौत हो गई। कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जिनका आकलन पद और अमीरी-गरीबी के हिसाब से नहीं किया जा सकता है। किसी गरीब के बेटे की मौत हो या गरीब के बेटे की, मां-बाप को बराबर की पीड़ा होती है। वैसी ही पीड़ा आज सहनी को भी हो रही होगी। सहानुभूति का कोई शब्द या पुलिस की बड़ी से बड़ी कार्रवाई उनकी पीड़ा को कम नहीं कर सकती है। लेकिन, यह घटना ऐसी है, जिससे बड़े लोग सबक ले सकते हैं। राजीव की मौत पूर्व मंत्री की किसी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते नहीं हुई। प्राथमिकी के मुताबिक उसकी मौत उस वक्त हुई जब वह अपने अन्य सहयोगियों के साथ गाड़ी चोरी करने के इरादे से दूसरे गांव में गया था। डकैती में तो नहीं, लेकिन चोरी की वारदातों के वक्त राज्य के लोग बड़ी दिलेरी दिखाते हैं। ऐसे समय पर वे कानून को हाथ में लेकर तुरंत फैसला कर देते हैं। राजीव भी भीड़ की इसी प्रवृति का शिकार हुआ। संभव है कि मौके पर लोग यह भी नहीं समझ पाए होंगे कि मरने की हद तक जिसकी पिटाई की जा रही है, वह किसी पूर्व मंत्री का पुत्र है। वाहन चोरी के मामले में राजीव की चर्चा पूरे राज्य में थी। वह इस आरोप में पकड़ा भी गया था। जेल गया था। हाल में जेल से छूटा था। उसकी मौत के कई कोण हैं। संभव है कि सहनी के मंत्री रहने के दौरान ही राजीव बुरी संगत का शिकार हुआ होगा। उसने पहले छोटी घटनाओं को अंजाम दिया होगा। पिता के प्रभाव के कारण पुलिस उसके प्रति नरमी दिखाती रही होगी। इससे उसका मन बढ़ता चला गया होगा। अंतत: यह सब किसी और के लिए नहीं, उसी के लिए जानलेवा हो गया। विश्लेषण करें तो कहीं न कहीं यह बात भी सामने आती है कि रामाश्रय सहनी इस मामले में आदर्श अभिभावक साबित नहीं हुए। हालांकि वे बता रहे हैं कि राजीव पहले बुरी संगत में था। इन दिनों सुधर गया था। वैसे, राजीव अकेले बड़ा घर का बेटा नहीं था, जिसकी संगति के चलते पूर्व मंत्री की बदनामी हो रही थी। इस समय एक और पूर्व मंत्री बेटे की करनी की सजा भुगत रहे हैं। अभी तो नहीं, कुछ साल पहले तक मंत्री, पूर्व मंत्री या अन्य बड़े लोगों के बेटों की कहानियां जब तब मीडिया की सुर्खियां बनती रहती थीं। सवाल यह है कि इस तरह की घटनाओं के लिए प्राथमिक तौर पर किसे जिम्मेवार ठहराया जाए। बिहार में बड़े लोगों ने अपने लिए अलग तरह की संस्कृति विकसित कर रखी है। उनके बच्चों को पिता के नाम पर बिना लिखा-पढ़ी के विशेषाधिकार हासिल हो जाता है। यह विशेषाधिकार उन्हें कानून को अपने हाथ में लेने के लिए प्रेरित करता है। पहली और दूसरी-तीसरी गलती लड़कपन के नाम पर माफ कर दी जाती है। फिर गलती करना ऐसे बच्चों की आदत में शुमार हो जाता है। हालांकि, यह सभी मंत्रियों के बच्चों पर लागू नहीं होता है। पहले और आज भी राज्य में ऐसे कई मंत्री हैं जिनके बच्चों को आम लोग पहचानते भी नहीं हैं। बहरहाल, इस घटना के बहाने रसूख वाले लोगों को आत्म निरीक्षण करना चाहिए कि उनके बच्चों की संगत ठीकठाक है या नहीं। सहनी ही क्यों, भगवान किसी भी पिता को ऐसा दिन न दिखाएं, यह कामना तो की ही जा सकती है।
[स्थानीय संपादकीय: बिहार]
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