भाजपा संगठन
उत्तराखंड भाजपा के नए कप्तान की तलाश में अभी कुछ और वक्त लगने की संभावना है। मंडल और जिला स्तर पर हालांकि सांगठनिक चुनाव प्रक्रिया निपट चुकी है लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव को लेकर अब भी तस्वीर साफ नहीं है।
उत्तराखंड भाजपा के नए कप्तान की तलाश में अभी कुछ और वक्त लगने की संभावना है। मंडल और जिला स्तर पर हालांकि सांगठनिक चुनाव प्रक्रिया निपट चुकी है लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव को लेकर अब भी तस्वीर साफ नहीं है। तय कार्यक्रम के मुताबिक नवंबर आखिर तक प्रदेश भाजपा को नया मुखिया मिल जाना चाहिए था लेकिन अब इसमें कुछ और वक्त लगना तय है। इसके कई कारण बताए जा रहे हैं। पहला कारण तो हालिया बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों को ही कहा जा सकता है, जहां भाजपा को महागठबंधन के हाथों करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। पार्टी की बिहार में इस बड़ी रणनीतिक हार का ही असर है कि भाजपा नेतृत्व अब उन राज्यों को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरत रहा है, जहां निकट भविष्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश के साथ ही उत्तराखंड उन राज्यों में शुमार हैं जहां अब एक साल के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। इस स्थिति में भाजपा नेतृत्व अभी से संगठन को मजबूत कर चुनावी रणनीति के तहत कदम उठाना चाहता है। उत्तराखंड भाजपा का मजबूत गढ़ रहा है और पिछले साल संपन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां की पांचों लोकसभा सीटों पर रिकार्ड जीत दर्ज की थी। हालांकि इसके बाद हुए विधानसभा सीटों के उपचुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने भाजपा को चारों खाने चित कर दिया। साफ है कि पार्टी नेतृत्व आगामी विधानसभा चुनाव में भी लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराना चाहेगा। इसके लिए पार्टी को संगठन की मजबूती के लिए किसी ऐसे चेहरे की तलाश है जो कांग्रेस सरकार के मुखिया हरीश रावत को कड़ी टक्कर दे सके। दरअसल, पार्टी की सबसे बड़ी चिंता भी यही है। कांग्रेस के पास हरीश रावत का मजबूत नेतृत्व है तो भाजपा फिलहाल सूबे में नेतृत्वविहीन सी नजर आ रही है। ऐसा नहीं है कि भाजपा के पास उत्तराखंड में कद्दावर नेताओं की कमी हो लेकिन पार्टी ऐसे सभी नेताओं को केंद्रीय राजनीति में उतार चुकी है। इनमें तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों भुवन चंद्र खंडूड़ी, भगत सिंह कोश्यारी और डा. रमेश पोखरियाल निशंक के नाम शामिल हैं। ये तीनों बड़े नेता वर्तमान में लोकसभा सांसद हैं। एक साथ सभी बड़े नेताओं के केंद्र की राजनीति में चले जाने से सेकेंड लाइन का अभाव पार्टी में दिखाई दे रहा है। हालांकि इन तीनों के अलावा भी करीब आधा दर्जन नाम प्रदेश अध्यक्ष पद के दावेदारों में शुमार हैं लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ऐन चुनाव से पहले किसी नए चेहरे को संगठन की कमान सौंपने को लेकर हिचक रहा है। यही वजह भी है कि नए प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पूर्व मुख्यमंत्रियों कोश्यारी व निशंक की दावेदारी को भी खरिज नहीं किया गया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी नेतृत्व नए चेहरे को संगठन की जिम्मेदारी सौंपता है या फिर तजुर्बे को ही तरजीह दी जाएगी।
[स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड]






-1766506006775.webp)







कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।