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नतीजों का निष्कर्ष

By Edited By: Published: Wed, 17 Sep 2014 05:38 AM (IST)Updated: Wed, 17 Sep 2014 05:35 AM (IST)
नतीजों का निष्कर्ष

उपचुनावों के नतीजे कभी भी भविष्य की पूरी तस्वीर पेश नहीं करते, फिर भी वे जीते-हारे राजनीतिक दलों को कुछ न कुछ संदेश अवश्य देते हैं। तीन लोकसभा और 33 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनावों के नतीजों से जिस दल को सबक सीखने में देरी नहीं करनी चाहिए वह भाजपा ही है। यह सही है कि हाल के और इसके पहले हुए उपचुनावों में मोदी सरकार की परीक्षा नहीं हो रही थी, लेकिन यह भी अपेक्षित नहीं था कि भाजपा के मुकाबले उसके विरोधी दल बढ़त हासिल करने में सफल रहेंगे। पहले उत्ताराखंड और बिहार में और अब उत्तार प्रदेश, राजस्थान के साथ-साथ एक हद तक गुजरात में भी में ऐसा ही हुआ। इन सभी राज्यों में विरोधी दल भाजपा की सीटें छीनने में सफल रहे। इसके पीछे अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न कारण हो सकते हैं, लेकिन यह साफ है कि भाजपा मतदाताओं को वैसा भरोसा नहीं दिला सकी जैसा उसने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनावों के दौरान दिलाया था। भाजपा को वह माहौल बनाए रखना चाहिए था जो उसने लोकसभा चुनाव में निर्मित किया था और जिसके चलते अकल्पनीय नतीजे सामने आए। भाजपा ने लोकसभा चुनावों जैसा माहौल पश्चिम बंगाल में बनाए रखा और इसका उल्लेखनीय परिणाम सामने है। इस राज्य में उसने 15 साल बाद विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की और वह भी अपने बलबूते।

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ताजा उपचुनावों में भाजपा को मिले झटके को मोदी सरकार के कामकाज से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि यह कोई मुद्दा नहीं था और न हो सकता था कि पिछले सौ दिनों में केंद्र सरकार ने क्या किया और क्या नहीं किया? भाजपा विरोधी दल उपचुनावों के नतीजों की चाहे जैसी व्याख्या क्यों न करें, वे अपनी जीत के उत्साह में यह कहने से बचें तो बेहतर है कि हमें मोदी सरकार के प्रति जनता की कथित नाराजगी का लाभ मिला। भाजपा को भी इस तर्क की आड़ लेने से बचना होगा कि उपचुनावों के नतीजे तो राज्यों में सत्तारूढ़ दल के पक्ष में ही जाते हैं। राजस्थान इस तर्क की काट पेश कर रहा है। गुजरात में भी ऐसा ही कुछ दिखाई दे रहा है। उत्तार प्रदेश के हालात ऐसे नहीं थे कि भाजपा की आठ सीटें उस समाजवादी पार्टी के खाते में चली जातीं जिसके शासन की सर्वत्र आलोचना हो रही थी। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि भाजपा ने उत्तार प्रदेश में उपचुनाव जीतने के लिए जिस रणनीति पर अमल किया वही उसकी पराजय का कारण बनी। पता नहीं उसके नेता यह कैसे भूल गए कि लोकसभा चुनावों में उसकी प्रचंड जीत का आधार विकास पर बल देना था, न कि लव जिहाद सरीखे मुद्दे को धार देना। आश्चर्य यह है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य के नेताओं को इसके लिए आगाह करना भी जरूरी नहीं समझा कि वे अपने एजेंडे से भटक रहे हैं। कम से कम अब तो सबक सीखा ही जाना चाहिए कि चुनाव उन्हीं मुद्दों पर जीता जा सकता है जो वास्तव में आम जनता को प्रभावित करते हों। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि उपचुनाव और विशेष रूप से उत्तार प्रदेश के उपचुनाव में मिले झटके के बाद भाजपा नेता सबक सीखने की बात कर रहे हैं, क्योंकि यह तो एक तरह से जानबूझकर गलती किए जाने के बाद सबक सीखने वाली बात है।

[मुख्य संपादकीय]


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