चुनावी चमत्कार
हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर नए सिरे से मुहर
हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर नए सिरे से मुहर लगाने के साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि कांग्रेस के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों की राजनीतिक जमीन खिसकने का सिलसिला कायम है। इन दोनों राज्यों में नरेंद्र मोदी ने प्रचार की कमान एक तरह से अपने हाथ में लेकर खुद की प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी थी। मोदी के इस दांव से विरोधी पस्त तो हुए ही, उपचुनाव नतीजों के आधार पर खड़ा किया गया वह किला भी रेत के महल की तरह ढह गया कि उनका जादू तो उतार पर है। हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा की अप्रत्याशित सफलता के लिए कई कारण गिनाए जा सकते हैं, लेकिन सबसे अधिक श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के नए अध्यक्ष अमित शाह को ही देना होगा। इन दोनों राज्यों में सत्ता की बागडोर भाजपा के हाथ आना सुनिश्चित होने से नरेंद्र मोदी का राजनीतिक कद और अधिक बढ़ा हुआ नजर आने लगा है। इस बढ़े हुए कद का लाभ उन्हें राष्ट्रीय और साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मिलेगा। नि:संदेह महाराष्ट्र में भाजपा अपने बलबूते सरकार बनाने में सफल नहीं हो सकी, लेकिन यह सहज-सामान्य नहीं कि अकेले लड़ने के बावजूद उसे पिछली बार के मुकाबले दोगुनी से अधिक सीटें मिलीं। यदि भाजपा ने थोड़ा और पहले अकेले दम चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया होता तो शायद वह अपने बलबूते सरकार बनाने की स्थिति में होती, क्योंकि लोकसभा चुनाव नतीजे यही झलक पेश कर रहे थे कि भाजपा विधानसभा चुनाव में अपने दम पर परचम फहरा सकती है।
महाराष्ट्र में बहुमत से दूर रहने के बावजूद भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू से हैं, क्योंकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी उसके साथ आने को तैयार है और शिवसेना को भी यह समझ आ गया है कि उसने अपनी जिद से अपना नुकसान कर लिया। यदि शिवसेना को गठबंधन राजनीति करनी है तो उसे तनिक राजनीतिक शिष्टता भी सीखनी होगी। महाराष्ट्र में भाजपा की सत्ता का सहयोगी जो भी बने, मुख्यमंत्री पद उसके पास रहने से मोदी सरकार को देश की वित्तीय राजधानी को अपने हिसाब से चलाने में जो मदद मिलेगी उसका लाभ महाराष्ट्र के साथ ही राष्ट्र को भी मिलेगा। भाजपा के लिए महाराष्ट्र के मुकाबले हरियाणा के चुनाव नतीजे इसलिए ज्यादा सुखद हैं, क्योंकि यहां वह अपने बल पर सरकार बनाने जा रही है। पिछली बार की चार सीटों के मुकाबले बहुमत लायक सीटें हासिल करना इसलिए चुनावी चमत्कार है, क्योंकि हरियाणा को कभी भी भाजपा के गढ़ के रूप में नहीं देखा गया। महाराष्ट्र और हरियाणा में फतह हासिल करने के बाद भाजपा की अगली चुनौती इन दोनों राज्यों के लिए सक्षम नेतृत्व का चयन करने की है। प्रधानमंत्री के रुख-रवैये को देखते हुए इस बारे में आश्वस्त हुआ जा सकता है कि इस चयन की एकमात्र कसौटी प्रशासनिक क्षमता और दक्षता ही होगी। महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद उपचुनावों से बेवजह उत्साहित विपक्षी दलों को धरातल पर आने के साथ ही अपनी रीति-नीति पर नए सिरे से विचार करना चाहिए। वैसे तो राजनीति में हार-जीत लगी रहती है, लेकिन लोकसभा चुनावों के बाद इन दो राज्यों के चुनाव यह भी बता रहे हैं कि भारतीय राजनीति में कुछ बुनियादी परिवर्तन हो रहे हैं। ये परिवर्तन इसलिए शुभ नजर आते हैं, क्योंकि अनैतिकता का पर्याय बनी गठबंधन राजनीति हाशिये पर जाती दिख रही है।
[मुख्य संपादकीय]
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