इस देश में नौकरीपेशा आदमी की सबसे बड़ी चिंता शायद इनकम टैक्स है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनकम टैक्स के अलावा ऐसे कई टैक्स हैं जो आपकी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा खा रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक आप अपनी आमदनी का करीब 50 फीसद हिस्सा देश में लागू प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों पर खर्च कर देते हैं।

देश के टैक्स ढांचे में बदलाव की बात यूं ही नहीं उठी है। वर्तमान में देश में 32 तरह के प्रत्यक्ष कर और करीब 50 तरह के अप्रत्यक्ष कर लागू हैं। टैक्स का यह ऐसा मकड़जाल है कि जनता की जेब से निकलने वाले पैसे का एक बड़ा हिस्सा इन टैक्सों के जरिए सरकारी खजाने की भेंट चढ़ जाता है। छोटी से छोटी खरीद और सेवा अब टैक्स के दायरे में है। इसलिए अब आप ऐसा कोई सौदा नहीं करते जहां आप करों का भुगतान नहीं करते।

एक सौदे में एक तरह का टैक्स हो इसकी भी गारंटी नहीं है। हम आप अधिकांश मामलों में एक सौदे में एक से ज्यादा करों का भुगतान करते हैं। केंद्र सरकार कई टैक्स हमसे सीधे तौर पर लेती है और ज्यादातर अप्रत्यक्ष तरीके से लिए जाते हैं। यही वजह है कि टैक्स का ढांचा इतना जटिल हो चुका है कि आम आदमी के लिए इसे समझना बेहद मुश्किल हो गया है। बिक्री कर, उत्पाद कर, सीमा शुल्क, सेवा शुल्क आदि जैसे कर हैं जिन्हें हम आप पहचानते हैं और जिनके बारे में जानते हैं। लेकिन ऐसे तमाम टैक्स हैं जिनका अप्रत्यक्ष बोझ आप पर पड़ता है और उसका भुगतान आपकी जेब से होता है। राज्यों में ली जाने वाली चुंगी, एंट्री टैक्स, परचेज टैक्स का आपसे कोई सीधे लेना देना नहीं है। लेकिन सामान की आवाजाही पर लगने वाले ये टैक्स उसकी कीमत में शामिल हो जाते हैं जिसका बोझ जनता को उठाना पड़ता है।

देश में सरकार ने टैक्स का ढांचा इस तरह बनाया है कि आपको कहीं से आमदनी होती है तो उस पर टैक्स है। आप कहीं खर्च करते हैं तो उस पर टैक्स देते हैं। घर में भोजन करते हैं तो उसमें टैक्स की भागीदारी होती है और बाहर खाने जाते हैं तो भोजन के दाम के अलावा वैट, सेवा शुल्क और सर्विस चार्ज जैसे टैक्स अदा करने पड़ते हैं। आप वाहन खरीदते हैं तो उस पर टैक्स देते हैं, उसे चलाने के लिए रोड टैक्स देते हैं। उसे चलाने के लिए जरूरी ईधन पर कई तरह के टैक्स में हिस्सेदारी करते हैं। यानी जनता को किसी भी रूप में टैक्स अदायगी से बचाव नहीं है।

सरकार के टैक्स ढांचे का यह ऐसा पेंच है जिसमें किसी तरह का बचाव नहीं है। चूंकि केंद्र और राज्य सरकारों का खजाना भरने का स्रोत यही टैक्स ढांचा है, इसलिए बिना राजनीतिक इच्छाशक्ति के इसमें बदलाव भी संभव नहीं है। चूंकि जनता केवल इनकम टैक्स को लेकर ही चिंतित रहती है इसलिए सरकारें भी आम आदमी को आयकर में रियायतों का झांसा दे उलझाए रखती है। जबकि एक आम आदमी साल भर में जितना आयकर भरता है उससे कई गुना वो अपनी जिंदगी गुजर बसर करने की जुगत में सरकार को दे देता है।

-नितिन प्रधान पढ़े: सुनहरे भविष्य की आस

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