यह तथ्य सामने आना भारत-अमेरिका संबंधों के हित में नहीं कि अमेरिकी सरकार ने 2010 में भाजपा समेत दुनिया के छह राजनीतिक दलों की जासूसी कराई थी। यह सनसनीखेज तथ्य ऐसे समय सामने आया है जब अमेरिकी प्रशासन नरेंद्र मोदी की भावी अमेरिका यात्रा की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा है। चूंकि ताजा खुलासे पर अमेरिका ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है इसलिए यह कहना कठिन है कि वह अपनी सफाई में क्या कहेगा, लेकिन इसमें दोराय नहीं कि वह एक बार फिर असहज हुआ है। उसकी ऐसी ही स्थिति तब हुई थी जब पहली बार यह सार्वजनिक हुआ था कि उसने अपने कई मित्र देशों के शासनाध्यक्षों की भी जासूसी कराई। इनमें जर्मनी और ब्राजील की शासनाध्यक्ष भी थीं। इन दोनों के साथ-साथ दुनिया के अन्य देशों के नेताओं ने भी अमेरिका की हरकत पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। आश्चर्यजनक रूप से उस समय तत्कालीन विदेश मंत्री ने अमेरिका की जासूसी को न केवल मामूली बात करार दिया था, बल्कि एक तरह से उसे क्लीन चिट भी दे दी थी। यह सर्वथा उचित है कि मौजूदा सरकार ने जासूसी के इस नए खुलासे पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के साथ ही अमेरिका से स्पष्टीकरण भी देने को कहा है और यह आश्वासन भी चाहा है कि उसकी ओर से भविष्य में ऐसा कुछ नहीं किया जाएगा। यह एक सर्वज्ञात तथ्य है कि प्रत्येक देश किसी न किसी स्तर पर दूसरे देश की जासूसी करता है। रह-रहकर इस संदर्भ में कुछ खुलासे भी होते रहते हैं। यह सिलसिला शायद ही खत्म हो, क्योंकि हर देश यह जानना चाहता है कि अन्य देश उसके संदर्भ में किस रीति-नीति पर चल रहे हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि अमेरिका पर हर किसी की जासूसी की सनक-सी सवार है।

अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी यानी एनएसए के कारनामों को उजागर करने वाले एडवर्ड स्नोडेन की ओर से सार्वजनिक किए गए दस्तावेजों से यह प्रकट होता है कि चार देशों को छोड़कर अमेरिका ने करीब-करीब दुनिया के हर देश की जासूसी की। इनमें से कुछ उसके मित्र कहे जाने वाले देश भी हैं। पता नहीं अब अमेरिका जासूसी के अपने जाल को समेटने का काम करेगा या नहीं, लेकिन यह समझ पाना कठिन है कि उसे उन राजनीतिक दलों और विशेष रूप से ऐसे दलों की जासूसी की क्यों सूझी जो सत्ता में नहीं थे। 2010 में भाजपा विपक्ष में थी और यदि उसकी जासूसी कराई गई तो यह भारत के आंतरिक मामलों में कुछ ज्यादा ही हस्तक्षेप है। चूंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली जासूसी के थमने की उम्मीद नहीं की जाती इसलिए भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अमेरिका अथवा अन्य किसी देश की खुफिया एजेंसी की ताकझांक से किस तरह बचा रहे। भारत को कुछ ऐसे उपाय करने ही होंगे जिससे कोई भी देश उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न कर सके। इसके लिए शासन के स्तर पर जिन भी सुधारों की आवश्यकता हो उन पर बिना किसी देरी के ध्यान दिया जाना चाहिए। आखिर यह एक तथ्य है कि जिस तरह की जासूसी अमेरिका ने भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में कराई उसे शासन की खामियों के जरिये ही अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है।

[मुख्य संपादकीय]