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साख पर सवाल

उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय (यूपीटीयू) की साख दांव पर है। अब इसमें संदेह नहीं रह गया कि विश

By Edited By: Published: Tue, 02 Jun 2015 05:54 AM (IST)Updated: Tue, 02 Jun 2015 05:54 AM (IST)
साख पर सवाल

उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय (यूपीटीयू) की साख दांव पर है। अब इसमें संदेह नहीं रह गया कि विश्वविद्यालय में ऐसा संगठित तंत्र काम कर रहा है जिसकी निष्ठा शिक्षा और संस्था के बजाए अनुचित गतिविधियों में लिप्त कुछ कॉलेजों के साथ है। ऐसा न होता तो सेमेस्टर परीक्षाओं के एक के बाद एक प्रश्नपत्र परीक्षा से पहले नकल बाजार में न होते। सोमवार को लीक की आशंका में परीक्षा से पहले मैन्यूफैक्च¨रग प्रोसेस का पर्चा बदलना पड़ा। रविवार को भी बीटेक के दूसरे सेमेस्टर के अनिवार्य विषय प्रोफेशनल कम्युनिकेशन का पेपर वाट्स एप पर लीक होने के कारण बदलना पड़ा था। शुक्रवार को भी बीटेक दूसरे सेमेस्टर के इंजीनिय¨रग फिजिक्स का पेपर आउट होने की बात सामने आई थी। इसके बाद आशंका स्वाभाविक है कि कहीं अन्य प्रश्नपत्र भी तो लीक नहीं हुए। शुरुआती जांच में संदेह की सुई दो इंजीनियरिंग कालेजों की तरफ घूम रही है लेकिन न तो अभी तक इस लीक की कोई उच्च स्तरीय जांच शुरू हुई है और न ही सवालों के घेरे में आये कालेजों पर ही अंकुश लगा है।

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उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय में विवादों का यह कोई पहला मामला नहीं है। हर साल करीब सात सौ कालेजों के डेढ़ लाख छात्रों को इंजीनियरिंग व प्रबंधन की डिग्री बांटने वाले इस विश्वविद्यालय की कभी स्थापित साख हुआ करती थी। यूपीटीयू में दाखिले के लिए छात्र कड़ी मेहनत करते थे लेकिन जब से छात्रों का इंजीनियरिंग और प्रबंधन में रुझान कम हुआ और काउंसिलिंग से सीटें भरना मुश्किल तब से यहां दलालों का एक नेटवर्क खड़ा होना शुरू हो गया। हाल में एसईई का डाटा लीक होने का प्रकरण भी सामने आया। पता चला कि विश्वविद्यालय के ही कुछ लोगों ने कालेजों को पूरा का पूरा डाटा बेच दिया ताकि कालेज काउंसिलिंग से इतर कम अंक पाये छात्रों से सम्पर्क कर उन्हें प्रवेश दे सकें। इस मामले की जांच विशेष सचिव स्तर पर अभी चल रही है। स्पष्ट है कि जो कालेज और विश्वविद्यालय अधिकारी डाटा की खरीद-फरोख्त में शामिल रहे हैं, पर्चा लीक कराने वालों का नेटवर्क भी उन्हीं के इर्द-गिर्द खड़ा होगा। बेहतर हो कि दोनों मामलों को एक साथ जोड़कर गहनता से जांच कराई जाए। उन अधिकारियों की पहचान कर स्थायी रूप से शिक्षा तंत्र से बाहर करने की जरूरत है जो लाखों छात्रों के भविष्य और विश्वविद्यालय की साख को अपने लोभ के कारण दांव पर लगा रहे हैं।

[स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश]


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