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    कागजी प्रदूषण नियंत्रण

    By Edited By:
    Updated: Fri, 31 Oct 2014 05:12 AM (IST)

    जल प्रदूषण के बारे में 1974 में राष्ट्रीय स्तर पर कानून बना तो कुछ ही महीनों बाद प्रदेश ने भी कानून

    जल प्रदूषण के बारे में 1974 में राष्ट्रीय स्तर पर कानून बना तो कुछ ही महीनों बाद प्रदेश ने भी कानून बना कर उत्तर प्रदेश जल प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण बोर्ड बना दिया। पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय जागरुकता बढ़ती गई और उत्तर प्रदेश भी कदमताल करता हुआ आगे बढ़ा। 13 फरवरी 1982 को पूर्ण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बन गया। इस तरह उत्तर प्रदेश उन राज्यों में है जिन्होंने पर्यावरण की चिंता तब शुरू कर दी थी जब देश के चुनिंदा लोग इस बारे में सोच रहे थे। यूं तो प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के बारे में भारतीय दर्शन सदियों पहले सोच चुका था, फिर भी इस उपभोगवादी दौर में पर्यावरण की चिंता कर उत्तर प्रदेश ने खुद को एक जागरूक और अग्रणी प्रदेश के रूप में साबित किया है। मगर जिस तरह से बुधवार को गंगा सफाई की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उसके काम पर टिप्पणी की, उसे प्रदेश के नाम पर बड़ा धब्बा ही कहा जाएगा। कोर्ट ने प्रदेश में प्रदूषण के गुनहगारों पर कार्रवाई का जिम्मा बोर्ड से लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को सौंप दिया।

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    उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को बने चार दशक होने को हैं। तीन साल में भी एक महानगर को प्रदूषण से मुक्ति की राह दिखाई गई होती तो प्रदेश के सभी ग्यारह महानगरों में प्रदूषण तय सीमा के बाहर होता और जल प्रदूषण फैलाने नाले साफ रहते। आज हमारी गंगा भी साफ होती और गोमती भी नहाने लायक होती। यमुना को साफ रखने के लिए दिल्ली पर भी दबाव बना लिया गया होता। इतनी बड़ी संस्था होने के बाद भी राप्ती से लेकर तमसा नदी तक अपने अस्तित्व को लड़ रहे हैं। दूर की बात क्या कहें राजधानी में ही कुकरैल नदी सीवरेज में बदल चुकी है। अब जरा बोर्ड के उद्देश्यों पर नजर डालें-जल की गुणवत्ता बनाये रखना तथा नियंत्रित क्षेत्रों में वायु प्रदूषण रोकना, नियंत्रित करना, प्रदूषण संबंधी विषयों पर जानकारी एकत्र कर राज्य सरकार को सलाह देना और उससे संबंधित अनुसंधान को बढ़ावा देना लेकिन इस पर अमल बहुत कम हुआ। ऐसा नहीं कि बोर्ड के पास सुविधाओं की कमी हो। बोर्ड की अपनी प्रयोगशाला है, कार्यालय हैं, विशेषज्ञों का नेटवर्क है। राज्य मंत्री का दर्जाधारी एक चेयरमैन है, अधिकार संपन्न बोर्ड और उसके सदस्य हैं, फिर भी परिणाम न निकल रहा हो तो सोचना बोर्ड को भी है और उत्तर प्रदेश के राजनीतिक नेतृत्व को भी।

    [स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश]