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    जरूरी फैसला

    By Edited By:
    Updated: Tue, 21 Oct 2014 06:33 AM (IST)

    कोयले की किल्लत और उसके चलते बिजली संकट बढ़ने के आसार देखते हुए कोयला खदानों के नए सिरे से आवंटन के

    कोयले की किल्लत और उसके चलते बिजली संकट बढ़ने के आसार देखते हुए कोयला खदानों के नए सिरे से आवंटन के लिए अध्यादेश लाने का फैसला एक तरह से आवश्यक ही था। हाल में सुप्रीम कोर्ट की ओर से 214 कोयला खदानों के आवंटन रद किए जाने के बाद कोयला संकट कहीं अधिक गंभीर रूप लेता हुआ दिख रहा था, क्योंकि इनमें से कुछ खदानें ऐसी भी थीं जिनसे कोयले का खनन किया जा रहा था। यह भी किसी से छिपा नहीं कि पिछले कुछ समय से लगातार ऐसी खबरें आ रही थीं कि एक बड़ी संख्या में बिजली संयंत्र कोयले की कमी से जूझ रहे हैं। कोयले की कमी ने बिजली उत्पादन को प्रभावित करना शुरू कर दिया था और इसके चलते देश के कई हिस्सों में बिजली कटौती की अवधि बढ़नी भी शुरू हो गई थी। इन परिस्थितियों में केंद्र सरकार के लिए कोयले का उत्पादन बढ़ाकर बिजली कंपनियों और साथ ही उद्योगों को कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करना आवश्यक हो गया था। मौजूदा हालात में इस आवश्यकता की पूर्ति अध्यादेश के जरिये ही हो सकती थी। यह सर्वथा उचित है कि सरकार ने कोयला खनन की सुविधा कोल इंडिया के साथ-साथ अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और राज्य बिजली बोर्डो को भी देने पर विचार किया। इसमें भी हर्ज नहीं कि कोयला खदानों के नए सिरे से आवंटन में उन कंपनियों को भी शामिल होने का अवसर दिया जाएगा जिनकी कोयला खदानें रद हुई हैं और जो सीबीआइ की जांच का सामना नहीं कर रही हैं।

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    कोयला खनन के काम में निजी कंपनियों की भागीदारी इसलिए जरूरी है, क्योंकि कोल इंडिया इतनी सक्षम नहीं कि जरूरत भर के कोयले का उत्पादन खुद कर सके। कोल इंडिया कहने को तो कोयला खनन क्षेत्र की दुनिया की सबसे बड़ी सरकारी कंपनी है, लेकिन उसकी उत्पादकता बेहद निराशाजनक है। उसके सही ढंग से काम न करने का ही यह दुष्परिणाम है कि कोयले के भारी भंडार के बावजूद देश में कोयले का आयात हो रहा था। क्या इससे बड़ी विडंबना कोई और हो सकती है कि कोयले की भंडार की दृष्टि से दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश वर्तमान में कोयले का सर्वाधिक आयात करने वाले देशों की सूची में तीसरे नंबर पर पहुंच गया है। यह तो अपने प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से इस्तेमाल न कर पाने की पराकाष्ठा है। नीलामी के जरिये कोयला खदानों के फिर से आवंटन के लिए अध्यादेश लाने का फैसला यह भी बताता है कि मोदी सरकार आर्थिक सुधारों की दिशा में तेजी से आगे बढ़ने और आर्थिक माहौल बदलने के लिए प्रतिबद्ध है। वैसे तो सुप्रीम कोर्ट ने यह पाया कि करीब दो दशकों से कोयला खदानों का आवंटन मनमाने तरीके से किया जा रहा था, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि एक बड़ी संख्या में इस तरह के आवंटन संप्रग सरकार ने किए और अंतत: वे घोटाले में तब्दील हो गए। इस घोटाले से बचा जा सकता था, क्योंकि तत्कालीन विधि मंत्रालय की ओर से कोयला आवंटन की नीति बदलने पर जोर दिया गया था। कोई नहीं जानता कि कोयला खदानों के आवंटन की नीति को बदलने से क्यों इन्कार किया गया? अब जब यह तय हो गया है कि केंद्र सरकार रद हुईं कोयला खदानों का नए सिरे से आवंटन करेगी तब फिर यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोयला घोटाले की जांच भी अंजाम तक पहुंचे।

    [मुख्य संपादकीय]