मकान की कमी से जूझ रहे लोगों के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा राजधानी में आगामी तीन वर्षो में 29 हजार फ्लैटों का निर्माण किया बड़ी खुशखबरी है। डीडीए द्वारा बनाए जाने वाले इन फ्लैटों को लेकर एक और अच्छी बात यह है कि ये सभी मकान अल्प आय वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लिए बनाए जा रहे हैं। दिल्ली में किराए पर रह रहे तमाम लोग अपना मकान खरीदने का सपना देखते हैं। इतना ही नहीं जिन्होंने पड़ोसी शहरों में अपना आशियाना बसा भी लिया है, उनके मन में भी दिल्ली में बसने की चाहत बनी रहती है। ऐसे में डीडीए की इस योजना में बड़ी संख्या में लोग आवेदन करेंगे, यह अभी से तय है। लेकिन बड़ी बात यह है कि डीडीए का यह प्रयास ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर है। एक अनुमान के अनुसार सिर्फ दिल्ली में ही चार लाख परिवार ऐसे हैं जिन्हें आवास की दरकार है। जाहिर है कि यदि डीडीए 29 हजार फ्लैट बना भी देता है, फिर भी जरूरत नहीं पूरी हो पाएगी।

दरअसल, राजधानी में आवास की समस्या के बने रहने का एक बड़ा कारण डीडीए द्वारा पर्याप्त संख्या में मकानों का निर्माण नहीं कर पाना है। आजादी के बाद अपनी स्थापना से लेकर आज तक डीडीए कुल मिलाकर चार लाख मकानों का निर्माण भी नहीं कर पाया है। दिल्ली की आबादी लगातार बढ़ती गई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि सैकड़ों की संख्या में यहां पर अनधिकृत कॉलानियों का निर्माण हुआ, जिनमें रहने वाले लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे हैं। निजी क्षेत्र द्वारा बनाए गए मकान इतने महंगे हो चुके हैं कि सामान्य वेतन पाने वाले लोग उनके बारे में सोच तक नहीं पाते। डीडीए के मकान बाजार की अपेक्षा कुछ सस्ते होते हैं। यही वजह है कि इनके लिए आवेदन करने वाले लाखों में होती है लेकिन फ्लैटों की संख्या इतनी कम होती है कि लॉटरी लगाकर इनका आवंटन करना पड़ता है। अब जिसकी लॉटरी निकल गई, उसे तो फ्लैट मिल जाता है और बाकी लोग इंतजार करते रहते हैं। यह डीडीए की ही विफलता रही कि देश की राजधानी में बड़ी संख्या में अवैध निर्माण का सिलसिला चला। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि इस सरकारी संगठन को ज्यादा से ज्यादा संख्या में फ्लैटों का निर्माण करना चाहिए ताकि सबको मकान उपलब्ध हो सके।

[स्थानीय संपादकीय: दिल्ली]